खादी, एक ऐसा कपड़ा जिसका नाम लेते ही आज़ादी की लड़ाई और महात्मा गांधी की तस्वीर आंखों में तैर जाती है। कहने को तो महज़ यह एक कपड़ा है, लेकिन आज़ादी की लड़ाई में खादी ने एक विचार और भावना बनकर लोगों को आत्मनिर्भर बनने के लिए प्रेरित किया, तभी तो खादी को ऐतिहासिक विरासत माना जाता है।
ऐसे हुआ था खादी का जन्म

महात्मा गांधी ने आज़ादी की लड़ाई के दौरान लोगों को आत्मनिर्भर बनाने और उन्हें एकजुट करने के लिए चरखा और खादी का सहारा लिया। जब उन्होंने विदेशी सामान के बहिष्कार की बात कही, तो अपने लिए खुद कपड़े बनाना एक बड़ी चुनौती थी। इस चुनौती से निपटने के लिए ही खादी का जन्म हुआ।
दरअसल, अपनी आत्मकथा में गांधी जी ने ज़िक्र किया है कि कैसे विदेशी मिल के कपड़ों का बहिष्कार करने के बाद उन्हें और उनके आश्रमवासियों को देसी सूत कातने वाले बुनकरों को ढूंढ़नें में परेशानी हुई। काफी कोशिशों के बाद बुनकर मिले तो सही, लेकिन गांधी जी को लगा कि किसी और से सूत कतवाने के कारण तो वह कातनेवालों के एजेंट बन जायेंगे। फिर उन्होंने तय किया कि खुद ही चरखे की मदद से सूत से कपड़ा बुनेंगे और इस तरह खादी का जन्म हुआ। हालांकि यह सब करने में उन्हें बहुत मुश्किलों का सामना करना पड़ा, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी।
गांधी और खादी

महात्मा गांधी और खादी दोनों ही स्वाधीनता संग्राम के पर्याय बन गये थे क्योंकि वह चरखे से कपड़े बनाकर न सिर्फ लोगों को तन ढंकना सिखा रहे थे, बल्कि आत्मनिर्भरता और गरीबी के खिलाफ भी लड़ रहे थे। विदेशी चीज़ों के बहिष्कार और स्वदेशी के इस्तेमाल से लोगों को रोज़गार मिला और वह आत्मनिर्भर बनें। गांधी जी ने चरखे की मदद से सबके साथ मिलकर सूत काते और इससे खादी के कपड़े बनें। उस दौर में खादी देश भक्ति का प्रतीक बन गई थी। आज भी 26 जनवरी और 15 अगस्त के मौके पर राजनेता से लेकर आम जनता तक खादी के कपड़े पहनना पसंद करते हैं।
फैशन बन गया खादी

भले ही हर कोई खादी न पहनता हो, लेकिन आज की तारीख में खादी फैशन ज़रूर बन गया है। बड़े-बड़े फैशन शो में भी डिज़ाइनर जैकेट से लेकर स्कर्ट और कुर्ता/कुर्ती बनाने के लिए खादी का इस्तेमाल करते हैं। यही नहीं खादी के कपड़े सिर्फ देश ही नहीं विदेशों में भी पसंद किये जाते हैं। आंध्रप्रदेश, पश्चिम बंगाल, कर्नाटक, उत्तरप्रदेश और बिहार आदि राज्यों से लाये गये अलग-अलग तरह की खादी से इंडियन और वेस्टर्न हर तरह की ड्रेस तैयार की जाती है।
खादी ऐतिहासिक विरासत है जिसे सहेजे रखने की ज़रूरत है और इसके लिए खादी ग्रामोद्योग को बढ़ावा दिया जाना चाहिये।
और भी पढ़े: बच्चों के साथ आसान बनायें ट्रैवल
अब आप हमारे साथ फेसबुक और इंस्टाग्राम पर भी जुड़िये।