दुती चंद: ज़मीन पर दौड़ने से लेकर आसमान छूने की पूरी कहानी

दुती चंद: ज़मीन पर दौड़ने से लेकर आसमान छूने की पूरी कहानी

रोटी के लिए ट्रैक पर आई दुती चंद ने सफलता की कहानी लिखकर दी सभी को प्रेरणा
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देश हो या विदेश हो जब भी स्प्रिंटर का जिक्र होता है तो दुती चंद का नाम सबसे ऊपर आता है। भारत की स्प्रिंटर दुती चंद को देखकर पहली नज़र में कह पाना मुश्किल है कि मौजूदा दौर में वह एशिया की सबसे तेज़ दौड़ने वाली महिला खिलाड़ी हैं। दुती को साथी खिलाड़ी प्यार से ‘स्प्रिंट क्वीन’ कहते हैं।

सपने की शुरूआत

दुती ओडिशा के जाजपुर ज़िले की रहने वाली हैं। परिवार में छह बहनें और एक भाई समेत कुल नौ लोग हैं। उनके पिता कपड़ा बुनने का काम करते थे, मजदूर घराने से ताल्लुकात रखने वाली दुति को एथलीट बनने के लिए काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा। उनकी बड़ी बहन सरस्वती चंद भी स्टेट लेवल स्प्रिंटर रही हैं, जिन्हें दौड़ता देखकर दुती ने भी एथलीट बनने का निर्णय लिया।

वह अपनी बहन से प्रेरित होकर इस रास्ते पर चलने का फैसला किया। उनके पास पढ़ाई के लिए पैसे नहीं थे। उन्होंने अपनी पढ़ाई का खर्च भरने के लिए स्कूल की चैम्पियन बनने का फैसला किया, जिससे उनकी पढ़ाई का खर्च स्कूल दे। साथ उन्होंने आगे चलकर स्पोर्ट्स कोटा से नौकरी मिलने की आस लगाकर भी दौड़ना शुरू किया।

चुनौतियों का सामना

दुती की राह में चुनौतियां तो अभी बस शुरू हुई थीं। दौड़ने के लिए न तो उनके पास जूते थे, न रनिंग ट्रैक और न ही सिखाने के लिए कोई कोच। उन्हें हर हफ़्ते गांव से दो-तीन दिन के लिए भुवनेश्वर जाना पड़ता था, जिसके लिए साधन जुटाना काफी चुनौतीपूर्ण और मुश्किलों भरा था। दुती को कई रातें रेलवे प्लेटफॉर्म पर गुज़ारनी पड़ती थी। मीडिया से अपने मुश्किलों

दिनों की बात करते हुए दुती ने बताया कि शुरुआत में मैं अकेले ही दौड़ती थी। नंगे पांव कभी सड़क पर तो कभी गांव के पास नदी के किनारे। फिर साल 2005 में उनका सेलेक्शन गवर्मेंट सेक्टर में स्पोर्ट्स होस्टल में हो गया। वहां उनके पहले कोच चितरंजन महापात्रा से मुलाकात हुई। शुरुआती दौर में उन्होंने ही दुती को तैयार किया।

सफलता का पहला मेडल

दुती ने कड़ी मेहनत की और उनकी मेहनत जल्द रंग लाई। साल 2007 में उन्होंने अपना पहला नेशनल लेवल मेडल जीता। इसके साथ साल बाद 2013 में हुई एशियन चैम्पियनशिप में उन्होंने जूनियर खिलाड़ी होते हुए भी सीनियर लेवल पर भाग लिया और ब्रॉन्ज़ जीता। दुती का पहला इंटरनेशनल इवेंट जूनियर विश्व चैम्पियनशिप था, जिसमें भाग लेने के लिए वो तुर्की गई थी। जिसके बाद स्पोर्ट्स की वजह से उन्हें इंटरनेशनल फ़्लाइट में बैठने का मौका मिला। ये उनके लिए किसी बड़े सपने के सच होने जैसा था। मेडल जीतने के बाद लोगों का नज़रिया बदलने लगा। जो लोग मेडल से पहले उनकी आलोचना करते थे, वही अब उन्हें प्रोत्साहन देने लगे थे ।

