हमारे समाज बहुत सारे ऐसे लोग हैं जो हमारे समाज के लिए प्रेरणा दायी काम करते हैं। हम आपको ऐसे ही कुछ लोगों की कहानी बताने जा रहे हैं।
बिहार के राजेश कुमार पढ़ाने की फीस लेते हैं कुछ अनोखी
क्या आपने कभी ऐसे स्कूल के बारे में सुना है जो छात्रों से फीस के रूप में पौधे लेता है?आपको बता दें बिहार के समस्तीपुर जिले में ‘ग्रीन-पाठशाला’ नाम का एक ऐसा ही स्कूल 2008 से एक युवक चला रहा है।
33 वर्षीय राजेश कुमार सुमन का केंद्र बिहार के समस्तीपुर जिले के रोसारा में शिक्षित स्वयंसेवकों की मदद से विभिन्न सरकारी सेवा परीक्षाओं के उम्मीदवारों के लिए कोचिंग सेंटर चलाते हैं।
ट्री मैन और पौधबाला गुरुजी के रूप में जाने जाने वाले, कुमार प्रत्येक छात्र से 18 पौधे शुल्क के रूप में लेते हैं। इसके साथ ही वह राज्य भर में वृक्षारोपण को बढ़ावा देने के आग्रह से प्रेरित, सुमन ने बिनोद स्मृति स्टडी क्लब के तहत इस अनोखे स्कूल की भी शुरुआत की है, जो उनके स्वर्गीय मामा की याद में स्थापित किया गया था। उन्होंने शिक्षा प्रदान करके गरीबों की सेवा करने के लिए प्रोत्साहित किया।
उन्होंने कहा “सरकारी नौकरियों के लिए अलग-अलग प्रतियोगी परीक्षाओं के उम्मीदवारों को ग्रीन-पाठशाला में सुबह और शाम के सेशन के दौरान मुफ्त तैयारी कोचिंग दी जाती है। फीस में 18 पौधे लेने के पीछे वैज्ञानिक तर्क भी है। एक व्यक्ति अपने पूरे जीवन में उतनी ही ऑक्सीजन लेता है, जितनी 18 पौधे पैदा करते हैं। इसलिए, हम 18 पौधे फीस के रूप में लेते हैं, जिसे बाद में विभिन्न स्थानों पर लगाया जाता है।
इसके साथ ही रविवार को, जब कोई कोचिंग नहीं होती है, राजेश राज्य भर में भ्रमण कर लोगों को अधिक से अधिक पौधे लगाने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।
2008 से, इस ग्रीन-पाठशाला में 5,000 से अधिक छात्रों को विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए प्रशिक्षित किया गया है। हाल ही में, तीन महिलाओं सहित 13 छात्रों ने बिहार पुलिस की परीक्षा पास की और सब-इंस्पेक्टर बन गए। कोचिंग में पढ़ने वाले करीब 40% छात्र महिलाएं हैं। शुरुआत से अब तक छात्रों से एकत्र किए गए 90,000 से अधिक पौधे लगाए जा चुके हैं।
राजेश कुमार के इस अनूठे अभियान को हमारा सलाम 🙏
भारतीय रेलवे ने दी डॉ. कलाम को खास तरीके से श्रद्धांजलि
रामेश्वरम में जन्मे डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम ऐसे व्यक्ति थे, जिनके घर आस-पास समुद्र और असीमित पेड़-पौधों थे। ऐसे में उनका प्रकृति प्रेमी होना लाज़मी था। भारत के ग्यारहवें राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल ने साल 2003 में हरियाणा में चौधरी देवी लाल हर्बल पार्क का उद्घाटन किया था। इस दौरान उन्होंने अपने हाथों से इस पार्क में रुद्राक्ष का पौधा भी लगाया था। इसी से प्रकृति के प्रति उनका प्यार दिखाई देता है। इसी क्रम में भारतीय रेलवे ने उनकी पुण्यतिथि पर भारतीय रेलवे ने उन्हें बड़ी श्रद्धांजलि दी है।
भारतीय रेलवे के दक्षिण पश्चिम रेलवे जोन ने एपीजे अब्दुल कलाम को एसडब्ल्यूआर के यशवंतपुर कोचिंग डिपो में उनकी 7.8 फुट ऊंची प्रतिमा स्थापित की है। सबसे खास बात है कि इस प्रतिमा को बनाने प्रकृति का खास ख्याल रखा गया है और रेलवे की खराब हो चुकी चीज़ों को फेंकने की बजाय उससे देश के पूर्व राष्ट्रपति की प्रतिमा बनाई गई है। 800 किलोग्राम की इस मूर्ति को रेलवे के इंजीनियर्स ने डेढ़ महीने में तैयार किया है।
इस स्टेशन से करीब रोज़ाना 200 ट्रेन गुज़रती है और ट्रेन में बैठे लोगों के लिए यह प्रतिमा लोगों के आकर्षण का केंद्र बनी हुई है।
संजय कुमार की गौरैया बचाओ मुहिम
कहा गया है कि लक्ष्मी वहां निवास करती हैं जिस घर में गौरैया रहती हैं और पनपती हैं। गौरैया बिहार की राज्य पक्षी है। अफसोस की बात है कि पासर डोमेस्टिकस नामक प्रजाति विलुप्त होने के खतरे का सामना कर रही है। यह सिर्फ राज्य में ही नहीं पूरे भारत में है।
इसको लेकर भारतीय सूचना सेवा (आईआईएस) अधिकारी संजय कुमार ने बहुत ही सरहानीय कदम उठाया है। उनके लिए जीवन में ‘गौरैया बचाओ, पर्यावरण बचाओ’ एक आदर्श वाक्य बन गया है। वह प्रेस सूचना ब्यूरो (पीआईबी) की पटना इकाई के सहायक निदेशक हैं। पटना के ‘स्पैरो मैन’ के नाम से मशहूर 52 साल के इस अफसर को ये जीव बेहद पसंद हैं। वह उनसे बात करते हैं, उन्हें अपने पास बुलाते हैं और उनके साथ खेलते भी हैं ।
