फिज़िकल और मेंटल हेल्थ के साथ ही इमोशनल हेल्थ का ध्यान रखना भी ज़रूरी भी है। आप अपने बुजुर्गों को कैसे इमोशनली हेल्दी और खुशी दे सकते हैं, बता रहे हैं डॉ. साई कौस्तुभ दासगुप्ता, जो लेखक, इंटरनेशनल ग्राफिक डिज़ाइनर और मोटिवेशनल स्पीकर हैं।
बढ़ती उम्र में फिज़िकल हेल्थ के साथ इमोशनल हेल्थ का ध्यान रखना भी बहुत ज़रूरी हो जाता है। ज़िंदगी में शांति और खुशी बनाये रखने के लिये मानसिक रूप से स्वस्थ रहना बहुत ज़रूरी है। अपनी सोच और ज़िंदगी में छोटे-मोटे बदलाव लाकर बुज़ुर्ग खुद अपने आप को इमोशनली हेल्दी रख सकते हैं।
रखें बुजुर्गों का ध्यान
बाकी लोगों की तुलना में बुज़ुर्गों के लिये इमोशनल हेल्थ और मानसिक रूप से स्वस्थ रहना बहुत मायने रखता है। हमें याद रखना चाहिये कि इन्होंने न सिर्फ परिवार, बल्कि समाज के विकास में भी अहम भूमिका निभाई हैं। लेकिन उम्र बढ़ने के साथ कई बुज़ुर्ग बच्चों की तरह व्यवहार करने लगते हैं, इसलिये उसी हिसाब से उनके साथ व्यवहार करना ज़रूरी हो जाता है।
अकेलापन
खासतौर पर शहरों में बुज़ुर्ग बहुत अकेलापन महसूस करते हैं क्योंकि परिवार और समाज के साथ उनकी बातचीत बहुत कम हो जाती है और वह दूसरी एक्टिविटीज़ में भी हिस्सा नहीं लेते। शहरों में न्यूक्लियर फैमिली के बढ़ते ट्रेंड ने उन्हें बिल्कुल अकेला कर दिया है। आज के दौर की डिमांडिंग लाइफस्टाइल, डिजिटल का बढ़ता क्रेज़, जगह की कमी आदि कई ऐसे कारण है, जिनकी वजह से बुज़ुर्ग अपने ही परिवार और समाज से दूर होते जा रहे हैं। इस वजह से उनमें साइकोलॉजिकल, भावनात्मक और सामाजिक असुरक्षा की भावना घर रही है।
उम्र तो महज़ एक संख्या है
कुछ बुज़ुर्ग जहां उम्र बढ़ने पर भी मेंटली फिट रहते हैं, वहीं कुछ में मेंटल और न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर का खतरा बढ़ जाता है। साथ ही वह डायबिटीज़, कम सुनने और आस्टियोआर्थराइटिस जैसी बीमारियों का भी शिकार हो जाते हैं। इस वजह से वह डिप्रेशन में चले जाते हैं। दुर्भाग्यवश मेंटल हेल्थ से जुड़ी समस्याओं को हेल्थ केयर प्रोफेशनल और दूसरे लोग भी जल्दी नहीं समझ पाते हैं। यदि समझ आ भी जाये, तो लोग मदद लेने को तैयार नहीं होते, क्योंकि मेंटल हेल्थ को लेकर समाज में कई तरह की भ्रांतियां हैं, जिसकी वजह से लोग इस स्थिति को छिपाना चाहते हैं। ऐसे में खुद को बिल्कुल असहाय समझने लगते हैं। यदि बुज़ुर्गों को परिवार का साथ, प्यार और सम्मान मिले, तो शारीरिक बीमारी के बावजूद वह मेंटली स्ट्रॉन्ग रहते हैं।
काम से रिटायरमेंट लें, ज़िंदगी से नहीं
मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याओं से बचने के लिये रिटायरमेंट के बाद भी समाज से जुड़े रहे। परिवार और दोस्तों के साथ अच्छे रिश्ते बनाये रखें। रिटायर होने के बाद भी हेल्दी रूटीन फॉलो करना ज़रूरी है। साथ ही यही वह समय है जब आप अपने अधूरे सपने और शौक को पूरा कर सकते हैं, जैसे वह गार्डनिंग हो, सिलाई, पेंटिंग या कुकिंग। यह आपको खुश और एनर्जेटिक बनाये रखेगा। रिटायरमेंट के बाद ज़िंदगी खत्म नहीं होती, इसलिये खुद के लिये जीना सीखिये और खुश रहिये। परिवार से मिला थोड़ा सा प्यार, सम्मान, अपनापन और देखभाल बुज़ुर्गों को भावनात्मक रूप से मज़बूत बनाता है।
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