जब भी आप किसी शादी या पार्टी में जाते हैं तो सबसे ज्यादा आपको क्या आकर्षित करता है? हो सकता है आप कहें कि वहां का खाना या साज-सजावट, लेकिन ऐसे भी लोग होते हैं जो वेन्यू के साथ-साथ खाने की प्रेज़ेंटेशन पर भी ध्यान देते हैं। आपने देखा होगा कि सलाद का एक अलग काउंटर होता है जहां फल और सब्ज़ियों को बहुत ही शानदार तरीके से सजाया जाता है। उन्हें समारोह की थीम के हिसाब से आकार दिया जाता है जैसे फूल, पत्तियां या कोई डिज़ाइन लेकिन कभी सोचा है कि फल और सब्ज़ियों को ऐसे काटने से खाने की कितनी बरबादी होती है? देश में हर रोज़ बैंक्वेट्स, होटेल्स और दूसरे पार्टी वेन्यू में खाने का इतना कचरा इकट्ठा होता है, जिसे सूखे कचरे के साथ मिलाकर डंप कर दिया जाता है। लेकिन मुंबई के एमरल्ड क्लब ने अपना वेस्ट मैनेज कर के पर्यावरण के प्रति अपनी ज़िम्मेदारी निभाई है और दूसरे पार्टी वेन्यू और होटेल्स के लिए एक मिसाल बन के दिखाया है।
कैसे हुई शुरुआत?
मुंबई के स्वास्तिक पार्क में बना यह क्लब काफी वेस्ट जनरेट करने वाली जगहों में से एक था, इसलिए बीएमसी का क्लब पर कचरे को अपनी जगह ट्रीट करने (ट्रीट वेस्ट ऐट सोर्स) का काफी प्रेशर था। एमरेल्ड के मैनेजमेंट ने बायोगैस तकनीक का इस्तेमाल करने का सोचा और भाभा आटॉमिक रिसर्च सेंटर की मदद से अपने कैंपस में बायोगैस प्लांट सेटअप करवा दिया।
प्लांट लगने से आया बदलाव
यह प्लांट मार्च में लगाया गया था, जिसका इस्तेमाल जुलाई से शुरु हुआ। हर दिन क्लब हाउस से निकला 500 किलो गीला कचरा, जिसमें ज़्यादातर खाना होता है, प्लांट में प्रॉसेस किया जाता है। इस कचरे से हर रोज़ चार से छह क्यूबिक मीटर गैस बनाई जाती है, जिसको समय-समय पर क्लब हाउस के स्टाफ का खाना बनाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। एमरल्ड क्लब ने पिछले दो महीनों में करीब तीस हज़ार किलो ऑर्गेनिक वेस्ट को कुकिंग गैस में कनवर्ट किया है।
प्लांट लगाने का खर्चा
इस प्लांट को सेटअप करने में ग्यारह लाख रुपये खर्च हुए है। प्लांट में बनी बायोगैस का इस्तेमाल करने से रोज़ गैस पर खर्च होने वाले पैसों में से ढाई सौ रुपये बचते हैं, जिसकी मदद से अगले चार सालों में यह पैसा वसूल हो जाएगा।
हालांकि पैसा तो आसानी से वसूल किया जा सकता है, लेकिन पर्यावरण के नुकसान की भरपाई करने में काफी समय लगता है। आप जो भी करें, चाहे वह जश्न हो या सामान्य तौर पर किया जाने वाला काम, बस यह याद रखिए कि आपके किसी भी कदम से प्रकृति को नुकसान ना पहुंचे।
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