स्वामी दयानंद सरस्वती ने गुस्सैल व्यक्ति को सिखाया विनम्रता का पाठ

स्वामी दयानंद सरस्वती ने गुस्सैल व्यक्ति को सिखाया विनम्रता का पाठ

विनम्रता में है दूसरों को बदलने की ताकत
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जीवन में नम्रता का बड़ा महत्व है। जो इंसान विनम्रता के साथ सादगी का जीवन जीते हैं, उन्हें हर जगह सम्मान मिलता है। यह गुण दूसरों में भी अपना पॉज़िटिव असर डालता है। जैसे स्वामी दयानंद की विनम्रता ने एक गुस्सैल व्यक्ति को बदल दिया।   

गुस्सैल व्यक्ति और स्वामी दयानंद

एक समय की बात है जब स्वामी दयानंद सरस्वती किसी काम से गंगा तट पर आए थे। और कुछ दिनों के लिए वही ठहरे और अपने लिए वही पास में उन्होंने एक छोटी सी कुटिया बनाई। उन्हीं की कुटिया से थोड़ी दूर पर एक व्यक्ति भी झोपड़ी में रहता था। लेकिन न जाने क्यों वह हमेशा स्वामी दयानंद से चिड़ा हुआ रहता था।

वह रोज़ कोई न कोई बहाना बनाकर स्वामी की कुटिया के पास आकर उन्हें अपशब्द बोलकर जाता था। ताकि स्वामी उससे कुछ कहे, लेकिन स्वामी दयानंद उसकी बात पर ध्यान न देकर मुस्कुरा देते। जिससे वह व्यक्ति थक हारकर वापस अपनी झोपड़ी में चला जाया करता था।

फलों से भरा टोकरा भेजने का प्रसंग

एक दिन स्वामी दयानंद के किसी शिष्य ने उन्हें फलों से भरा टोकरा भेजा। स्वामी दयानंद ने उस टोकरे में से कुछ अच्छे फल छांटकर एक पोटली बनाई और अपने शिष्य को दी और कहा, “ ये फल उस व्यक्ति को दे आओ।”

जब शिष्य फल लेकर उस व्यक्ति के पास पहुंचा, तो वह गुस्से में चिल्लाते हुए कहने लगा, “तुम्हें ज़रूर कोई भूल हुई है, ये फल मेरे लिए नहीं है।”

शिष्य वापस स्वामी दयानंद के पास लौट आया और वहां घटती घटना के बारे में सारी बात बता दी। इस पर स्वामी दयानंद ने शिष्य को वापस उस गुस्सैल व्यक्ति के पास एक संदेश के साथ भेजा।

गुस्सैल व्यक्ति के लिए संदेश

शिष्य उस गुस्सैल व्यक्ति के पास आया, तो उसने फिर चिल्लाते हुए कहा, “तुम फिर आ गए” तब शिष्य ने कहा, “इस बार मैं स्वामी जी का संदेश लेकर आया हूं।” व्यक्ति ने स्वामी का संदेश सुनाने को कहा तो शिष्य ने कहा कि “तुम रोज़ कुटिया में आकर जो हम पर अमृतवर्षा करते हो, उसमें आपकी बहुत शक्ति लगती होगी। ये फल मैंने भेजे हैं, ताकि आपकी शक्ति कम न हो।“

ये कहते हुए जब शिष्य ने उस व्यक्ति को फल दिए, तो वह अपने किए पर बहुत शर्मिंदा हुआ। वह तुरंत स्वामी दयानंद के पास आया और उसने अपने व्यवहार के लिए स्वामी दयानंद से माफी मांगी और कहा, “ स्वामी, आप गुस्से को विनम्रता से जीतना जानते हो।”

सीख

इस कहानी से सीख मिलती है कि हमें अपनी वाणी में विनम्रता रखनी चाहिए। अगर हमसे कोई नाराज या गुस्सा है, तो हमें उसके साथ विनम्रता से, अच्छा व्यवहार ही करना चाहिए। एक न एक दिन तो उस व्यक्ति को अपनी गलती का अहसास हो ही जाएगा।

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