अब हाथियों को नहीं होगा रेलवे ट्रैक से खतरा

अब हाथियों को नहीं होगा रेलवे ट्रैक से खतरा

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इंसान बड़ी तेज़ी से आधुनिकता की ओर बढ़ते हुए अपनी सुविधा के लिए जंगल काटता जा रहा है। जंगली जानवरों का ठिकाना न होने से वे जंगल से सटे रिहायशी इलाकों में घुस जाते हैं। इसी तरह देश के कोने-कोने तक पहुंचने के लिए इंसान ने रेलवे ट्रैक तो बिछा दिए, लेकिन उसकी वजह से हर साल न जाने कितने जानवर मारे जाते हैं। अगर हाथियों की बात की जाए, तो साल 2018 में ही कम से कम 20 हाथी रेल एक्सीडेंट की वजह से मारे गए हैं।

क्यों मारे जाते हैं हाथी?

आमतौर पर कई तरह के जानवर रेलवे ट्रैक को पार करते हैं और तेज़ रफ्तार होने की वजह से वह आसानी से ट्रेन की चपेट में नहीं आते। हाथी की चाल सामान्य तौर पर धीरे होती है और तेज़ी से आती ट्रेन के सामने से वह कई बार ट्रैक पार नहीं कर पाते। इससे उन्हें गंभीर चोटें आ जाती हैं और कितनी बार गंभीर रूप से घायल हुए हाथियों को बचाना तक मुश्किल हो जाता है। ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए आई आई टी, दिल्ली के प्रोफेसर ‘सुब्रत कर’ साल 2008 से एक डिवाइस बनाने का काम कर रहे थे, जिसे इस साल पूरा किया गया। इस रिसर्च को तेज़ी से आगे बढ़ाने के लिए भारतीय रेलवे ने उनकी आर्थिक मदद करते हुए साल 2014 में तीस लाख रुपये दिए।

हाथियों के लिए सुरक्षा डिवाइस | इमेजः फाइल इमेज

कैसा है यह उपकरण?

इस उपकरण को जब रेलवे पटरियों पर लगाया जाएगा, तो सेंसर कि मदद से पहले दृश्य, गति, ध्वनि, रोशनी और दूसरे पैरामीटर्स को ट्रैक किया जाएगा, जिसकी पुष्टि के बाद यह डेटा ऑटोमेटिक एल्गोरिदम में फीड हो जाएगा। यह एल्गोरिदम तय करेगा कि हाथी या उनका झुंड ट्रैक के नजदीक हैं या नहीं। अगर हां, तो एक संदेश पास के स्टेशन मास्टर और गुज़रने वाली ट्रेन के ड्राइवर को भेजा जाएगा। अगर सेंसर से यह पता चलेगा कि आसपास तेज़ गति वाला कोई जानवर है, तो कोई कारवाई नहीं होगी।

कैसे रुकेगी ट्रेन?

इस डिवाइस को हर ट्रैक पर नहीं लगाया जाएगा बल्कि सिर्फ संवेदनशील स्थानों पर फिट किया जाएगा। देश में ऐसी कई जगह हैं, जहां से रेलवे ट्रैक गुज़रते हैं और आस-पास हाथी पाए जाते हैं, उन रास्तों पर खासतौर से सेंसर लगाए जाएंगे। डिवाइस से जानवर के ट्रैक पार करने की जानकारी तीन किलोमीटर दूर ट्रेन चालक को मिल जाएगी, जिससे उसे ट्रेन को धीमा या बंद करने के लिए लगभग तीन से चार मिनट लगेंगे और इस तरह हाथियों की जान बचाई जा सकेगी।

प्रोफेसर ‘कर’ का यह उपकरण अगले साल 2019 में मॉनसून के दौरान लांच हो जाएगा। उम्मीद है कि इस कोशिश से हज़ारों मासूम जानवरों की जान बचाई जा सकेगी। अगर ऐसा हुआ, तो आधुनिकता इस बार जानवरों के लिए वरदान बन जाएगी। इसकी मदद से हाथियों की आज़ादी को बिना छेड़े, उन्हें बचाया भी जा सकेगा और मंजिल तक भी पहुंचा जा सकेगा।

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