‘प्ले-स्टेशन’ बच्चों का ही नहीं बल्कि बड़ों का भी पसंदीदा गेम है क्योंकि इसमें गेम खेलते हुये रियल लाइफ एक्सपीरिएंस मिलता है। लेकिन इसकी पॉपुलेरिटी ने मार्किट में कॉम्पिटिशन भी बढ़ा दिया और नतीजा यह हुआ कि अब आपको इंटरनेट पर एक से बढ़कर एक बेहतरीन ऑनलाइन गेम्स ऑफर हो रहे है। शुरु में गेम खेलने के शौकीन लोगों ने इसका खुले दिल से स्वागत किया, लेकिन धीरे-धीरे अब उनका गेम्स के प्रति यह प्यार ‘लत’ में बदलता जा रहा है।
एक ऐसी लत, जिसके चलते सभी ज़रूरी काम पीछे छूट जाते है। हाल ही में एक किस्सा सामने आया था, जिसमें एक लड़का अपनी शादी के दिन स्टेज पर गेम खेलता नज़र आया। इतना ही नहीं कई लोग तो गेम खेलने के चक्कर में खाना-पीना, स्कूल-कॉलेज जाना और यहां तक कि ऑफिस जाना भी मिस कर देते हैं। दरअसल ऑनलाइन गेम्स को आप ज़्यादा समय के लिए पॉज़ नहीं कर सकते, इसलिए गेम-प्रेमियों को उसके मिस हो जाने की चिंता सताती रहती है।
क्या कहना है डब्लूएचओ का ?
इसी लत के चलते हाल ही में डब्लूएचओ यानि वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाईज़ेशन ने ‘गेमिंग डिस्ऑर्डर’ को ऑफिशियली एक बीमारी का नाम दिया है। हालांकि यह निर्णय पूरी गेमिंग इंडस्ट्री को नज़र में रखते हुये लिया गया है, लेकिन इसके पीछे ‘फोर्टनाइट’ नाम के एक गेम का सबसे बड़ा हाथ है। फोर्टनाइट के यूनीक स्टाइल और हर प्लेटफॉर्म पर एक्सेसेबलिटी ने इसे गेमिंग इंडस्ट्री को मेन-स्ट्रीम में ला दिया है और गेम खेलने वाले लोग इसकी लत में फंसते जा रहे हैं। डब्लूएचओ ने गेमिंग डिस्ऑर्डर की डेफिनेशन भी शेयर की है।
डिसीज़न पर लोगों की सोच
डब्लूएचओ के इस डिसीज़न पर पूरी दुनिया के लोगों की अलग-अलग प्रतिक्रिया आ रही है। जहां एक तरफ कुछ लोगों ने इसका स्वागत किया है, तो वहीं दूसरी ओर गेमिंग इंडस्ट्री समेत कई लोगों ने इसे नकार दिया है।
अब लोग चाहे जो भी कहें, लेकिन किसी भी चीज़ की ‘लत’ गलत ही है और इससे दूर रहना ही बेहतर है।
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