इन दिनों दिल्ली स्मोग की वजह से खूब चर्चा में है। लगातार बढ़ते प्रदूषण की वजह से दिल्लीवासियों की सेहत को तो नुकसान पहुंच ही रहा है लेकिन रोगियों का बहुत ज्यादा बुरा हाल हैं। वैसे तो स्मोग के कई कारण है, जिसमें कचरा जलाने, खेत में पराली जलाने, बढ़ती गाड़ियां और डीजल जेनरेटर शामिल हैं। वैसे देखा जाए, तो भारत में अंतिम संस्कार करने के दौरान भी वायु प्रदूषण होता है और आईआईटी दिल्ली के छात्रों ने इसे कम करने का एक शानदार तरीका निकाला है।
चार लाख पेड़ों का इस्तेमाल
लकड़ियों द्वारा किए जाने वाले अंतिम संस्कार में लगभग 400-500 किलो लकड़ी को जलाया जाता है और दिल्ली में लगभग 80,000 शवों का अंतिम संस्कार इस तरह से किया जाता है। अब आप समझ सकते हैं कि इसमें हर साल चार लाख पेड़ों की लकड़ियों का इस्तेमाल होता है। यह आंकड़ा सिर्फ एक शहर का है, सोचिए देशभर में पर्यावरण को इससे कितना नुकसान पहुंच रहा है।
इको फ्रेंडली
इसे ध्यान में रखते हुए आईआईटी दिल्ली के छात्रों ने इको फ्रेंडली तरीका निकाला है, जिससे वायु प्रदूषण कम होने के साथ अपशिष्ट प्रबंधन भी होगा। 40 छात्रों ने मिलकर अंतिम संस्कार में लकड़ी के स्थान पर गाय के गोबर के कुंदे इस्तेमाल करने की सलाह दी है। इन डंग कुंदों को मशीन से बनाया जाता है। इसमें पहले 50 डिग्री तापमान पर गोबर को सुखाया जाता है और फिर मशीन की मदद से कुंदे तैयार किए जाते हैं।
नई तकनीकों का कम इस्तेमाल
युवा वैज्ञानिकों के दल ने बताया कि टीम ने दिल्ली के निगम बोध घाट सहित 50 शमशानों का सर्वे किया। इसमें पाया गया कि अधिकतर लोग शवों को लकड़ी से ही जलाते हैं। कई शमशानों में बिजली या सीएनजी जैसी वैकल्पिक व्यवस्था है लेकिन बहुत कम लोग इसका इस्तेमाल करते हैं। ऐसे में गाय के गोबर के कुंदे का इस्तेमाल अच्छा विकल्प हो सकता है।
शहरों में गोबर डिस्पोजल की समस्या
दिल्ली जैसे कई महानगरों और शहरों में काफी संख्या में गौशालाएं हैं, जिनमें काफी संख्या में गायें रहती हैं और ऐसे में गोबर को मैनेज करना भारी समस्या हो जाती है। इसे कई बार खाली जगहों पर फेंक दिया जाता है और बदबू के कारण आसपास के लोगों को परेशानी होती है। अंतिम संस्कार में गोबर का इस्तेमाल करने से न सिर्फ वायु प्रदूषण कम होगा बल्कि वेस्ट मैनेजमेंट का भी ये एक बेहतरीन तरीका बन सकता है।
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