परिवारों में ये अक्सर दिख जाता है कि बड़े आपको सलाह देते है कि कैसे आप बच्चों की सही परवरिश करें या बच्चों के काम को सही कैसे करें ? हालांकि शुरूआत में तसल्ली होती है कि आपके पास कई लोग है, जो सलाह दे सकते है, लेकिन असली परेशानी तब शुरु होती है, जब किसी एक सवाल के कई अलग जवाब सामने आते है। ऐसा नहीं है कि आपको इन जवाबों में से सही और गलत ढूंढना होता है। जवाब ज़्यादातर सही होते हैं क्योंकि कोई भी शुभचिंतक आपका अच्छा ही चाहेगा। मुश्किल यह होती है कि इतने सारे सही जवाबों में से आपके लिए सबसे ज़्यादा सही क्या है। ऐसे में आपको दवाब महसूस स्वाभाविक है।
खुद पर करें भरोसा
आज आप उस मोड़ पर खड़े हैं, जहां फैमिली सिस्टम्स के पुराने तरीके और आधुनिकता का मेल हो रहा है। ऐसे में आपको गाइडेंस की ज़रूरत तो होती है, लेकिन दूसरों की अलग-अलग सलाह आपको और भी कंफ्यूज़ कर देती हैं। ऐसे में सबसे पहले खुद पर भरोसा करें और अपने मन की आवाज़ सुनें क्योंकि आपकी परिस्थिति को आपसे बेहतर कोई और नहीं समझ सकता।
ज़रूरत से ज़्यादा हाई स्टैंडर्ड न करें सेट
पैरेंटिंग अपने आप में ही एक थका देने वाला प्रॉसेस हैं क्योंकि आप हर हालात में अपने बच्चों के लिए बेस्ट करना चाहते हैं। लेकिन यह एक बेहद खूबसूरत एहसास भी साथ लाता है। अपने बच्चे की तरफ देखकर आप यह सोचते हैं कि इस बच्चे की ज़िंदगी आपके इर्द-गिर्द घूमती है और आप उसके लिये सब कुछ करना चाह में जुट जाते हैं। लेकिन ध्यान रहे कि इस चाह में आप अपने लिये ज़रूरत से ज़्यादा हाई स्टैंडर्ड सेट न कर लें। हर चीज़ को परफेक्ट करने की चाह में खुद को परेशान न करें क्योंकि अच्छी पैरेंटिंग वह नहीं जो परफेक्ट है, बल्कि वह है, जिसमें सही बैलेंस है।
पीयर प्रेशर में न फंसे
अक्सर एक ही उम्र के पैरेंट्स अपने बच्चों के माइलस्टोन्स के बारे में बात करते हुए नज़र आ जाते हैं। किसने क्या एक्टिविटी ज्वॉइन की है, किसने कब बोलना शुरु किया वगैरह वगैरह… ऐसे प्रेशर में न आप खुद फंसे और न ही अपने बच्चों को फंसाये। आप अपने साथी के साथ मिलकर चीज़ों को प्लान करें।
बाकी बात रही बच्चों की, तो रिलैक्स करें और उन्हें अपना बचपन जीने दें और आप भी अपने बचपन को याद करके एक बार फिर से बच्चे बन जाये।
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