तेज़ रफ्तार से चल रही इस ज़िंदगी में किसी की तमन्ना डॉक्टर बनने की होती है तो कोई इंजीनियर बनना चाहता है लेकिन अच्छा नागरिक बनने और उस पर अमल करने वाले लोग बहुत मुश्किल से मिलते हैं। यह वे लोग होते हैं, जो समाज की नि:स्वार्थ सेवा करना चाहते हैं। नथ्था ऐसा ही एक आम आदमी है, जिसने कुछ खास करने की ठानी तो अपने मज़बूत इरादों से मुश्किल राहों को भी आसान कर दिखाया।
एक वो दौर था
महाराष्ट्र के सतारा जिले में बसा ‘जयगांव’ सूखे की मार झेल रहा था। ऐसे में खेती तो दूर, गर्मियों में पूरे गांव को पीने का पानी भी बड़ी मुश्किल से मिलता था। ऐसे बुनियादी साधनों के अभाव में बच्चे बड़े होते ही पढ़ने या नौकरी करने शहर चले जाते थे। उन्हीं में से एक लड़का था – नथ्था कदम, जो 12वीं करने शहर गया। 18 साल का होते ही नथ्था ने शहर में कैब चलानी शुरू कर दी और कमाए हुए पैसों से अपनी ग्रैजुएशन पूरी की। नथ्था की मां खेतों में छोटे-मोटे काम करके अपना और बेटी का पेट भरती थी और जब भी नथ्था इम्तिहान देने गांव आता तो वह भी खेतों में काम करता। काम करते समय वह हमेशा सोचता कि ऐसा क्या किया जाए, जिससे पूरे गांव में सूखे की परेशानी खत्म हो जाए।
कैसा दिखता है अब गांव
नथ्था ने जो किया उसकी वजह से अब गांव में खेत लहलहाते हैं और पहाड़ी इलाके पर शरीफे की खेती होती है। गांव में अब 27 कुएं और जलाशय हैं। जयगांव को देखकर अब कोई नहीं कह सकता कि यहां कभी पानी की कमी थी।
कैसे हुई शुरुआत
एक दोस्त के सुझाव पर नथ्था ने शहर में हो रहे ‘यूथ लीडरशिप ट्रेनिंग प्रोग्राम’ में हिस्सा लिया। इस प्रोग्राम में गांव के युवाओं को सॉफ्ट स्किल्स सिखाए जा रहे थे। इसी से प्रभावित होकर नथ्था ने अपने गांव के लिए कुछ करने का सोचा। 23 साल की उम्र में नथ्था ने गांव लौटकर सबसे पहले बुज़ुर्गों और विकलांग व्यक्तियों के अधिकारों के लिए काम करना शुरू किया, जो पेंशन पाने के लिए काफी संघर्ष कर रहे थे। इसी बीच उसने सरकारी धनराशि उपलब्ध कराकर 12 परिवारों के लिए शौचालय बनवाए।
बनने लगा लोगों का मसीहा
जब भी नथ्था लोगों के काम कराने सरकारी ऑफिस जाता तो अधिकारी अक्सर उससे पूछते कि वह यह सब काम किस अधिकार से करवा रहा है और एक साधारण गांव वाला समझकर उसके काम को टाल देते। इसलिए नथ्था ने साल 2014 में गांव का चुनाव लड़ा और उसके नि:स्वार्थ काम की वजह से लोगों ने उसे सरपंच बना दिया। इसके बाद गांव की सबसे बड़ी सूखे की समस्या को हल करने का रास्ता खुलने लगा।
कुछ गैर सरकारी संगठनों के साथ मिलकर गांव में वर्कशॉप आयोजित की गई जिसमें ‘लिफ्ट इरिगेशन’ के बारे में समझाया गया। अगले 3 सालों तक गांव के लोगों ने आगे बढ़कर पैसे इकट्ठे किए और खुद ही बोल्डर, बांध, कुएं और बंड बनाएं ताकि पानी की एक-एक बूंद को बचाया जा सके।
आज जयगांव में रोज़ के इस्तेमाल के लिए 3.5 लाख लीटर पानी उपलब्ध रहता है और साथ ही गांव में 4 लाख लीटर पानी का स्टॉक रखने की जगह भी है।
एक आदमी की कोशिश से पूरे गांव का भला हुआ और इसी तरह अगर हर आदमी समाज की भलाई के लिए थोड़ा भी काम करें तो देश की छोटी-छोटी समस्याएं यूं ही हल हो जाएगी।
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