पक्षियों के साथ अधिकारी की दोस्ती 2007 की गर्मियों में शुरू हुई। एक प्यासी गौरैया उसकी रसोई में घुस गई थी। जिसके बाद उन्होंने दया के भाव से पानी का एक बर्तन रखा। उसने पी लिया और रसोई से बाहर उड़ गयी। तब से, उन्होंने खुद को गौरैया और अन्य पक्षियों को बचाने के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया है।
कुमार हर महीने पक्षियों के लिए कुछ पैसे अलग रखते हैं और उनके लिए उन्हें जो व्यवस्था करनी होती है। उनके प्रयासों ने उनके इलाके और पटना के अन्य हिस्सों में युवाओं के एक वर्ग को गौरैयों और अन्य पक्षियों के लिए अपने घरों के बाहर घोंसले और पानी के बर्तन की व्यवस्था करने के लिए प्रोत्साहित किया है।
कुमार गौरैयों और पक्षियों को बचाने की आवश्यकता पर नियमित रूप से वेबिनार और प्रदर्शनियों का भी आयोजन करते हैं। उन्होंने मीडिया से बात करते हुए बताया कि , “मेरे आग्रह पर, घरेलू गौरैया और अन्य पक्षियों को शहरीकृत गतिविधियों के हमले से बचाने के लिए देश भर में प्रयासों की एक सीरीज में 2,000 से अधिक लोग मेरे साथ शामिल हुए हैं।”
संजय कुमार दूसरों को यह महसूस कराने में मदद करते हैं कि गौरैया हमारे पारिस्थितिकी तंत्र का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। बढ़ते शहरीकरण के कारण उनकी संख्या घट रही है। पटना स्थित सरकारी सेवक उन्हें भोजन उपलब्ध कराकर और आश्रय की व्यवस्था कर बचाने का प्रयास कर रहे हैं। उनकी यह पहल इलाके में लोकप्रिय होने लगी हैं और दूसरे लोग भी आगे आ रहे हैं। कुमार घरेलू गौरैयों और अन्य पक्षियों के बारे में जागरूकता पैदा करने के लिए वेबिनार भी आयोजित करते हैं।
21 साल के छात्र सिद्धांत ने बनाया भोजपुरी में पोडकास्ट
सिद्धांत सारंग 21 साल के हैं, बिहार के रहने वाले हैं और अभी दिल्ली यूनिवर्सिटी के सत्यवती कॉलेज से इतिहास में ग्रेजुएशन कर रहे हैं। अपने स्कूल के दिनों से, उन्होंने देखा है कि जलवायु परिवर्तन ने दुनिया को कैसे प्रभावित किया है और अब वह ‘धरती मैया’ नाम का भोजपुरी बोली में एक पॉडकास्ट लॉन्च करने की तैयारी कर रहे हैं ।
उनका मकसद बिहार और यूपी के ग्रामीण लोगों तक पहुंचना है। उन्होंने पर्यावरण और पारिस्थितिकी पर जागरूकता पैदा करने के लिए अपने पॉडकास्ट के अलावा एक आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई)-सक्षम ऐप बनाने की भी योजना बनाई है। वे 14 साल की उम्र से ही पर्यावरण संरक्षण को लेकर काम कर रहे हैं।
इस प्रोजेक्ट के माध्यम से भारत के संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल सभी 24 भाषाओं में जलवायु परिवर्तन पर सूचना प्रसारित करने वाला एक एप तैयार करेंगे, जिसके माध्यम से जमीनी स्तर के कार्यकर्ताओं और आम लोगों को पर्यावरण के मुद्दे पर सशक्त बनाने की कोशिश होगी। सारंग का यह काम काफी सरहानीय है।
ओडिशा के 72 साल के अंतर्यामी साहू का पूरा जीवन पर्यावरण बचाने में बीता
देश-दुनिया जब पर्यावरण में हो रहे बदलावों के कारण प्राकृतिक आपदाओं को झेल रहे हैं, ऐसे समय में ओडिशा के 72 वर्षीय अंतर्यामी साहू सबके लिए अनोखी मिसाल पेश कर रहे हैं। साहू ने अपना पूरा जीवन पेड़ लगाने में बीता साथ और बीते 60 सालों में उन्होंने पूरे राज्य में करीब 30 हजार पेड़-पौधे लगाए हैं।
अंतर्यामी साहू को गाछ (पेड़) सर भी कहा जाता है। वह ओडिशा के नयागढ़ जिले के किनतीलो गांव के रहने वाले हैं। अंतर्यामी ने पर्यावरण संरक्षण के लिए तभी से काम करना शुरू कर दिया था जब वह छठी क्लास में पढ़ते थे। उस समय उन्होंने गांव के पास ही बरगद का पौधा लगाया था।
अंतर्यामी साहू ने मीडिया को बताया कि ‘मैं सन् 1961 से पेड़-पौधे लगा रहा हूं और आज भी मैं पर्यावरण बचाने की दिशा में ही काम कर रहा हूं। मुझे इससे खुशी मिलती है।’
रिटायर्ड स्कूल टीचर साहू आज भी स्कूल जाकर बच्चों को पेड़-पौधे लगाने का महत्व समझाते हैं और उन्हें पर्यावरण संरक्षण की अहमियत बताते हैं। उनका यह काम पर्यावरण की बेहतरी के लिए काफी अच्छा है।
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