‘मिड डे मील’- है किसी की विरासत

‘मिड डे मील’- है किसी की विरासत

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जब आपके सामने ‘मिड डे मील’ का ज़िक्र आता है, तो आपके दिमाग में क्या आता है। आप में से ज़्यादातर लोग ‘मिड डे मील’ को सरकार द्वारा चलाई गई एक स्कीम मात्र सोचते होंगे। इसकी वजह से ज़्यादा से ज़्यादा बच्चे स्कूल में दाखिला लेकर मेनस्ट्रीम में आने की प्रक्रिया से जुड़ जाते हैं। आज हम आपको मदुरई के ‘सौराष्ट्र बॉयज़ हायर सेकेंडरी स्कूल’ के बारे में बताने जा रहे हैं, जहां बच्चों को मिड डे मील तो दिया जाता है, लेकिन किसी सरकारी स्कीम के अधीन नहीं, बल्कि पिछले सौ सालों से भी ज़्यादा चलती आ रही विरासत के ज़रिये।

कैसी है यह विरासत?

पिछले 132 सालों से चलती आ रही मिड डे मील के ज़रिये आज कम से कम 500 छात्रों को खाना खिलाया जाता है। खाना बनाने का श्रेय 65 वर्षीय टीवी विश्वनाथन और उनकी पत्नी वैजंतीमाला को जाता हैं। वह दोनों हर दिन अलग खाना बनाते है और खाने की पौष्टिकता पर खास ध्यान देते हैं। विश्वनाथन और वैजंतीमाला परिवार की तीसरी पीढ़ी है, जो इस स्कूल में बच्चों के लिए मिड डे मील तैयार करती है। छात्रों के लिए खाना बनाने की पहल उनके दादा जी परमसामी अइयंगर ने की थी, जिसके बाद उनके पिता जी टीपी वासुदेवन ने इस नेक काम को जारी रखा और अपने बेटे विश्वनाथन को सौंपा।

‘मिड डे मील है’ किसी की विरासत
मिड डे मील की कहानी  | इमेज: फाइल इमेज

यही से शुरुआत हुई सरकारी स्कीम की

सौराष्ट्र हाई स्कूल काउंसिल के प्रेसिडेंट एमएन संस्कारण के मुताबिक इस परंपरा की शुरुआत साल 1911 में कुछ ट्रस्टीज़ की मदद से हुई। साल 1954 में तमिलनाडु के तत्कालीन मुख्यमंत्री के कामराज ने इस स्कूल का दौरा किया था और वह इस स्कीम से काफी प्रभावित हुये। उन्होंने प्रशासन को इस स्कीम के बारे में रिपोर्ट देने को कहा। प्रशासन ने इस स्कीम को रेकेमंड किया और साल 1960 से मुख्यमंत्री के कामराज ने पूरे राज्य में ‘मिड डे मील’ को लागू कर दिया। आज इस मिड डे मील को पूरे देश में बड़े व्यापक रूप से चलाया जा रहा है।

जानिये विश्वनाथन और वैजंतीमाला की दिनचर्या

हालांकि अभी यह कपल 500 बच्चों के लिए खाना बनाता है, लेकिन एक ऐसा समय भी था, जब हर दिन कम से कम 2000 छात्रों के लिए खाना बनाया जाता था। वैजंती पिछले 43 सालों से हर रोज़ सुबह पांच बजे उठ जाती हैं और दोपहर का खाना समय से तैयार कर देती हैं। शाम को वह झूठे बरतन धोती हैं। इसके बाद वह अगले दिन के लिए सब्ज़ियां काटने लग जाती हैं और विश्वनाथन भी उनके साथ हर काम में हाथ बंटवाते हैं।

धीरे-धीरे जब आसपास के बच्चों ने स्कूल में दाखिला ले लिया, तो दूसरे जिलों के बच्चों को भी स्कूल आने के लिए प्रेरित किया गया। दूर से आने वाले छात्रों को समय से स्कूल पहुंचने के लिये सुबह जल्दी घर से निकलना पड़ता है, इसलिए पिछले लगभग बीस सालों से दोपहर के खाने के साथ सुबह का नाश्ता भी परोसा जाता है।

विश्वनाथन और उनके पूर्वज इस काम को प्रॉफिट के लिए नहीं, बल्कि पुण्य और मन की शांति के लिए करते आ रहे हैं।

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