हमारे समाज बहुत सारे ऐसे लोग हैं जो हमारे समाज के लिए प्रेरणा दायी काम करते हैं। हम आपको ऐसे ही कुछ लोगों की कहानी बताने जा रहे हैं।
10 साल के रेयांश का अंतरिक्ष से जुड़ा ज्ञान कर रहा है सभी को हैरान
शायद कोई नहीं सोच सकता कि 5 साल के छोटे से बच्चे को यह जानने में दिलचस्पी हो सकती है कि तारे कैसे बने और अंतरिक्ष में क्या है? लेकिन कोलकाता के रेयांश दास जब 5 साल के थे तो वह आकाश में देखकर खुद से यही सवाल किया करते थे। इतनी छोटी उम्र में उन्होंने इंटरनेट और किताबों के ज़रिए अपने प्रश्नों के जवाब जानने की कोशिश करनी शुरू कर दी।
फिर 7 साल की उम्र में अपनी रिसर्च पूरी करके वह किताब लिखने लग गए। महज 10 साल की उम्र में खगोल भौतिकी पर किताब लिखकर उन्होंने सभी को हैरान कर दिया। रेयांश दास की इस किताब का नाम ‘द यूनिवर्स: द पास्ट, द प्रेजेंट एंड द फ्यूचर’ है।
जब वह अपने माता-पिता से अंतरिक्ष से जुड़ी बाते करते, तो उन्हें समझ नहीं आता था, तो वह उसे विज्ञान के शिक्षक के पास ले गए। उसकी बाते सुनकर शिक्षक ने माता-पिता को बताया कि वह भौतिक से जुड़ी जो भी बाते बता रहा है, वह बिल्कुल सही है।
इस किताब में रेयांश ने विज्ञान से जुड़े कई सिद्धांतों पर प्रकाश डाला है। किताब को लेकर कई रिसर्च स्कॉलर्स का कहना है कि किताब में लिखे उनके विचार बिल्कुल स्पष्ट और अच्छे हैं।
इतनी कम उम्र में रेयांश का यह हुनर लोगों को हैरान कर रहा है। उम्मीद करते हैं कि उनकी यह प्रतिभा और उभरेगी और भविष्य में अंतरिक्ष वैज्ञानिक बनकर कई खोजों का हिस्सा बने।
तमिलनाडु के दो शिक्षक बने सभी के लिए प्ररेणा
कोरोना में बच्चों की शिक्षा का आधारभूत इंटरनेट बन गया लेकिन समस्या उन इलाकों में होने लगी, जहां इंटरनेट और फोन या लैपटॉप की सुविधा नहीं हो पा रही है। ऐसे में कई शिक्षक ऐसे हैं, जो तमाम बाधाओं के बावजूद बच्चों को पढ़ाने का कोई न कोई ज़रिया निकाल ही लेते हैं। ऐसे ही दो शिक्षकों ने सारी बाधाओं को पार कर अपने कर्तव्य और उत्तरदायित्व को पूरा करते हुए आदिवासी बस्ती में बच्चों को शिक्षा दे रहे हैं।
तमिलनाडु में भी ऐसा ही एक आदिवासी इलाका है, जहां बच्चों को ऑनलाइन शिक्षा के बिना ही शिक्षा का सौभाग्य मिल रहा है। कोयंबटूर के सरकारी स्कूल में दो ऐसे शिक्षक आदिवासी बच्चों की पढ़ाई पर खास ध्यान दे रहे हैं। उदुमलई के लिंगमावुर में गवर्मेंट ट्राइबल रेज़िडेंशियल प्राइमरी स्कूल के हेडमास्टर एम पांडी और टीचर एस अय्यप्पन 6 किलोमीटर पहाड़ी रास्ता तय कर तट्टू आदिवासी बस्ती जाते हैं और वहां के आदिवासी बच्चों को पढ़ाते हैं।
पांडी और अय्यप्पन दोनों शिक्षक हफ्ते में दो या तीन बार, एक स्कूल सहायक के साथ आदिवासी बच्चों को पढ़ाने जाते हैं। बस्ती तक कोई पक्की सड़क नहीं है और जंगली इलाका होने के कारण यहां जंगली जानवरों का डर है। बारिश के दिनों में इस बस्ती तक पहुंचना एक बड़ी चुनौती हो जाती है। फिर भी इन मुश्किलों को पार कर ये दोनों शिक्षक आदिवासी बच्चों को शिक्षा देकर अपना कर्तव्य निभा रहे हैं।
