“इससे पहले कि सपने सच हो आपको सपने देखने होंगे।“
डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम का ये कथन उनकी ज़िंदगी की अपार सफलता को दर्शाता है। उन्होंने सपने देखें और फिर उन्हें पूरा करने में अपना पूरा जीवन झोंक दिया। एक छोटे से गरीब परिवार से ताल्लुक रखने वाले डॉ. कलाम ने अपने सपनों को पूरा करने के लिए बचपन से ही कड़ी मेहनत की है। उनका कहना था कि कुछ नया करने की उमंग हमेशा बनी रहनी चाहिए। अगर हम सपने नहीं देखेंगे तो जीवन में प्रगति नहीं कर पाएंगे। आइये जानते हैं डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम के जीवन की पॉजिटिव बातें जो देती है प्रेरणा –
बुलंद हौसला से आगे बढ़ते रहे
डॉ. अब्दुल कलाम का जन्म बेहद गरीब मछुवारे परिवार में हुआ था। पिताजी बहुत ज़्यादा पढ़े-लिखे नहीं थे लेकिन वह बहुत ज्ञानी थे। वह कलाम को हमेशा यही शिक्षा देते थे की यदि जीवन में आगे बढना है तो संघर्ष का साथ कभी नही छोड़ना, जितना अधिक संघर्ष करोगे उतना अधिक सफलता भी मिलेगी। पढ़ाई के दौरान उनका जीवन संघर्षपूर्ण रहा। अपनी पढ़ाई के लिए उन्होंने अखबार भी बेचे। यह उनका हौसलाही था कि उन्होंने पायलट बनने का सपना देखा लेकिन इंटरव्यू में पास न होने के कारण वह विज्ञान के क्षेत्र में चले गए। अब्दुल कलाम के जीवन के इस घटना से पता चलता है की क्या हुआ जब हम एक जगह फेल हो रहे हैं। हमें उसकी चिंता छोड़कर दूसरी जगह लग जाना चाहिए कहीं तो सफलता मिलेगी ही न, इसलिए हमे अपने जीवन में कभी भी हार नहीं मानना चाहिए।
ईमानदारी का पाठ
डॉ. कलाम को अपने बड़े भाई एपीजे मुत्थू मरईकयार से बहुत प्यार था। लेकिन उन्होंने कभी उन्हें अपने साथ राष्ट्रपति भवन में रहने के लिए नहीं कहा। उनके भाई का पोता गुलाम मोइनुद्दीन उस समय दिल्ली में काम कर रहा था, जब कलाम भारत के राष्ट्रपति थे। लेकिन वह तब भी मुनिरका में किराए के एक कमरे में रहा करता था। मई 2006 में कलाम ने अपने परिवार के करीब 52 लोगों को दिल्ली आमंत्रित किया। ये लोग आठ दिन तक राष्ट्रपति भवन में रुके। उनके जाने के बाद कलाम ने अपने अकाउंट से 3 लाख 52 हज़ार रुपयों का चेक काट कर राष्ट्रपति भवन कार्यालय को भेजा था।
इससे हमें सीख मिलती है कि हमें अपने कर्तव्यों को ईमानदारी से करना चाहिए और परिवार की ज़िम्मेदारी खुद उठानी चाहिए।
मानवता के प्रति प्रेम
हमें सभी जीवों चाहे वह इंसान हो या पशु- पक्षी, सबके प्रति दया का भाव रखना चाहिए इसकी मिसाल पेश करते हुए जब अब्दुल कलाम के जीवन की यह घटना दिखाती है की किस प्रकार अब्दुल कलाम जीवों के प्रति भी अत्यधिक दयालु थे। एक बार वो जाड़े के दौरान राष्ट्रपति भवन के गार्डन में टहल रहे थे। उन्होंने देखा कि सुरक्षा गार्ड के केबिन में हीटिंग की कोई व्यवस्था नहीं है और कड़ाके की ठंड में सुरक्षा गार्ड की कंपकंपी छूट रही है। उन्होंने तुरंत संबंधित अधिकारियों को बुलाया और उनसे गार्ड के केबिन में जाड़े के दौरान हीटर और गर्मी के दौरान पंखा लगवाने की व्यवस्था करवाई।
निभाया इंसानियत का धर्म
एक बार डॉ. कलाम मुगल गार्डन में टहल रहे थे, तो देखा कि एक मोर अपना मुंह नहीं खोल पा रहा है।उन्होंने तुरंत राष्ट्रपति भवन के वेटरनरी डॉ. सुधीर कुमार को बुलाकर मोर की स्वास्थ्य जांच करने के लिए कहा। जांच करने पर पता चला कि मोर के मुंह में ट्यूमर है, जिसकी वजह से वह काफी तकलीफ में है। डॉ. कलाम के कहने पर डॉ. कुमार ने उस मोर की आपात सर्जरी की और उसका ट्यूमर निकाल दिया। उस मोर को कुछ दिनों तक आईसीयू में रखा गया और पूरी तरह ठीक हो जाने के बाद मुगल गार्डन में छोड़ दिया गया।
एक समान आदर की भावना
अब्दुल कलाम अपने जीवन में खुद को कभी बड़ा व्यक्ति नहीं मानते थे। वह अपने को सबके बराबर एक समान समझते थे। जब उन्हें वाराणसी में आईटीआई के दीक्षांत समारोह में बुलाया गया तो उन्होंने देखा की स्टेज में 5 कुर्सिया लगी हुई हैं, जिनमे बीच वाली कुर्सी बड़ी और उन सबसे ऊंची भी थी। उस कुर्सी पर उन्हें बैठने को कहा गया। कलाम ने उसपर बैठने से मना कर दिया और कहा की मैं भी आप लोगों के बराबर का ही व्यक्ति हूं। अगर सम्मान करना है, तो इसपर कुलपति जी बैठिए। इसके बाद अब्दुल कलाम सबके सामने वाली कुर्सी पर ही बैठे।
काम के प्रति लगाव
जहां नेता छुट्टियों पर घूमने जाने के लिए बेकरार रहते हैं वहीं, क्या आप जानते है कि अब्दुल कलाम ने अपने पूरे राजनीतिक जीवन में सिर्फ दो छुट्टियां ली थीं। एक बार जब उनके पिता की मौत हुई थी और दूसरी, जब उनकी मां की मौत हुई थी।
इस तरह अब्दुल कलाम का जीवन सादगी से भरा पड़ा था जो की सभी के लिए जीवन में आगे बढने एक प्रेरणास्रोत्र है।
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