गुजरात व्यवसायिक रूप से भले ही विकसित राज्य है, लेकिन जब बात चाइल्ड सेक्स रेशियो की आती है, तो यहां गुजरात मात खा जाता है। साल 2001 के आंकड़ों के मुताबिक यहां 1000 लड़कों पर लड़कियों की संख्या महज़ 883 थी। शायद यही वजह है कि बेटियों को बचाने के लिए गुजरात ने ‘वहली डिक्री योजना’ की शुरुआत की है।
योजना की अहम बातें
– हाल ही में गुजरात सरकार ने विधानसभा में बजट के दौरान इस योजना की जानकारी दी और इसके लिये 133 करोड़ का बजट रखा गया है।
– 18 साल की उम्र होने पर परिवार की दो लड़कियों को शादी या उच्च शिक्षा के लिये एक लाख रूपए दिये जायेंगे।
– यह योजना 2 लाख रुपए से कम सालाना आमदनी वाले गरीब परिवारों के लिए हैं, ताकि वह बेटी की परवरिश ठीक तरह से कर सकें।
– परिवार की दो बेटियों को पहली कक्षा में एडमिशन के वक्त 4000 रुपए और नौवीं में जाने पर 6000 रुपए दिये जायेंगे।
– इस योजना का मकसद राज्य में लड़कियों के लिंग अनुपात को बढ़ाना और उन्हें आगे पढ़ने के लिए प्रेरित करने के इरादे से उनकी आर्थिक मदद करना है।
– इस योजना का लाभ सिर्फ गुजरात के मूल निवासियों को ही मिलेगा।
– यदि किसी परिवार में दो से ज़्यादा लड़कियां है, तब भी फायदा सिर्फ दो लड़कियों को ही मिलेगा।
घटता लिंग अनुपात
दरअसल, गुजरात में लड़कियों का लिंग अनुपात घटता जा रहा है, जिससे साफ पता चलता है कि व्यवसायिक रूप से उन्नत राज्य की मानसिकता भी लड़कियों को लेकर वही दकियानूसी हैं। लिंग अनुपात के साथ ही उनकी शिक्षा स्तर भी घटता जा रहा है। इन्हीं समस्याओ को हल करने के लिए गुजरात सरकार ने ‘वहली डिक्री योजना’ की शुरुआत की है।
पहले भी बन चुकी है योजनायें
इससे पहले 2015 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ अभियान की शुरुआत की थी, जिसका मकसद कन्या भ्रूण हत्या रोकना और लड़कियों के लिंग अनुपात में सुधार लाना है। सोशल मीडिया की बदौलत इस अभियान को बहुत लोकप्रियता मिली। गुजरात सरकार की वहली डिग्री योजना से भी उम्मीद का जानी चाहिये कि राज्य का लिंग अनुपात सुधर जायेगा।
सोच सही करने की ज़रूरत
– लिंग अनुपात बैलेंस करने के लिये लोगों की मानसिकता बदलना ज़रूरी है।
– बेटे- बेटी में भेदभाव बंद करने की सख्त ज़रूरत है।
-बेटियों को आत्मनिर्भर बनाने की पुरज़ोर कोशिश करनी चाहिये।
– बेटियों का आत्मसम्मान और आत्मविश्वास मज़बूत करें।
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