गौतम बुदध का जीवन लोगों को सत्य, प्रेम और करूणा का प्रेरणा देता रहा है। फिर चाहे उनके कहे गए शब्द हो या फिर उनकी प्रतिमा। अगर गौर किया जाए, तो गौतम बुद्ध की हर प्रतिमा में वह हमेशा अलग-अलग मुद्रा धारण किए हुए हैं। उनकी इस मुद्रा में जीवन का कोई न कोई संकेत छिपा है, जिसे बुदध मुद्रा कहते हैं।
बुद्ध की विभिन्न मुद्राएं
अंजलि मुद्रा
यह संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ अर्पित करना होता है। इसे “नमस्कार मुद्रा” या “हृदयांजलि मुद्रा” भी कहते हैं, जो अभिवादन, प्रार्थना और आराधना के इशारे का प्रतिनिधित्व करती है। यह भारत में लोगों का अभिवादन करने के लिए उपयोग की जाने वाली सामान्य मुद्रा है। यह मुद्रा श्रेष्ठ को नमस्कार का प्रतीक है और इसे सम्मान के साथ आदर का संकेत माना जाता है।
ध्यान मुद्रा
इस मुद्रा को “समाधि या योग मुद्रा” भी कहा जाता है। इस मुद्रा में दोनों हाथों को गोद में रखा जाता है, दायें हाथ को बायें हाथ के ऊपर पूरी तरह से उंगलियां फैला कर रखा जाता है। साथ ही अंगूठे को ऊपर की ओर रखा जाता है और दोनों हाथ की अंगुलियां एक दूसरे के ऊपर टिका कर रखा जाता है। यह मुद्रा ध्यान के लिए मन को शांत करने में मदद करती है और इसका उपयोग गहरी चिंतन और प्रतिबिंब के लिए किया जाता है। ध्यान की मुद्रा बुद्ध शाक्यमुनि का एक विशिष्ट संकेत है।
वरद मुद्रा
यह मुद्रा अर्पण, स्वागत, दान, देना, दया और ईमानदारी का प्रतिनिधित्व करती है। इस मुद्रा में दायें हाथ को शरीर के साथ स्वाभाविक रूप से लटकाकर रखा जाता है, खुले हाथ की हथेली को बाहर की ओर रखते हैं और उंगलियां खुली रहती है तथा बायें हाथ को बायें घुटने पर रखा जाता है। यह मुद्रा पांच उंगलियां पांच सिद्धियों का प्रतिनिधित्व करती हैं यानी कि उदारता, नैतिकता, धैर्य, परिश्रम और ध्यान। यह “सत्य का उपहार” का प्रतीक है। इस मुद्रा को धर्म या बौद्ध शिक्षाओं का अनमोल उपहार माना जाता है।
अभय मुद्रा
संस्कृत शब्द अभय का मतलब निडर होना। यह मुद्रा अंगूठे और तर्जनी उंगली मिलाकर अभय मुद्रा की जाती है। इस मुद्रा में सबसे पहले किसी भी सुखासन में बैठकर अपने दोनों हाथों की हथेलियों को सामने की ओर करते हुए कंधे के पास रखते है। ज्ञान मुद्रा करते हुए आंखों को बंद कर गहरी श्वांस लें और छोड़ें और शांति तथा निर्भीकता को महसूस करें, यही है ‘अभय मुद्रा। इस मुद्रा में बुद्ध की मूर्ति सबसे प्रसिद्ध है। यह मुद्रा डर का सामना करने की ऊर्जा देती है। यह मुद्रा शक्ति और आंतरिक सुरक्षा का प्रतीक है। यह वह मुद्रा है जो दुसरे लोगो में भी निर्भयता की भावना पैदा करती है।
वितर्क मुद्रा
यह बुद्ध की शिक्षाओं के प्रचार और परिचर्चा का प्रतीक है। इस मुद्रा में अंगूठे के ऊपरी भाग और तर्जनी को मिलाकर किया जाता है, जबकि अन्य उंगलियों को सीधा रखा जाता है। यह लगभग अभय मुद्रा की तरह है लेकिन इस मुद्रा में अंगूठा तर्जनी उंगली से स्पर्श है। यह मुद्रा शिक्षण की ऐसी तकनीक की अनुभूति कराती है, जिसमें बिना किसी शब्द के शिक्षा और ज्ञान का संचार होता है।
भूमिस्पर्श मुद्रा
इस मुद्रा को “पृथ्वी को छूना” (“टचिंग द अर्थ”) भी कहा जाता है, जोकि बुद्ध की ज्ञान प्राप्ति के समय का प्रतिनिधित्व करती है। इस मुद्रा में हमेशा सीधा हाथ भूमि को स्पर्श करता दिखता है जबकि बायां हाथ गोद में रखा जाता है। बुद्ध की इस मुद्रा के बारे में ऐसा कहा जाता है कि पृथ्वी उनके ज्ञान की साक्षी है। जब उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई थी तब वह इस मुद्रा में थे। यह मुद्रा असीम शक्ति,सत्य और ज्ञान प्राप्ति के प्रति बुद्ध के समर्पण का प्रतिनिधित्व करती है। इस ऊर्जा के सहारे ही गौतम बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति हो पाई थी और उनके लक्ष्य में आ रही बाधाओं से संघर्ष करने और अज्ञान के अंधकार से लडऩे में मदद मिली थी।
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