एक पुलिस कांस्टेबल ने बदली सैकड़ों बच्चों की ज़िंदगी

एक पुलिस कांस्टेबल ने बदली सैकड़ों बच्चों की ज़िंदगी

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यह कहानी है, पश्चिम बंगाल स्थित पुरुलिया जिले से 50 किलोमीटर दूर पूंचा गांव के एक ऐसे स्कूल की, जहां पढ़ने वाले बच्चे अपने घर वापस नहीं जाना चाहते। स्कूल उन बच्चों के लिए अब किसी घर से कम नहीं है। अब उन्हें नि:शुल्क शिक्षा के साथ-साथ खाना पीने की चीज़े तो मिल ही रही हैं, साथ ही बेहतर ज़िंदगी बसर करने के लिए वो सारी चीज़े दी जा रही है, जो उन्‍हें कभी नहीं मिल पाई। इलाके के सैकड़ों बच्चों को एक बेहतर जीवन देने के लिए  पुलिस कांस्टेबल अरूप मुख़र्जी तन, मन और धन से जुटे हैं।

कांस्टेबल ने रखी नींव

कोलकाता पुलिस के कांस्टेबल अरूप मुख़र्जी ने साल 2011 में एक अनूठी सोच के साथ “पूंचा नाबदिशा मॉडल स्कूल” की शुरूआत की। वह इलाके के आसपास के गांव में रहने वाले बच्चों को बेहतर जीवन और उज्जवल भविष्य देना चाहते हैं। फिलहाल 112 बच्चे इस स्कूल में नि:शुल्क शिक्षा हासिल कर रहे हैं।

अरुप मुख़र्जी बताते हैं कि मैं बचपन में अपने दादा जी से सुना करता था कि ये लोग बहुत ही गरीब है। उनके पास लालन पालन के लिए भी पैसे नहीं है और वे पूरी तरह अशिक्षित हैं। ऐसे में यह बात मेरे दिमाग में बस गई। मैंने सोचा, क्‍यों न इनके लिए एक स्‍कूल खोला जाए। साल 1999 में जब मुझे कोलकाता पुलिस में नौकरी मिली, तो मैंने थोड़ी बचत शुरू कर दी। स्‍कूल शुरू करने के लिए जब पैसे कम पड़े, तो मैंने अपने दोस्‍तों से उधार लिया। फिर साल 2011 में स्‍थानीय लोगों की मदद से स्कूल की शुरुआत कर दी।

इमेजः फाइल इमेज

दो कमरे से की शुरुआत

वर्ष 2011 में दो कमरे और एक बरामदे से इस स्कूल की नींव रखी गई। शुरूआत में 20 बच्चों का दाखिला हुआ और पिछले सात सालों की मेहनत के चलते अब अरूप ने बच्चों के लिए 9 क्लासरूम बना दिए हैं। इसके साथ अब रसोईघर, सिक्यूरिटी, शौचालय और स्नानगृह भी तैयार हो चुका है। अरूप बहुत खुशी के साथ बताते है कि अब वह बच्चों को निःशुल्क शिक्षा के साथ उन्हें अच्छा भोजन, स्कूल ड्रेस, किताबें भी मुहैया करवा पा रहे हैं।

नेक काम, मिला सम्मान

अरुप मुख़र्जी को पूर्व भारतीय क्रिकेट कप्तान सौरव गांगुली द्वारा आयोजित बंगाली टेलीविजन शो में उनके इस नेक काम के लिए सम्मानित भी किया जा चुका है। इसके बाद उस चैनल ने अरूप मुखर्जी की आर्थिक मदद की ताकि स्‍कूल और बड़ा और बेहतर बन सके।

रामकृष्ण मिशन स्कूल से पढ़ चुके कुछ पूर्व छात्र उन बच्‍चों के लिए हर महीने चावल और दाल देते है और साथ ही अब स्‍थानीय लोग भी बढ़-चढ़ कर मदद कर रहे हैं।

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इमेजः न्यूज 18

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