किसी ने सही कहा है कि जैसा आप चाहते हैं, वैसा ही आपको मिल जाता है। कुछ ऐसा ही हैदराबाद की आईएएस ऑफिसर ने करके दिखाया है। ग्रेटर हैदराबाद नगर निगम (जीएचएमसी) के सेरिलिंगमपल्ली की ज़ोनल कमिश्नर हरि चंदना दसारी ने वेस्ट टू वेल्थ की एक पहल की। इस पहल से वहां की महिलायें कबाड़ से भी कमाने लगीं और उनका जीवन सुधर गया।
कहां से जन्म लिया वेस्ट टू वेल्थ के आइडिया ने?
दसारी ने जब पहली बार जवाहरनगर के कूड़ाघर को देखा, तो उनके मन में ये आइडिया आया कि अगर कबाड़ को सोर्स लेवल पर ही रिसाइकल कर दिया जाये, तो ट्रांसपोर्टेशन, पॉल्युशन और इससे जुड़े दूसरे खर्चों को बचाया जा सकेगा। वह चीज़ों को रिसाइकल करने में विश्वास करती हैं। उनका मानना है कि प्लास्टिक को रिसाइकल करके बहुत सारी चीज़ें बनाई जा सकती हैं। दसारी का लक्ष्य प्लास्टिक के इस्तेमाल को कम करना है और ज़रूरतमंद महिलाओं की मदद करना है, इसलिये उन्होंने सेल्फ हेल्प ग्रुप जे जुड़ने वाली महिलाओं की मदद करने की ठानी।
बदल गया महिलाओं का जीवन
एसएचजी से जुड़ी ममथा पहले एक मामूली मज़दूर थी। उसका बड़ी मुश्किलों से गुज़ारा होता था, लेकिन आज वह हर महीने जूट बैग्स से 12 हज़ार रुपये कमाने लगी हैं।
ममथा जैसी दूसरी करीब 695 महिलायें हैं, जो एसएचजी से जुड़ी हुई हैं। करीब 195 महिलाएं कपड़े के बैग सिल कर बेचती हैं, 400 महिलाएं जूट के बैग बनाती हैं और 20-20 महिलाओं के 5 ऐसे ग्रुप्स हैं, जिन्होंने कट्लरी बैंक खोला हुआ है। इससे डिस्पोज़ेबल प्लास्टिक के इस्तेमाल को कम करना मकसद है।
दसारी का मानना है कि किसी चीज़ की पहल करना और लोगों को उस पहल की तरफ कदम बढ़ाने के लिए उत्साहित करना ही सिविल सर्विस को दूसरे जॉब्स से अलग बनाता है और इसलिये उन्होंने अपनी वर्ल्ड बैंक जैसी नौकरी की परवाह नहीं की। वह समाज सेवा में विश्वास करती हैं और अपने ही तरीके से समाज की महिलाओं के लिए काम कर रही हैं। यह दसारी ही हैं, जिनकी वजह से कई बड़ी कंपनियों ने सीएसआर के तहत जीएचएमसी को 60 करोड़ रुपये की राशि दी।
सही दिशा में कदम बढ़ायें
– जैसा आप सोचेंगे, वैसा मिलेगा, इसलिये सोच को पॉज़िटिव रखिये।
– आप भलाई की तरफ कदम बढ़ायें, साथ देने वाले खुद जुड़ जायेंगे।
– कोई भी पहल छोटी नहीं होती।
इमेज : ट्विटर
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