‘केवल दूसरों के लिए जिया गया जीवन ही सार्थक होता है।’
अल्बर्ट आइंस्टीन के इस कथन को छह रियल लाइफ हीरो सार्थक कर रहे हैं। जो अपने लिए नहीं, बल्कि निःस्वार्थ भाव से मानवता की सेवा कर रहे हैं। इनके बारे में जानकर आपका अच्छाई पर विश्वास और मज़बूत हो जाएगा।
सुजीत चट्टोपाध्याय
कोलकाता के कैकोफोनी से तीन घंटे की दूरी पर वर्धमान के औसग्राम गांव में रहने वाले सुजीत चट्टोपाध्याय पेशे से शिक्षक हैं। 76 वर्षीय सुजीत को लोग ‘मास्टर मोशाई’ कहते हैं। वह अपने आंगन में करीब 350 छात्रों को पढ़ाते हैं, जिसमें से 80 प्रतिशत लड़कियां लोअर मिडिल क्लास परिवार की हैं। सुजीत बच्चों को पढ़ाने के लिए सालाना महज़ 2 रुपए की फीस लेते हैं, उनके घर के इस स्कूल का नाम है ‘सदई फकीर पाठशाला’। उनके स्कूल के कई बच्चे बोर्ड परीक्षा में अच्छे अंक हासिल करके जीवन में आगे बढ़ चुके हैं।
करीमुल हक
करीमुल हक जब 30 साल के थे, तो उन्होंने समय पर एंबुलेंस न मिलने की वजह से अपनी मां को खो दिया। किसी अपने को खोने का दुख बहुत गहरा होता है। कुछ सालों बाद जब करीमुल का सहयोगी अजीजुल बीमार पड़ा, बिना एक पल समय गंवाए करीमुल ने उसे पीठ पर बांधकर 50 किलोमीटर दूर अस्पताल पहुंचाया। इसके बाद से करीमुल का मिशन शुरू हो गया। वह नहीं चाहते थे कि कोई गरीब इलाज न मिलने की वजह से मौत के मुंह में समा जाएं। उन्होंने एक बाइक खरीदी और उससे ही ज़रूरतमंदों को अस्पताल पहुंचाने लगें। अब तक वह पश्चिम बंगाल के 20 गांवों के करीब 4000 लोगों को जान बना चुके हैं। बाइक एंबुलेंस दादा के नाम से मशूहर करीमल को अपने महान काम के लिए पदम श्री से भी सम्मानित किया जा चुका है।
बीना राव
कभी-कभी हम सभी को बदलाव के लिए एक प्रेरणा की ज़रूरत होती है। बीना के लिए वह प्रेरणा हमेशा से उनके वायलिन वादक पिता रहे। वह अपने खाली समय में नेत्रहीन छात्रों को सिखाते थें। बीना ने अपनी कोशिशों से हज़ारों स्लम स्टुडेंट की लाइफ बदल दी। उन्होंने गरीब बच्चों के लिए ‘प्रयास’ मुफ्त कोचिंग इंस्टीट्यूट की शुरुआत की। 2006 में 34 लोगों की टीम के साथ शरू हुआ यह कोचिंग संस्थान अब काफी बड़ा हो चुका है। यह संस्थान सूरत के 8 अलग-अलग जगहों पर करीब 5000 बच्चों को पढ़ाता है। पाठ्यक्रम में योग, अनुशासन और रीति-रिवाज़ों को भी शामिल किया गया है।
समीर वोहरा
जीवन में आप जो सचमुच में करना चाहते हैं, उसके लिए आरामदायक जीवन और हाई सैलरी वाली नौकरी छोड़ने का साहस कम ही लोग कर पाते हैं। मगर मुम्बई के रहने वाले समीर वोहरा ने ऐसा करके दिखाया है। उन्होंने अपना जीवन रेस्क्यू किए गए जानवरों का घर बनाने में समर्पित कर दिया है। कुत्ते, बिल्ली, भेड़, गाय, बैल, सुअर, घोड़े, बकरी, गधे से लेकर तोते और कछुए, इन सभी 370 जानवरों को वह बचा चुके हैं। इसके अलावा वह जानवरों की नसबंदी और टीकाकरण का काम भी करते हैं। साथ ही वह इंसानों को भी रेबीज के टीके लगाते हैं।
गुलाब सिंह जी
अगली बार जब आप जयपुर जाए तो बाकी जगहों के साथ ही गुलाब सिंह जी के यहां जानना न भूलें, क्यों? क्योंकि यहां आपको कड़क चाय के साथ टेस्टी समोसा, बन मस्का और ढेर सारा प्यार मिलेगा। 94 वर्षीय गुलाब सिंह जी पिछले 73 सालों से गरीबों को खाना खिला रहे हैं। वह हर दिन गरीब 200 भिखारियों का मुफ्त भोजन देते हैं। उनका मकसद यह सुनिश्चित करना है कि कोई भी भूखा न सोए।
गिरिश भरद्वाज
पदम श्री सम्मानित मैंगलोर के गिरिश को भारत का ब्रिज मैन कहा जाता है। उन्होंने अपनी डिग्री और बुद्धि का इस्तेमाल लोगों की भलाई के लिए किया। वह पारंपरिक लागत के दसवें हिस्से में न सिर्फ सरंचनाओं का निर्माण करते हैं, जो अन्य सरकारी योजनाओं की तुलना में न सिर्फ सस्ता है, बल्कि जल्दी भी बनाते हैं। वह अधिकतर निर्माण ग्रामीण इलाकों में करते हैं, जहां पुलों की सख्त ज़रूरत है। वह अब तक कुल 127 ब्रिज बना चुके हैं, जिसमें कर्नाटक 91, केरल में 30 और उड़ीसा और आंध्र प्रदेश में बने तीन-तीन ब्रिज शामिल हैं।
समाज की भलाई के लिए अपना जीवन समर्पित करने वाले ऐसे हीरो को हमारा नमन।
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