कभी-कभी कठिन समय और कठिन हालात इंसान को ऐसे मोड़ पर ले आते हैं, जहां वह निराशा से घिर जाता है। ऐसी कठिन परिस्थिति में, निराशा से उबरने के लिए उस व्यक्ति को थोड़ा सा प्रोत्साहन चाहिए होता है। कुछ प्रेरक शब्द और बातें, उस निराशा में डूबे व्यक्ति के लिए जादू की तरह काम करते हैं। कुछ ऐसी ही डॉक्यूमेंट्री फिल्में हैं, जो आपको पॉज़िटिविटी से भर देगी।
मशीन
इस फिल्म में फैक्ट्री के माहौल को दर्शाया गया है, जहां मज़दूरों को रंगीन कपड़े बनाने के लिए 12 घंटे की शिफ्ट में रखा जाता है। 75 मिनट की इस फिल्म में बड़ी बारीकी से दिखाया गया है कि एक मशीन के पीछे कैसे मज़दूर काम करता है और हर मज़दूर की अपनी क्या खासियत है। राहुल जैन की इस फिल्म में उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल के मज़दूरों की कहानी बयान की है, जो 7000 रूपये महीने की खातिर कैसे काम करते हैं।
सीख – फिल्म में सभी तरह की मानवीय संवेदनाओं को पर्दे पर उतारा गया है।
लेडीज़ फ़र्स्ट
झारखंड के रांची में एक साधारण परिवार में रहने वाली दीपिका कुमारी की कहानी है। जिसका बचपन से सपना था कि वो तीरंदाज बने और इस क्षेत्र में अपना नाम कमाए। दीपिका की जिद ही थी जिसने उसे इस मुकाम तक पहुंचाया। शहाना लेवी बहल की इस फिल्म में उन्होंने दिखाया की कैसे दीपिका ने अपने दृढ़संकल्प की वजह से देश और दुनिया में अपनी एक अलग पहचान बनाई। लेकिन उनका यह सफर इतना आसान नहीं था। दीपिका ने संघर्षों से लड़कर यह मुकाम हासिल किया है।
सीख – हालात चाहें जैसे भी हो हिम्मत नहीं हारनी चाहिए। कठिन परिश्रम और दृढ़संकल्प से सफलता ज़रूर मिलती है।
चिल्डर्न ऑफ़ द पयरे
बनारस पर आधारित इस फिल्म में सात अद्भुत बच्चों की कहानी है, जो रोज़ी रोटी के लिए गंगा के किनारे भारत के सबसे बड़े श्मशान, मणिकर्णिका में दाह संस्कार करते हैं। इनका पूरा दिन मणिकर्णिका के आसपास बीतता है। साल 2008 में बनी 1 घंटे और 14 मिनट की इस फिल्म में न केवल बाल श्रम के मुद्दों को उठाया गया, बल्कि स्वास्थ्य और स्वच्छता पर भी ज़ोर देती है।
सीख – बच्चों के बचपन को संवारे।
गुलाबी गैंग
यह डॉक्यूमेंट्री उत्तर प्रदेश की एक महिला रज्जो की कहानी पर आधारित है। जो माधवपुर में महिलाओं के लिये एक आश्रम चलाती है। इस आश्रम में महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने और नारी सशक्तीकरण पर काम होता है। इसमें रहने वाली महिलाओं की टोली गुलाबी गैंग के नाम से जानी जाती है।
सीख – कभी अन्याय सहे नहीं और नहीं किसी को सहने दें।
स्माइल पिंकी
स्माइल पिंकी की कहानी उत्तर प्रदेश के जिले मिर्जापुर के एक छोटे से गांव की एक छह साल की बच्ची की है जिसे जन्म से ही होठों की परेशानी है। इसके बावजूद वह जीवन से जुड़ी हुई समस्याओं अपने मुस्कान के साथ जीती है। 29 मिनट की इस डॉक्यूमेंट्री में लोगों के इस तरह के होठों की परेशानी झेल रहे लोगों तक जागरूकता पहुंचाने की कोशिश है, जिसका इलाज संभव है।
सीख – जीवन में दुःखों को भूल कर आगे बढ़ें।
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