ईको फ्रेंडली घर- जहां कचरे से बनती है खाद

ईको फ्रेंडली घर- जहां कचरे से बनती है खाद

FacebookTwitterLinkedInCopy Link

क्या कभी आपने सोचा है कि आपके घर से हर दिन निकलने वाला ढ़ेर सारा कचरा पर्यावरण को कितना नुकसान पहुंचाता है? पर्यावरण बचाने के लिये ज़रूरी है कि कचरा कम करने की कोशिश की जायें और यह तभी होगा जब आप इसे रीयूज़ करना सीखेंगे। पुरानी चीज़ों और कचरे का सही इस्तेमाल नोएडा के अग्रवाल दंपति बहुत बेहतर तरीके से कर रहे हैं।

कचरे से खाद

आप में से कितने लोग घर का गीला और सूखा कचरा अलग रखते हैं? यदि कोई नहीं रखता तो आज से ही शुरू कर दीजिए, कचरा प्रबंधन के लिए यह बहुत ज़रूरी है। नोएडा की रूपाली अग्रवाल ऐसा ही करती हैं। उनके घर में सूखे और गीले कचरे को अलग रखा जाता है। सूखा कचरा तो फेंक दिया जाता है, लेकिन गीले कचरे को वह छत पर रखे मिट्टी के बर्तन में जमा करती हैं और उससे खाद बनाती हैं। दरअसल, अग्रवाल परिवार का मानना है कि पर्यावरण को बचाने की ज़िम्मेदारी हर एक शख्स की है और वह अपनी ज़िम्मेदारी निभा रहे हैं। रूपाली के पति और बच्चे भी इस काम में मदद करते हैं।

ईको फ्रेंडली घर- जहां कचरे से बनती है खाद
मेरा सुरक्षित पर्यावरण  | इमेज : फाइल इमेज

हर चीज़ का सही इस्तेमाल

सिर्फ कचरा प्रबंधन ही नहीं, अग्रवाल परिवार पानी की बचत और रीयूज़ का भी ध्यान रखता है। एयरकंडीशन से निकलने वाले पानी को बाल्टी में इकट्ठा करके रूपाली उससे साफ-सफाई का काम करती हैं। पूरी बिल्डिंग में पीने के पानी के लिये एक ही आरओ सिस्टम लगा है और सोसाइटी इससे निकलने वाली पानी को भी रियूज़ करती है। इतना ही नहीं रूपाली और उनका परिवार कभी भी शॉपिंग के लिए जाते समय जूट का बैग साथ रखते हैं और रेस्टोरेंट से खाना पार्सल करवाने के लिये कंटेनर लेकर जाते हैं।

उनके घर में एक भी प्लास्टिक बैग नहीं है। यहां तक की सुपरमार्केट से शॉपिंग करते समय भी वह कपड़े का बैग ले जाते हैं। यह परिवार अपने पुराने रद्दी कपड़े कचरे में फेंकने की बजाय इंटरनेशनल क्लॉदिंग ब्रांड को देते हैं, जो हर तरह के कपड़े की रिसाइक्लिंग करता है।

सैनेटरी वेस्ट का विकल्प

प्लास्टिक और बाकी कचरे के साथ ही हर महीने महिलाओं द्वारा इस्तेमाल किये जाने वाले सैनेटरी पैड्स से भी बड़े पैमाने पर कचरे का ढ़ेर लगता है। इस समस्या से निपटने के लिये रूपाली और उनकी बेटी मेन्स्ट्रुअल कप्स का इस्तेमाल करती हैं। जिससे पर्यावरण को पैड्स के हानिकारक केमिकल्स से बचाया जा सके।

अग्रवाल परिवार की पहल वाकई काबिले तारीफ है। अपनी सहूलियत न देखकर यह परिवार पर्यावरण बचाने की हर संभव कोशिश कर रहा है। यदि हर परिवार इनसे थोड़ी-बहुत भी सीख ले लें, तो यकीनन हम अपने पर्यावरण को सुरक्षित रख पायेंगे।

और भी पढ़े: आध्यात्मिकता से होती है स्वयं की पहचान

अब आप हमारे साथ फेसबुक, इंस्टाग्राम और ट्विटर पर भी जुड़िये।

Your best version of YOU is just a click away.

Download now!

Scan and download the app

Get To Know Our Masters

Let industry experts and world-renowned masters guide you towards a meditation and yoga practice that will change your life.

Begin your Journey with ThinkRight.Me

  • Learn From Masters

  • Sound Library

  • Journal

  • Courses

Congratulations!
You are one step closer to a happy workplace.
We will be in touch shortly.