इलाहाबाद जिले का कोरांव और शंकरगढ़ ऐसा गांव है, जहां जनजातीय समुदाय के लोग अधिक हैं और उनके लिए भूखे सोना आम बात हैं क्योंकि उन्हें खाने के लिए अन्न मिलना बहुत मुश्किल हो जाता हैं। लेकिन अब यहां रहने वाले लोगों को उम्मीद की किरण नजर आई है और इसका कारण वहां कुछ समय पहले ही खोला गया अनाज बैंक है। इस बैंक को खोलने का आइडिया सुनीत सिंह का था, जो झांसी के जीबी पंत इंस्टिट्यूट ऑफ सोशल साइंस में प्रोफेसर हैं।
300 परिवारों को भोजन
उन्होंने स्थानीय एनजीओ प्रगति वाहिनी फाउंडेशन द्वारा चलाए जाने वाले एक स्वयं सहायता समूह (एसएचजी) को ‘अनाज बैंक’ खोलने का आइडिया दिया। अब यह अनाज बैंक करीब बीस गांवों में पहुंच गया हैं, जिससे करीब 300 परिवारों को खाने के लिए भोजन उपलब्ध हो रहा हैं।
हर गांव में अनाज का ड्रम
स्वयं सहायता समूह ने हर गांव में 300 किलो की क्षमता का बड़ा ड्रम रखवाया है, जिसमें अनाज भरा रहता है और जब भी लोगों को जरूरत पड़ती है, वो वहां से अनाज लेकर जा सकते हैं।
उधार में अनाज
सुनीत सिंह ने कहा कि कोई भी व्यक्ति एक किलो चावल देकर इस अनाज बैंक का सदस्य बन सकता है। जरूरत पड़ने पर वह पांच किलो चावल इस बैंक से उधार ले सकता है, जिसे 15 दिनों के अंदर लौटाना जरूरी हैं। इसके लिए गांव वालों से कोई ब्याज नहीं लिया जाता है।
बड़े स्तर पर योजना
सुनीत सिंह और उनके साथी अनाज बैंक को और भी बड़े स्तर पर लाना चाहते हैं। इसलिए इस पहल को उन्होंने जिले के अन्य ब्लॉकों में भी शुरू करने की योजना बनाई हैं। उन्होंने अपने उद्देश्य को हासिल करने के लिए एक खास संगठन भी बनाया हैं।
छोटे-छोटे प्रयासों से बड़ा बदलाव
जो लोग चावल दान में देते हैं, उसे संगठन जमा करता है और फिर गांवों के ड्रम में डाल दिया जाता हैं ताकि किसी को भूखे सोने की नौबत ना आए। उत्तर प्रदेश जैसे राज्य में ऐसी पहल को सफल बनाना बहुत ही बड़ी बात है और इससे ये भी पता चलता है कि वाकई में अगर छोटे-छोटे स्तर पर भी काम किया जाए, तो समाज में कितना बदलाव लाया जा सकता है।
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