यदि आप यह सोचते हैं कि बच्चों को बस एक दिन में ही ज़िम्मेदार बनाया जा सकता है, तो आप गलत है। उन्हें ज़िम्मेदार बनाने की प्रैक्टिस छोटी उम्र से ही शुरू कर देनी चाहिये, वरना आगे चलकर वह हालात के मुताबिक खुद को नहीं ढाल पायेंगे।
6 साल की प्रिशा स्कूल से आने के बाद अपना बैग टेबल पर रखती है, खेलने के बाद अपने सारे खिलौने भी जगह पर अरेंज करके रख देती है। इतना ही नहीं खाने के बाद अपनी प्लेट और गिलास उठाकर सिंक में रखती है, जबकि उसके बाकी फ्रेंड्स ऐसा नहीं करते हैं। प्रिशा यह सब इसलिये कर पा रही है क्योंकि उसकी मम्मी ने उसे इसी उम्र से छोटी-छोटी ज़िम्मेदारियां उठाना सिखा दिया है, जिससे आगे चलकर प्रिशा को दिक्कत न हों।
यदि आप भी चाहते हैं कि आपका बच्चा भी प्रिशा की तरह ज़िम्मेदार बनें, तो आपको आज से ही यह प्रैक्टिस शुरू कर देनी चाहिये।
जल्दी शुरूआत
बच्चों को जितनी जल्दी ज़िम्मेदारी का एहसास दिलाया जाये, उतना अच्छा होगा। मगर इसका यह मतलब नहीं है कि आप उन्हें ढ़ेर सारा काम पकड़ा दें, बल्कि उम्र के हिसाब से उन्हें छोटी-छोटी ज़िम्मेदारियां दें। जैसे- डायनिंग टेबल ठीक करने को कहें या बर्तन उठाकर किचन में रखने को कहें।
काम में मदद
यदि आपके हाथ में कई काम हैं, तो बच्चे की मदद लें। कुछ काम उसे करने को कहें, इससे कई फायदे होंगे। एक तो आपकी और बच्चे की बॉन्डिंग मज़बूत होगी, आपका काम जल्दी हो जाएगा, बच्चा ज़िम्मेदारी निभाना सीखेगा और उसे लगेगा कि आपकी नज़रों में उसकी बहुत वैल्यू है।
रोल मॉडल बनें
यह बात सौ फीसदी सच है कि चाहे बच्चों को कितना भी ज्ञान क्यों न दे दिया जायें, वह अपने पैरेंट्स को देखकर ही सीखते हैं। इसलिए पैरेंट्स को उनके सामने वैसा ही व्यवहार करना चाहिये, जैसा कि वह बच्चों से चाहते हैं। मसलन यदि आप चाहते हैं कि बच्चा अपना काम खुद करना सीखें, तो पहले उसके सामने आपको भी अपने काम खुद ही करने होंगे।
पॉज़िटिव कम्युनिकेशन
बच्चा यदि कुछ अच्छा करता है, तो उसकी तारीफ करना न भूलें क्योंकि इससे वह आगे और काम करने के लिए प्रेरित होगा। बच्चे से हमेशा प्यार से पॉज़िटिव बातें करनी चाहिये। ‘तुमसे नहीं होगा’, ‘तुम यह काम कभी नहीं कर पाओगे’ जैसी बातें उनसे कभी न कहें, बल्कि कहें ‘कोशिश करो तुम यह काम कर लोगे।’
काम के बदले ईनाम न दें
यदि आप बच्चे से यह कहेंगे कि फलां काम करने पर आप उसे चॉकलेट या खिलौने देंगे, तो इससे उनमें ज़िम्मेदारी का भाव नहीं आयेगा। वह बस ईनाम के लालच में काम करेगा, इसलिये ईनाम का लालच देकर काम करवाने की बजाय उन्हें ज़िम्मेदारी का एहसास दिलाते हुये काम के लिए प्रेरित करें।
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