कोरोना महामारी की वजह से पूरी दुनिया महीनों से बहुत मुश्किल दौर से गुज़र रही है, लेकिन इस महामारी ने हमें कुछ अच्छी चीज़ें भी सिखाई हैं और ज़िंदगी में कुछ सकारात्मक बदलाव आए हैं जिसे शायद ही लोग बदलना चाहे।
बहुत अधिक पाने की चाह
इस महामारी ने लोगों को कम सुविधाओं के साथ जीना सिखा दिया है। अब वह ज़िंदगी में ज़्यादा पाने की बजाय जो है उसी में खुश और संतुष्ट रहना सीख चुके हैं। ज़्यादा पैसे, प्रमोशन के चक्कर में परिवार और सेहत की अनदेखी अब वह नहीं करते हैं और चाहते हैं यह स्थिति कोरोना के बाद भी बनी रहे और वह ज़्यादा पाने की बजाय अपने शरीर और मन की ज़रूरतों का ध्यान रखें।
परिवार के साथ समय बिताना
महामारी ने हमें एक और बहुत कीमती चीज़ दी है वह है परिवार के साथ समय बिताने का मौका। इससे पहले ऑफिस की व्यस्तताओं के कारण जहां हम परिवार के साथ भोजन तक नहीं कर पाते थे, अब हर दिन एक साथ रहने, मस्ती करने, गेम खेलने का मौका मिला है। ऑफिस की बजाय अब घर हमारी दिनचर्या का केंद्र बिंदु बन गया है। ऑफिस का काम करते हुए भी हम बच्चे, घर के बुज़ुर्गों की देखभाल कर पा रहे हैं इससे अच्छी भला और क्या हो सकती है और कोई इस सहूलियत को आगे भी खोना नहीं चाहेगा।
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वर्कफ्रॉम होम की बढ़ी अहमियत
पहले कभी किसी कारणवश यदि कोई कर्मचारी वर्कफ्रॉम होम का विकल्प मांगता भी था, तो बॉस के नाक-भौंह सिकुड़ जाते थे और उनकी दलील होती थी कि घर से काम अच्छी तरह नहीं हो पाएगा, लेकिन कोरोना काल में जब अधिकांश कर्मचारी घर से काम कर रहे हैं और पूरी ईमानदारी के साथ तो शायद अब बॉसेस की इस बारे में सोच बदली हो और आगे भी वर्कफ्रॉम होम का कल्चर जारी रहे।
अपने आप पर ध्यान देना
कोरोना की वजह से ही सही अब हर कोई अपनी शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को लेकर बहुत जागरुक हो गए हैं। साथ ही सेहतमंद भोजन की अहमयित भी उन्हें समझ आ गई है, क्योंकि ये सारी चीज़ें उन्हें सिर्फ कोरोना ही नहीं और भी कई बीमारियों से बचाकर रख सकती है। तभी तो योग और कसरत ऐसे लोगों की दिनचर्या में भी शामिल हो चुका है जो पहले समय न होने का बहाना बनाकर कसरत से हमेशा बचते रहते थे। उम्मीद है स्वास्थ्य के प्रति यह जागरूकता कोविड-19 के बाद भी बनी रहेगी।
किसी ने सच ही कहा है हर बुराई में अच्छाई छिपी होती है ज़रूरत होती है बस उसे पहचानने के लिए पारखी नज़र की।
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