स्क्रैबल और मेडिटेशन की मदद से बढ़ाया जा रहा छात्रों का ध्यान

स्क्रैबल और मेडिटेशन की मदद से बढ़ाया जा रहा छात्रों का ध्यान

बच्चों का ध्यान बढ़ाने के अनूठे तरीके
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सोशल मीडिया और इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स के अधिक इस्तेमाल के कारण छात्रों का पढ़ाई पर फोकस कम होता जा रहा है। ऐसे में गोवा के स्कूल ने बच्चों का पढ़ाई पर ध्यान बनाए रखने के लिए दिलचस्प तरीका इजाद किया है। एकेडमिक के साथ ही पढ़ाई की मज़ेदार तकनीक का इस्तेमाल करके बच्चों की अटेंशन स्पैन यानी ध्यान बढ़ाने की कोशिश की जा रही है और परिणाम सकारात्मक मिल रहे हैं।

शिक्षकों की मुश्किलें

मोबाइल, आईपैड जैसे गैजेट्स और सोशल मीडिया के बढ़ते जाल में बच्चे इतना उलझते जा रहे हैं कि उनका पढ़ाई पर ध्यान ही नहीं रहता और जब बच्चों का ध्यान ही नहीं होगा, तो शिक्षक के लिए उन्हें कुछ भी सिखा पाना बेहद मुश्किल हो जाता है। छोटी उम्र से ही बच्चों की पढ़ाई के प्रति अटेंशन कम होती जा रही है, ऐसे में शिक्षकों को इस बात की चिंता है कि वह आगे कैसे बढ़ेंगे। इस समस्या के समाधान के लिए गोवा के कई स्कूलों ने पढ़ाई के साथ ही मजेदार गेम्स कक्षा में शामिल करके बच्चों का ध्यान बढ़ाने की कोशिश की है।

बच्चों की अटेंशन बढ़ाने का प्रयास
बच्चों की अटेंशन बढ़ाने का प्रयास |इमेज : फाइल इमेज

इन गेम्स की ली जा रही मदद

स्कूलों में रूबिक क्यूब, सुडोकू के ज़रिए स्वस्थ प्रतिस्पर्धा को प्रोत्साहित किया जा रहा है। इसके अलावा बोर्ड गेम, वैदिक मैथ, स्क्रैबल और मेडिटेशन के ज़रिए ध्यान बढ़ाने की कोशिश की जा रही है। गोवा के एक स्कूल के प्रिंसिपल के मुताबिक, साइंस क्लास के बाद बच्चों को 5 मिनट रुबिक क्यूब खेलने के लिए दिया जाता है। इसी तरह स्क्रैबल को इंग्लिश का हिस्सा बनाया गया है। इससे बच्चे बहुत खुश हैं और लंच टाइम में भी वह मजे से यह गेम्स खेलते हैं। ज़ाहिर है यह मोबाइल और सोशल मीडिया से कई गुणा बेहतर और उनके कौशल का विकास करने वाला खेल है।

मेडिटेशन की मदद

बड़ी क्लास में मेडिटेशन की मदद से बच्चों का अटेंशन स्पैन बढ़ाने की कोशिश की जा रही है और स्कूल का कहना है कि इससे छात्रों का एनर्जी लेवल बढ़ा है। इस तरह के गेम्स और मेडिटेशन की बदौलत बच्चों का मोटिवेशनल स्तर बढ़ा है। इतना ही नहीं स्कूल का कहना है कि यदि किसी बच्चे के पास मोबाइल देखा जाता है, तो उसे जब्त करके पैरेंट्स को नोटिस भेजा जाता है और एकेडमिक ईयर खत्म होने पर ही मोबाइल वापस किया जाता है।

इस बात में कोई दो राय नहीं है कि गैजेट्स और सोशल मीडिया ने बच्चों की ज़िंदगी बहुत बदल दी है। अब वह फिज़िकल एक्टिविटी करने और दोस्तों के साथ खेलने की बजाय मोबाइल में गेम्स खेलने में बिज़ी रहते हैं, जिसका असर उनके शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ता है। बच्चों के विकास के लिए स्कूल की पहल तो सराहनीय हैं, लेकिन हर माता-पिता को भी बच्चों में स्वस्थ आदतों का विकास करने की कोशिश करनी चाहिए और उसके लिए सबसे ज़रूरी है गैजेट्स का सीमित इस्तेमाल।

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