कहीं देर न हो जाए

कहीं देर न हो जाए

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आज से 20 साल पहले की बात करें, तो गौरैया का चहचहाना बड़ी सामान्य सी बात थी। छुट्टी के दिन छत पर बैठ जाते, तो न जाने कितनी सारी गौरैया और चिड़िया इधर से उधर फुदकती हुई दिखती लेकिन अगर आज इन्हें देखना हैं, तो हमें शायद चिड़ियाघर जाना पड़े। ऐसे ही शहर के मछली बाज़ारों के पास ढेरों गिध्द मंडराया करते थे, जो अब मुश्किल से ही नज़र आते हैं। वैज्ञानिकों की माने तो 20,000 से अधिक तरह के जीव-जंतु हमेशा के लिए विलुप्त होने की कगार पर हैं। कभी सोचा है कि कहां गए ये सब? फैक्ट्रियों से निकले रेडिएशन, इंसेक्टिसाइड व पेस्टिसाइड के इस्तेमाल, प्रदूषण और अंधाधुंध शिकार ने इन्हें धीरे-धीरे खत्म कर दिया हैं। समय आ गया है, जब हमें पर्यावरण की देख-भाल करनी ही होगी, नहीं तो आने वाली पीढ़ियों को हम कुछ नहीं दे पाएंगे।

ओज़ोन लेयर पर प्रदूषण का प्रभाव 

जब कोई भी पर्यावरण की बात करता है, तो सबके मन में हवा और पानी के प्रदूषण, जंगलों में पेड़ों की कटाई, उपजाऊ मिट्टी के बह जाने या आस-पास में फैली गंदगी की बात आती हैं। कम ही लोग हैं, जो हवा में बढ़ रहे प्रदूषण के असर को ओज़ोन लेयर से जोड़ पाते हैं। इसलिए हर साल 16 सितंबर को ‘इंटरनेशनल डे फॉर दि प्रिजर्वेशन ऑफ दि ओज़ोन लेयर’ मनाया जाता है, जिससे लोगों को ओज़ोन लेयर के महत्व के बारे में बताया  किया जा सके।

इमेजः फाइल इमेज

क्या होती है ओज़ोन लेयर

ओज़ोन लेयर एक सुरक्षात्मक ढ़ाल है, जो सूरज की हानिकारक किरणों को पृथ्वी की सतह पर आने से रोकती है लेकिन आधुनिकता के चलते हम कई तरह के उपकरण इस्तेमाल करते हैं और इन उपकरणों जैसे फ्रिज, एसी फायर एक्सटिंग्विशर, इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों को साफ करने के लिए इस्तेमाल होने वाले फोम और इंसॉल्वेंट्स इत्यादि की वजह से ओज़ोन लेयर आज खतरे में है। जहां एक तरफ पूरी दुनिया में ओज़ोन परत पतली हो रही है वहीं 1960 से ऑस्ट्रेलिया में परत पर 5-9% की कमी हुई है, जिसकी वजह से वहां के लोगों को यू वी किरणों के एक्सपोज़र का रिस्क ज्यादा हो गया हैं। इसके अलावा अंटार्टिका में भी यह परत हर साल पतली होती जा रही है। यू.वी किरणों के लंबे समय तक संपर्क में आने से स्किन कैंसर, जेनेटिक डैमेज, इम्यूनिटी कमज़ोर होने जैसी परेशानियां हो सकती हैं और इसका दुष्प्रभाव खेतों और फसलों पर भी पड़ता हैं।

 तीन ‘आर याद रखें

अपने पर्यावरण को बचाने के लिए तीन आर यानि रिड्यूस, रियूज़ और रिसाइकल को हमेशा याद रखें।

  • रिड्यूस – अपनी ज़रूरत के हिसाब से सामान खरीदें। अगर एक टी.वी से काम चल सकता है, तो घर के हर कमरे में टी.वी लगाने से बचें।
  • रियूज़ – ऐसी कई चीज़ें होती हैं, जिन्हें हमारे बाद कोई और इस्तेमाल कर सकता है, जैसे किताबें, कपड़ें मोबाइल इत्यादि। ये चीज़ें किसी और के इस्तेमाल में आ सकती हैं तो उसे दें और अगर आप भी किसी की चीज़ को दोबारा इस्तेमाल कर सकते हैं, तो झिझके नहीं।
  • रिसाइकल – प्लास्टिक जैसी चीज़ें जिन्हें रिसाइकल करना मुश्किल हो और जिन को जलाने से खतरनाक गैस निकलती हों, उनके इस्तेमाल से जितना हो सके बचने की कोशिश करें।

आपका उठाया एक कदम आने वाली पीढ़ियों के लिए वरदान से कम नहीं होगा, तो क्यों न फिर इसे बचाने की शुरूआत आज से ही की जाए।

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