रंगों ने ज़िंदा किया एक ताइवानी गांव को

रंगों ने ज़िंदा किया एक ताइवानी गांव को

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अपने होम-टाउन से किसे प्यार नहीं होता। घर के पास वाला पार्क, जहां बचपन में हर शाम दोस्ती का उत्सव मनाया जाता था, आसपास के गली-नुक्कड़, जिनके बारे में आप गूगल से भी ज़्यादा जानते हों या फिर पास के बनिये की दुकान, जहां आपके नाम पर खाता चलता आया हो, अपने शहर की बात ही कुछ और होती है। लेकिन कभी-कभी पढ़ाई, नौकरी या किसी और कारण से आपको अपने होम-टाउन को छोड़कर दूर शहर जाना पड़ता है। आज का लेख ताइवान के एक ऐसे ही गांव को समर्पित है, जिसे छोड़कर वहां रहने वाले लोग धीरे-धीरे जाते रहे और आखिरी में कुछ ही लोगों समेत ‘हुऐंग युंग फू’ नाम का एक व्यक्ति बचा था।

जानिये गांव के बारे में

कुछ समय पहले नानतुंग डिस्ट्रिक्ट के ‘ताइचंग’ गांव के करीब 1200 घर लोगों की चहल-पहल के गवाह रह चुके हैं। यह जगह फॉर्मर सोल्जर्स के लिए स्थाई तौर पर रहने के लिए बनाई गई थी। समय के साथ ज़्यादातर लोग उस गांव को छोड़कर दूसरी जगह जाने लगे और कई डेवलपर्स ने जगह खरीदनी शुरू कर दी। लेकिन कुछ लोग ऐसे भी थे, जो अपने घरों को छोड़कर कहीं नहीं जाना चाहते थे। लेकिन उनकी संख्या बेहद कम थी, और गांव में केवल 11 घरों के लोग ही बचें। ऐसे में सरकार ने इस गांव को तोड़ने के ऑर्डर्स दे दिये, लेकिन 97 साल के हुऐंग युंग फू ने अपने गांव को बचाने के लिये एक बेहतरीन उपाय निकाला।

कैसे बचाया अपने गांव को?

हुऐंग युंग फू ने अपने गांव को बचाने के लिए पेंट ब्रश उठाया। गांव में कोई न होने के कारण वह बोर हो जाते थे, तो खाली समय में अपने घर की दीवारों को पेंट करते थे। धीरे-धीरे उन्होंने अपने घर के बाहर की दीवारों पर भी पेंटिंग शुरु कर दी। उनकी पेंटिंग्स ने पास की युनिवर्सिटी के छात्रों का ध्यान आकर्षित किया और उन्होंने इसे नाम ‘रेनबो ग्रैंड-पा’ दिया। रेनबो ग्रैंड-पा ने धीरे-धीरे आसपास के घरों को भी पेंट करना शुरु कर दिया। हालांकि उन्होंने कभी फॉर्मल पेंटिंग नहीं सीखी थी, लेकिन तीन साल की उम्र में अपने पिता से पेंटिंग के गुर सीखे थे।

एक तरफ रेनबो ग्रैंड-पा अपनी पेंटिंग्स से गांव  की खूबसूरती को बढ़ाते रहे, जिसे देखने के लिए दूर-दूर से सैलानी आने लगे। वहीं दूसरी तरफ, यूनिवर्सिटी के स्टूडेंट्स ने एक कैंपेन चलाकर इस गांव को प्रोटेक्ट करने की मांग की, जिसे सरकार ने मंज़ूरी भी दे दी।

आज हुऐंग खुशी से अपने घर में रहते हैं और हर दिन सुबह तीन बजे उठकर गांव में पेंटिंग करने चले जाते हैं। उनका कहना है कि वह उम्रभर पेंटिंग करते रहेंगे।

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