सुनामी या साइक्लोन की वजह से हर साल तमिलनाडु के खेतों में समुद्र का पानी भर जाता था और दो-तीन महीने तक पानी भरा रहने से कोई फसल नहीं हो पाती थी। लेकिन, किसानों ने इस समस्या से निबटने के लिए वेटीवर की खेती करनी शुरू की, जिससे आज उन्हें काफी फायदा मिला हैं। दरअसल, वेटिवर एक ऐसी फसल है, जिसे न तो कोई खास मौसम चाहिए और न ही इस फसल को बाढ़ से नुकसान होता है। यही वजह है कि आज तमिलनाडु में हज़ार एकड़ में भी ज़्यादा ज़मीन में खस की खेती हो रही है, क्योंकि खस की जड़ों से निकलने वाले तेल की फार्मा और कॉस्मेटिक इंडस्ट्री में भारी डिमांड है। वेटिवर तेल का इस्तेमाल इत्र और सुगंधित तेल, शर्बत, दवाएं, साबुन आदि बनाने में किया जाता है।
लागत से कई गुणा ज़्यादा मुनाफा
तमिलनाडु के इस ’आश्चर्यजनक घास’ की खासियत है कि यह गुच्छों में उगती है, जिसकी ऊंचाई पांच से छह फीट तक होती है, जबकि इसकी सुगंधित जड़ 10 फीट तक नीचे जाती है। यह घास न सिर्फ मिट्टी के कटाव को रोकती है बल्कि कार्बन डाइऑक्साइड को भी अवशोषित करती है। इसके अलावा इस घास का उपयोग प्रदूषित जल की सफाई के लिए भी किया जा सकता है। तमिलनाडु कृषि विश्वविद्यालय के सहयोग से खस की खेती को लोकप्रिय बनाने की दिशा में कार्यरत ‘भारत वेटिवर नेटवर्क’ के सी. के. अशोक कुमार की मानें, तो वेटिवर रेतीली मिट्टी में आसानी से हो जाती है। तभी आज इसकी खेती उत्तर भारत के राजस्थान, उत्तर प्रदेश, बिहार व दक्षिण भारत में केरल, कर्नाटक आदि राज्यों में भी होती है।
किसानों के बीच पॉपलुर
ज़्यादा मुनाफा होने के कारण वेटिवर घास अब इंटरस्टेट किसानों के बीच भी तेज़ी से लोकप्रिय हो रहा है। सिंधगंगा जिले के कुरुवदीपट्टी गांव में 10 एकड़ में वेटिवर बढ़ने वाले सी. पांडियन का कहना है, समुद्र तटीय इलाकों की तुलना में सामान्य खेतों में भले ही वेटिवर की उपज कम होती है, पर वहां के घास की क्वालिटी अच्छी होती है। तटीय घास से जहां सुगंधित तेल 0.8 फीसदी मिलता है, वहीं सामान्य इलाके की घास में 1.49 फीसदी तेल ज्यादा मिलता है।
अगर किसानों को इस खेती से फायदा मिलता है, तो सरकार और अन्य संस्थाओं को भी इस दिशा में कदम उठाने चाहिए, ताकि बाढ़ जैसी समस्याओं में किसानों को खेतों की चिंता न सताए।
इमेज: मोलोकाई सीड कंपनी
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