विवादों का साथ

दुती ने मेहनत करके ये मुकाम तो हासिल कर लिया था लेकिन उनकी सबसे कड़ी परीक्षा होनी अभी बाकी थी। साल 2014 राष्ट्रमंडल खेलों के भारतीय दल से उनका नाम अचानक हटा दिया गया। भारतीय एथलेटिक्स फेडरेशन के मुताबिक उनके शरीर में पुरुष हॉर्मोन्स की मात्रा ज़्यादा पाई गई, जिसकी वजह से उनके महिला खिलाड़ी के तौर पर हिस्सा लेने पर पाबंदी लगा दी गई। वह उनके लिया बहुत मुश्किलों भरा दौर था। जिसके बाद साल 2015 में उन्होंने कोर्ट ऑफ़ आर्बिट्रेशन फ़ॉर स्पोर्ट्स यानी कैस में अपील करने का फ़ैसला किया। फैसला उनके हक में आया और वह केस जीत गईं। लेकिन 2016 के रियो ओलंपिक की उनकी तैयारी अधूरी रह गयी थी। रियो की तैयारियों के लिए उनके पास बस एक साल था। उन्होंने जमकर मेहनत की और रियो के लिए क्वॉलिफाई कर ही लिया। जिसके लिए उन्हें अपना बेस भुवनेश्वर से हैदराबाद बदलना पड़ा क्योंकि साल 2014 में बैन के बाद उन्हें कैंपस से निकाल दिया गया था। तब पुलेला गोपीचंद ने उन्हें अपनी अकैडमी में ट्रेनिंग दी थी।

उनके हौसले की उपलब्धियां

साल 2016 के रियो ओलंपिक में दुती किसी ओलिंपिक के 100 मीटर इवेंट में हिस्सा लेने वाली तीसरी भारतीय महिला खिलाड़ी बनीं। उस समय उन्होंने 11.69 सेकेंड्स का समय निकाला। साल 2017 की एशियन एथलेटिक्स चैम्पियनशिप में उन्होंने 100 मीटर और 4 गुना 100 मीटर रिले में दो ब्रॉन्ज़ मेडल जीते। साल 2018 जकार्ता एशियाई खेलों में उन्होंने 11.32 सेकेंड के समय के साथ उन्होंने 100 मीटर का सिल्वर मेडल हासिल किया। इसके अलावा 200 मीटर में भी उन्होंने सिल्वर मेडल जीता। साल 1986 एशियन गेम्स में पीटी ऊषा के बाद ये भारत का दूसरा एशियाई सिल्वर मेडल था।

टोक्यो ओलंपिक है उनका लक्ष्य

दुती दस बार खुद का नेशनल रिकॉर्ड तोड़ चुकी हैं। मौजूदा दौर में वो एशिया की नंबर एक 100 मीटर वीमेन स्प्रिंटर हैं। फिलहाल उनका ध्यान टोक्यो ओलंपिक पर है। उनका मात्र लक्ष्य है कि देश के लिए कॉमनवेल्थ और ओलंपिक दोनों में मेडल हासिल करना। दुती को साल 2019 में प्रतिष्ठित टाइम मैग्ज़ीन की 100 उभरते हुए सितारों की लिस्ट में भी जगह मिल चुकी है जो समाज के लिए एक प्रेरणा है, खास कर उनके लिए जो डर कर अपना रास्ता बदल लेते हैं।

“पसीने की स्याही से जो लिखते हैं इरादों को, उनके मुकद्दर के सफेद पन्ने कभी कोरे नही होते।“ दुती ने अपने साहस और लड़ने के जज़्बे से इन लाइनों को सच कर दिखाया है।

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