जुनून के दम पर संवारी अपनी तकदीर

जुनून के दम पर संवारी अपनी तकदीर

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अब महिलाएं घर की चारदीवारी को लांघकर अलग अलग क्षेत्रों में अपनी काबिलियत भी साबित कर रही हैं। कश्मीर की पहली महिला फुटबॉल कोच नादिया निगहत ऐसी ही महिला हैं, जिन्होंने हर चुनौतियों का न केवल डटकर सामना किया, बल्कि अपनी पसंद को करियर के तौर पर अपनाकर खुद को प्रूव भी कर दिखाया।

आसान नहीं था फुटबॉल को अपनाना

कश्मीर के श्रीनगर में रहने वाली बीस साल की नादिया निगहत के लिए फुटबॉल कोच बनना कोई आसान काम नहीं था। यह करियर चुनने के लिए जहां उन्हें कई परेशानियों का सामना करना पड़ा, वहीं बहुत तरह की आलोचनाओं से भी जूझना पड़ा।

पहले विरोध, फिर परिवार का सपोर्ट

दरअसल, नादिया निगहत को परेशानियों का पहला सामना अपने घर-परिवार में ही करना पड़ा। कई तरह की आलोचनाओं के कारण शुरू में नादिया का परिवार भी इस बात के खिलाफ था कि घर की बेटी लड़कों के साथ फुटबॉल खेले। लेकिन, फुटबॉल के प्रति नादिया की दीवानगी के कारण बाद में परिवार, खासतौर पर पिता ने सपोर्ट करना शुरू किया। पिता ने साथ दिया, तो बाद में पूरा परिवार नादिया साथ खड़ा हो गया।

जुनून के दम पर संवारी अपनी तकदीर
युवाओं के लिए प्रेरणा  | इमेज: फेसबुक

स्कूली समय से ही फुटबॉल में रुचि

पुर्तगाल के फुटबॉल स्टार क्रिस्टियानो रोनाल्डो और अर्जेंटीना के लियोनल मेसी की ज़बरदस्त फैन नादिया की फुटबॉल में स्कूल के समय से ही गहरी रुचि थी। उनके इस जुनून को देखते हुये वही के अमर सिंह कॉलेज अकादमी में कोच ने उन्हें फुटबॉल की बारीकियां सिखाई। बाद में जम्मू कश्मीर फुटबॉल एसोसिएशन ने भी साथ दिया। ऐसे में जब उन्होंने एक कॉलेज में प्रैक्टिस सेशन में 40-50 लड़कों के बीच अकेली लड़की के तौर पर हिस्सा लिया, तो नादिया और उसके परिवार को बहुत भला-बुरा सुनना पड़ा। लेकिन, वह पीछे नहीं हटीं।

ठाणे की फुटबॉल एकेडमी में हैं कोच

नादिया का फुटबॉल के प्रति जुनून ही है कि घाटी की प्रतिकूल स्थितियां भी उनकी राह कर रोड़ा नहीं बन सकीं। जब भी उनके क्षेत्र में कर्फ्यू लगता था, तब वह मैदान में जाने की बजाय घर पर प्रैक्टिस करती थी। फिलहाल महाराष्ट्र के ठाणे की एक फुटबॉल एकेडमी में अंडर-13 हेड कोच के तौर पर काम कर रही नादिया फुटबॉल को लड़कों का खेल नहीं मानती हैं। तभी तो अभिभावकों से अपील करती हैं कि वे अपनी बेटियों को फुटबॉल सीखने के लिए भेजें।

नादिया निगहत की यह कहानी बताती है कि विषम परिस्थितियों में अपने सपने को साकार करना आसान नहीं है, लेकिन यदि आपके भीतर समर्पण है, तो रास्ते खुद ब खुद बन जाते हैं।

इमेज: फेसबुक

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