इन कर्तव्यनिष्ठ शिक्षकों को हमारा सलाम है, जो बच्चों को उनके अधिकार दिलाकर नेक काम कर रहे हैं।
9 साल की आकर्षणा ने किया कैंसर मरीज़ों के लिए नेक काम
कहते हैं कि किताबें इंसान की सबसे अच्छी दोस्त होती है। किताब पढ़ने से न सिर्फ सोच का दायरा बढ़ता है, बल्कि तनाव भी कम होता है। कुछ ऐसी ही सोच रखती है हैदराबाद की 9 साल की अकर्षणा सतीश। अकर्षणा के लिए पढ़ना उनके जीवन का अहम हिस्सा है और एक लाइब्रेरी खोलने का सपना भी, जिसके ज़रिये वह कैंसर मरीजों की मदद कर सकें।
अकर्षणा ने इस आदत के लिए एमएनजे कैंसर इंस्टीट्यूट में एक ऐसी लाइब्रेरी की पहल शुरु की है, जिससे कैंसर मरीज अपने दर्द और तकलीफों से ध्यान हटा सके। इस पहल के लिए आकर्षणा ने पिछले एक साल में अपने दोस्तों और परिवार की मदद से तेलुगु, अंग्रेजी और हिंदी में कहानी की किताबें और कुछ रंगीन मैगजीन के साथ लगभग 1,036 किताबें इकट्ठी कीं।
कैंसर मरीजों के लिए मदद करनी चाह को पूरा करने में एमएनजे कैंसर इंस्टीट्यूट के अधिकारियों ने भी अकर्षणा प्रोत्साहित किया। इसके लिए उन्होंने एक खेल क्षेत्र की एक जगह को लाइब्रेरी में बदलकर इस पहल और अकर्षणा के सपने को साकार किया। आकर्षणा की इस पहल के लिए स्मृति चिन्ह से सम्मानित भी किया जा चुका है।
छोटी-सी उम्र बड़ी और नेक सोच रखने वाली अकर्षणा से हमें प्रेरणा लेना चाहिए। खुद भी किताबें पढ़ने चाहिए और दूसरों को प्रोत्साहित करना चाहिए।
छत्तीसगढ़ में महिलाओं की ग्रुप बना रही है ईको फ्रेंडली राखियां
अगस्त का महीने आते ही त्योहारों का सिलसिला शुरु हो जाता है और इस महीने भाई-बहन के प्रेम का प्रतीक रक्षाबंधन भी खास मायने रखता है। बहनें अपने भाइयों की कलाई पर बांधने के लिए सुंदर-सुंदर राखियां ढ़ूंढती है। इस बार जब आप राखी की तलाश करें तो छत्तीसगढ़ के बालोद जिले की महिलाओं की राखियां भी ज़रूर देखें। क्षेत्र की महिलाओं ने स्वयं सहायता समूह की महिलाओं ने ईको फ्रेंडली राखी बनाई है, जो पर्यावरण की सुरक्षा का संदेश देती है।
महिलाओं का ये समूह अपने हुनर से रक्षाबंधन के त्योहार को खास बनाना चाहता है। इसलिये पहले इन सभी ने मिलकर एक ग्रुप बनाया और पर्यावरण की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए राखियों में सब्जी के बीज का उपयोग किया है। यह राखियां सब्जियों के बीज, धान और बांस आदि से बन रही है।
सबसे अच्छी बात है कि इन राखियों में प्लास्टिक का इस्तेमाल कहीं नहीं किया गया है। महिलाओं का यह समूह न सिर्फ अनोखी और ईको फ्रेंडली राखी बनाकर अपने हुनर को निखार रहा है, बल्कि आत्मनिर्भर भी बन रहा है।
इन्होंने ऐसी ही कोशिश पिछले साल भी की थी, जिसमें लगभग 5000 राखियां बनाकर इन महिलाओं ने करीब 1 लाख रुपए कमाए थे। इस साल इनकी कोशिश पहले से भी ज़्यादा राखियां बेचने की है। इन ईको फ्रेंडली राखियों से न सिर्फ पर्यावरण को बेहतर बनाने में बढ़ावा मिल रहा है, बल्कि महिलाओं को रोजगार का मौका भी मिला है।
मिलिए तमिलनाडु के नेकदिल डाकिए से
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