देश के दूर-दराज के कुछ इलाकों में आज भी बिजली नहीं है। ऐसे ही कुछ गांव अरुणाचल प्रदेश में भी हैं। पहाड़ों और दूर-दराज गांवों में बसे लोगों के लिये बल्ब की रोशनी किसी सपने जैसी है। हालांकि कुछ गांव खुशकिस्मत हैं, जहां अब दो युवाओं के प्रयासों की वजह से रोशनी बिखर चुकी है।
बत्ती प्रोजेक्ट
जी हां, यही वह प्रोजेक्ट है, जिसने अरुणाचल प्रदेश के दूर-दराज के कुछ गांवों को बिना बिजली के रोशन किया है। दरअसल, राजीव राठौड़ और मेरविन कोटिन्हो नामक दो युवाओं ने मिलकर यह प्रोजक्ट शुरू किया। इसमें सोलर पैनल की मदद से गांव को रोशन किया गया। 2012 से इस काम की शुरुआत करने वाले दोनों युवा अब तक 280 घरों को रोशन कर चुके हैं।
ट्रैकिंग ने पहुंचाया गांव
2011 में राजीव और मेरविन सात दिनों की ट्रैकिंग के बाद अरुणाचल के दूर-दराज के गांधीग्राम गांव में पहुंचे थे। वहां शाम के बाद बिल्कुल अंधेरा छा जाता है, क्योंकि गांव में बिजली नहीं थी। दोनों का मानना है कि इस खूबसूरत जगह से बिजली के तार दूर रहे, तो ही अच्छा है, लेकिन उन्हें शहरी जीवन का थोड़ा आभास होना चाहिये। इसलिये उनके लिए लाइट ज़रूरी है और यह लाइट सोलर पैनल के ज़रिये लाई गई।
अगले साल ही दोनों ने करीब 240 सोलर लैंप घर-घर जाकर बांटे और उन्हें इस्तेमाल करना भी सिखाया। शुरुआत में कुछ लोग इसे देखकर हैरान थे क्योंकि उनके लिये तो यह बिल्कुल नया और अनोखा अनुभव था। गांधीग्राम में सोलर लैंप बांटने के बाद आसपास के गांव में लोगों को खबर पड़ी, तो वह भी इसके बारे में पूछने लगे और इस तरह से बत्ती प्रोजेक्ट की शुरुआत हुई।
मिलकर करते हैं काम
मेरविन जहां गांव के सर्वेक्षण और समझदार युवाओं की पहचान कर उन्हें ट्रेनिंग देने का काम करते हैं, वहीं राजीव लॉजिस्टिक और फंड की व्यवस्था करते हैं। ये दोनों अरुणाचल प्रदेश के ज़्यादा से ज़्यादा गांवों को रोशन करने के साथ ही नागालैंड और मेघालय जैसे पूर्वोतर राज्यों के गांवों का अंधेरा भी दूर करना चाहते हैं। फंड जुटाने के लिए राजीव ने एक कंपनी से पार्टनरशिप की है, जो ई कचरे की रिसाइकलिंग करती है। राजीव पूरे शहर से इलेक्ट्रॉनिक कचरा जमा करके इस कंपनी को देते हैं और बदले में मिले पैसों का इस्तेमाल बत्ती प्रोजक्ट के लिए करते हैं।
इन दो युवाओं के प्रयासों को देखकर बस यही कहा जा सकता है ‘जहां चाह वहां राह।’
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