एशियन गेम्स में भारतीय खिलाड़ी दे रहे है इसका सबूत
कहते है कि अगर सोच पॉज़िटिव हो और कुछ करने का हौसला हो, तो कोई भी बाधा
आपको रोक नहीं सकती।कुछ ऐसा ही देखने को मिल रहा है एशियन गेम्स में, जहां कई खिलाड़ी ऐसे हैं, जिनके
पास ज्यादा रिसोर्स नहीं थे लेकिन उनके जुनून ने उन्हें इस मुकाम तक लाकर
खड़ा कर दिया कि आज लोग न सिर्फ उन्हें पहचानते हैं बल्कि उनके जैसा बनने
का उदाहरण भी दे रहे ंहैं।
तो आइये जानते है, ज़िंदगी के कुछ ऐसे पहुलओं के बारे में, जिससे खिलाड़ियों की ज़िंदगी में बदलाव आये है। इन बदलावों को अपनाकर आप भी अपने जीवन को बेहतर बना सकते हैं।
मज़बूत हौसले वाली हिमा दास
चाहे आपके पास रिसोर्स कम हो, लेकिन कुछ करने का हौसला हो, तो राह अपने आप बनने
लगती है।एशियन गेम्स में 400 मीटर की तेज़ दौ़ड़ में सिल्वर मेडल हासिल करने वाली हिमा दास
असम केकिसान परिवार से आती हैं।हिमा के पास शुरूआत में कोई ऐसा ट्रेनर नहीं था, जिससे उन्हें प्रोफेशनल ट्रेनिंग मिल पाती,
पर उनके हौसलों की वजह से आज एशियन गेम्स में हिमा ने अपना ही नेशनल रिकार्ड तोड़ दिया। अगर आप को कभी लगता है कि कोई काम करना मुश्किल है या उसमें सफलता न
मिल रही हो तो निराश कभी न हो बल्कि उसे पूरे जोश के साथ करने का हौसला रखें
क्योंकि सफलता उसे ही मिलती है, जिनके हौसले बुलंद होते हैं।
पॉज़िटिव सोच वाले मंजीत सिंह
हरियाणा के जींद में रहने वाले मंजीत सिंह ने जब पुरूषों की 800 मीटर की दौड़ में गोल्ड मेडल जीता, तो यह कहना ग़लत नहीं होगा कि यह उनकी पॉज़िटव सोच के कारण ही हुआ। दरअसल दो साल पहले उन्हें लगा था कि एथलीट बनने में कुछ नहीं रखा पर जब कोच ने उन्हें खेलों में बने रहने के लिए गाइड किया, तो उनकी सोच में बदलाव आया और तब उन्होंने सोच लिया कि वह एशियन गेम्स में कुछ करके ही दिखायेंगे। उनकी पॉज़िटिव सोच का ही नतीज़ा है कि आज वह गोल्ड मेडल जीतने वाले खिलाड़ी बन गये।
तो कहने का मतलब यह है कि हौसले तभी मज़बूत रह सकते है, अगर सोच पॉज़िटिव हो और इसके लिए आपको करना कुछ नहीं है, बस कभी दिमाग में नेगेटिव बातें न आने दे। हमेशा जिस भी फील्ड में आप जाना चाहते है, उसमें मेहनत के साथ काम करते जाए और हमेशा अपनी सोच को पॉज़िटिव रखें क्योंकि पॉज़िटिव सोच के साथ मेहनत करने से काम जरूर बनते हैं।
जुनूनी सौरभ चौधरी
किसी भी काम की सफलता व्यक्ति के जुनून पर भी निर्भर करती है। अब देखिए, एशियन गेम्स में भारत के 16 साल के सौरभ चौधरी ने निशानेबाज़ी में गोल्ड मेडल
जीता। किसान परिवार से आने वाले यंग सौरभ चौधरी के जुनून का ही कमाल है कि उन्होंने
पुरूषों की 10 मीटर एयर पिस्टल में गोल्ड मेडल जीता। वह भारत के पहले निशानेबाज़ हैं,
जिन्होंने गोल्ड मेडल जीता है। अगर कुछ करने का जुनून हो, तो न उम्र और न ही कोई
रूकावट ज़िंदगी में आ पाती है और यंग जनरेशन के लिए सौरभ चौधरी से अच्छा
उदाहरण और क्या हो सकता है!
वैसे जुनून की बात करें, तो अभिषेक वर्मा की बात किए बिना यह पहलू पूरा नहीं हो सकता।पेशे से वकील अभिषेक वर्मा को निशानेबाज़ी का जुनून था और इसी जुनून ने उन्हें
एशियन गेम्स में ब्रॉन्ज मेडल दिलाया।
लगातार प्रैक्टिस करने वाले फवाद मिर्जा
यह सच है कि लगातार प्रैक्टिस करने से सेक्सेस ज़रूर मिलती है।5 साल की छोटी सी उम्र से घुड़सवारी सीख रहे फवाद मिर्जा ने सिल्वर मेडल जीतकर साबित
कर दिया कि लगातार प्रैक्टिस करने से किसी भी रूकावट को पार किया जा सकता हैं।
वैसे मिर्जा को साल 2014 में हुए एशियाई गेम्स में 10वां रैंक मिला था लेकिन उनके जोश,
हौसले, पॉज़िटव सोच, जुनून और लगातार प्रैक्टिस ने इस बार उन्हें सिल्वर मेडल दिला दिया।
जब हमें अपने आसपास ऐसे लोग मिलते हैं, तो खुद ब खुद ही मोटिवेशन मिलता है।जब हम उनके बारे में पढ़ते हैं, तो खुद की पॉज़िटिव सोच बनती है कि हमें भी
अपने काम को ऐसे ही आगे बढ़ाना हैं।
यकीन मानिये, अगर सभी ऐसा सोचने लग जाए, तो वो दिन दूर नहीं जब हम ऐसी
सोसायटी तैयार कर लेंगे, जहां समाज में पॉज़िटिवटी होगी।