सोचिए, जब आप कन्फ्यूजन में होते है, तब आप क्या करते है? क्या आप आसपास के लोगों से सुझाव लेते है? किस तरह आप अपने मन और दिमाग को आराम दिलाते है? इसका जवाब शायद होगा कि आप एक लंबी वॉक पर निकल जाते हो या खुद को योग या कसरत में बिज़ी कर लेते हो या फिर खुद में ही उलझे रहते हो। अगर आप आखिरी विकल्प चुनते है, तो हम आपको बताना चाहेंगे कि अपने इमोशन्स को सुलझाना क्यों जरुरी है?
दरअसल आपकी भावनाओं का असर आपकी सेहत पर पड़ता है और अगर आपने इसे नहीं सुलझाया, तो पहले इसका असर मानसिक रूप से होगा और फिर यह फिजिकल परेशानियों का रूप ले सकता है।
स्टेमिना और सेल्फ-हीलिंग की कैपेसिटी कम
ओहिओ स्टेट युनिवर्सिटी की रिसर्च से यह सामने आया है कि किसी के साथ आधे घंटे की बहस या तर्क वितर्क के बाद आपके शरीर की सेल्फ-हीलिंग कैपेसिटी कम से कम 24 घंटों के लिए धीमी हो जाती है। रिसर्च के अनुसार यह सायटोकीन्स की वजह से होता है और जब आप किसी अपने से बहस करते है, तब इन सायटोकीन्स का प्रॉडक्शन काफी मात्रा में बढ़ जाता है। सायटोकीन्स के बढ़ने की वजह से डायबिटीज़, हार्ट डिसीज़, और आर्थ्राइटिस जैसी बीमारियां भी हो सकती है।
लगातार दर्द और पीड़ा का अनुभव
डिप्रेशन या हर वक्त दुख की भावना में रहने से आपके शरीर में दर्द या पीड़ा हो सकती है। लंदन की डॉ. जेन फ़्लैमिंग कहती है कि सेरोटोनिन और डोपामाइन आपके ब्रैन के ‘फील-गुड’ न्यूरो ट्रान्समिटर्स है। जब शरीर में इनकी मात्रा कम होती है, तब आपको उदासी या मायूसी महसूस हो सकती है। सेरोटोनिन आपके दर्द की संवेदना को प्रभावित करते है। शायद इसलिए, डिप्रेशन के 45 फीसदी पेशंट्स दर्द और पीड़ा से भी ग्रस्त होते है।
हाई ब्लड प्रेशर की परेशानी
गुस्सा आपके शरीर के लिए हानिकारक साबित हो सकता है और अगर आप गुस्से को अपने अंदर ही दबा देते है, तो यह भी आपके लिए नुकसानदेह हो सकता है। इससे बीपी बढ़ने की समस्या हो सकती है। इसके विपरीत पॉजिटिव इमोशन्स आपके शरीर पर अच्छा इफेक्ट डालते हैं। दिल से हंसने जैसी सिंपल बात भी आपको बेहतर महसूस कराती है।
अपने दिमाग और शरीर के कनेक्शन को बनाए रखने के लिए आपका बैलेंस होना जरुरी है। खुद को पॉज़िटिव रखें, हंसिए और समस्याओं को देखकर घबराए नहीं बल्कि उनका डटकर सामना करें।
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