मेरी प्यारी बेटी
यूं तो मैं हमेशा तुम्हारे आसपास ही रहती हूं लेकिन कभी कभी लगता है कि शायद मैं तुम्हें वो नहीं कह पाती जो मेरे मन में है। पर तुम फिर भी मेरे मन की बात को समझ जाती हो। कुछ ऐसा ही इमोशनल रिश्ता है हम दोनों में। याद है तुम्हे जब तुम्हारी एग्ज़ाम की डेटशीट आई थी, तो तुमसे ज़्यादा मैं उत्साहित थी, मैंने तुम्हारे एक- एक विषय और डेट का रट्टा लगा लिया था। तुम उस वक्त मुझे प्यार से झिड़क रही थी कि मंमा, आप इतना स्ट्रैस क्यों ले रही हो।
बेटा, मैं तुम्हें इस लैटर के ज़रिए बताना चाहती हूं कि मैं स्ट्रैस नहीं ले रही हूं और न ही मुझे इस बात की चिंता है कि तुम एग्ज़ाम की तैयारी कैसे कर रही हो और कितनी रिविज़न हो गई है। मैं सिर्फ तुम्हारे साथ खड़ी रहना चाहती हूं ताकि तुम्हें कभी अकेलापन महसूस न हो।
एक समय पहले मैं भी इस दौर से गुज़र चुकी हूं। तब शायद कॉलेज की चिंता और करियर की चिंता इतनी ज़्यादा नहीं होती थी और न ही बच्चों में इतना ज़्यादा स्ट्रैस होता था कि वह कोई गलत कदम उठा लें। पर आज के इस कॉम्पिटिशन के दौर में बच्चे ज़रूरत से ज़्यादा स्ट्रैस लेते हैं।
इसलिए मैं सिर्फ तुमसे इतना ही कहना चाहती हूं कि तुम जो भी करो, मन से करो। मार्क्स कितने आएं, भविष्य क्या होगा, इन चिंताओं से बाहर निकलकर सिर्फ पढ़ाई पर ध्यान दो। रोज़ शाम पार्क जाकर जो तुम स्टोरी लिखती हो या ड्राइंग करती हो, उसे ज़ारी रखो। रात को अपनी फेवरेट किताब पढ़कर सोओ।
तुम जो भी करोगी, हम तुम्हारे साथ है। अपने पर भरोसा रखो और आगे बढ़ती चलो। हमेशा याद रखो कि
“ज़िंदगी में अभी तो उड़ना सीखा है,
अपने पंखों को फैलाना सीखा है,
आसमान पूरा अपना है,
असली उड़ान सीखना अभी बाकी है।“
तुम्हारी मां
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