स्कूल अगर देखने में अच्छा लगे, तो बच्चों का पढ़ने के प्रति लगाव बढ़ जाता है। अगर स्कूल ट्रेन जैसी दिखे, तो यह बच्चों के लिए और भी रोचक हो जाता है। देश के कई शहरों व कस्बों में स्कूल को ट्रेन की तरह पेंट करके बच्चों को पढ़ाई के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है। लेकिन मैसूरू के एक स्कूल ने तो ट्रेन के डिब्बे को ही क्लासरूम में बदल दिया गया है।
रेलवे वर्कशॉप में होती है पढ़ाई
करीब दो साल पहले रेलवे कॉलोनी में सरकारी प्राइमरी स्कूल शुरू हुआ। इस स्कूल के ज़्यादातर बच्चे गरीब परिवारों से हैं। स्कूल प्रशासन को पढ़ाने के लिए कोई बिल्डिंग नहीं मिली, इसलिए रेलवे वर्कशॉप में ही बच्चों को पढ़ाया जा रहा है। इसके लिए रेलवे विभाग कोई किराया नहीं लेता है। यहां 10वीं कक्षा तक पढ़ाई होती है और अब तक इस स्कूल के कई बच्चे बिना किसी संसाधनों के पढ़ाई करते आ रहे हैं।
बच्चों को मिला अपना ‘नली काली’ कोच
शिक्षा सबका अधिकार है और इसे मज़े के साथ पढ़ना सभी का हक है। इसी को देखते हुए रेलवे वर्कशॉप के कुछ कर्मचारियों ने स्कूल प्रशासन की मदद करने का फैसला किया। उन्होंने खराब ट्रेन डिब्बों को क्लासरूम में बदलने का फैसला किया। क्लासरूम बने इन डिब्बों का नाम रखा – ‘नली काली’, जिसका मतलब है ‘खुशी होकर सीखना’। इस कोच को क्लास रूम में केवल बदला गया है लेकिन बाकी सारी चीज़े रेलवे कोच की तरह ही है।
रेलवे कर्मचारियों ने की मदद
वर्कशॉप के कर्मचारियों ने खराब ट्रेनों में से पंखे और अन्य ज़रूरी सामान लाकर इन सभी डिब्बों में लगाया हैं। चीफ वर्कशॉप मैनेजर पी श्रीनिवासु ने स्कूल बनाने में करीब 50 हज़ार रुपये खर्च किए हैं और ये काम सभी की मदद से मुमकिन हुआ है। अपने नए क्लासरूम देख बच्चे काफी खुश है और बच्चों की खुशी देखकर रेलवे कर्मचारियों को तसल्ली है कि उन्होंने बच्चों के लिये कुछ किया है।
अनमोल है यह क्लास
क्लासरूम के डिब्बे में पंखे और लाइट की ऐसी बंदोबस्त है, जिससे बच्चों को पढ़ने और टीचर्स को पढ़ाने में आसानी होगी। एक डिब्बे में चौथी और पांचवीं क्लास के बच्चे पढ़ेंगे, दूसरे डिब्बा को एक्टिविटी हॉल के रूप में इस्तेमाल किया जाएगा।
रेलवे कर्मचारियों का यह कदम बहुत तारीफ भरा है, कि उन्होंने बेकार के डिब्बों को किसी के उपयोग में लाने लायक बनाया है। ये प्रेरणा सभी को जीवन में सीख देती है कि दूसरों के चेहरे पर खुशी लाने के लिए बस इच्छाशक्ति की ज़रूरत होती है।
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