बाल-गोपाल कहें या लड्डू गोपाल, देवकी नंदन कहें या नंद लाला, कन्हैया कहे या कृष्णा, उसके नाम अनेक हैं लेकिन अर्थ केवल एक है – आपके अंदर की खुशी। जानना चाहेंगे कैसे, चलिये बताते हैं।
मन की खुशी है कृष्णा
आपके जीवन में जो कुछ भी होता है, वो कहीं न कहीं महाभारत और रामायण जैसे महाकाव्यों से जुड़ा होता है। अपने सामने आई परिस्थितियों का सामना कैसे करें, इसका जवाब भी आप इन महाकाव्यों में ढ़ूंढ सकते हैं। जैसे कि श्री कृष्ण का जन्म आपको आपके अंदर की खुशी या अहम जैसी भावनाओं को समझने में मदद करेगा, जिसको आगे विस्तार से समझाते हैं।
श्री कृष्ण की मां देवकी यदि एक शरीर का प्रतीक हैं, तो उनके पिता वासुदेव जीवन शक्ति यानि प्राण के प्रतीक हैं। जब एक शरीर में प्राण आ गये, तो खुशी यानि की श्री कृष्ण का जन्म हुआ। वहीं कंस यानि अहम का प्रतीक खुशी (श्री कृष्ण) को नष्ट करने की कोशिश करता है। कंस देवकी का भाई है, जिसका मतलब है कि अहम का जन्म शरीर के साथ ही हो जाता है।
एक खुश व्यक्ति (श्री कृष्ण) कभी किसी को कष्ट नहीं पहुंचाता, लेकिन वह व्यक्ति जो खुद चोटिल हो और भावनात्मक तौर पर घायल हो (कंस), वह दूसरों को भी नुकसान पहुंचाने की कोशिश करता है। जिन लोगों को लगता है कि उनके साथ अन्याय हुआ है, वह दूसरों के साथ भी अन्याय करते हैं, जबकि उनको ऐसा नहीं करना चाहिये क्योंकि वह खुद समझते हैं कि अन्याय का व्यक्ति के ऊपर कैसा असर होता है।
अहम की भूमिका
अहम का सबसे बड़ा शत्रु खुशी है। जहां खुशी और प्यार होता है, वहां अहम टिक ही नहीं सकता हैं। चाहे एक व्यक्ति समाज के सबसे प्रतिष्ठित पद ही क्यों न बैठा हो, लेकिन वो एक छोटे बच्चे की मुस्कुराहट के आगे पिघल जाता है। एक व्यक्ति कितना भी ताकतवर क्यों न हो, लेकिन अपने बच्चे के बीमार पड़ने पर लाचार और बेबस महसूस करता है। प्रेम, सरलता और आनंद के साथ सामना करने पर अहंकार पिघल जाता है।
श्री कृष्ण आनंद के प्रतीक होने के साथ-साथ, सादगी और प्रेम के स्रोत हैं।
इस जन्माष्टमी प्रेम की तरफ ‘कदम बढ़ायें सही’।
– जीवन को सादगी से जियें।
– अपने मन में दूसरों के लिए करुणा और प्रेम रखें।
– अपने आप-पास इतनी खुशियां फैलायें कि अहम के लिए जगह न बचें।
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