हमारे समाज बहुत सारे ऐसे लोग हैं जो हमारे समाज के लिए प्रेरणास्त्रोत काम करते हैं। हम आपको ऐसे ही कुछ लोगों की कहानी बताने जा रहे हैं।
87 साल की नानी अचार बेचकर करती है ज़रूरतमंदो की मदद
‘सफर में मुश्किलें आएं तो जुर्रत और बढ़ती है, कोई जब रास्ता रोके तो हिम्मत और बढ़ती है’ नवाज़ देवबंदी की ये लाइनें 87 साल की नानी ऊषा गुप्ता पर एकदम सटीक बैठती है।
दिल्ली की रहने वाली 87 साल की ऊषा गुप्ता कोरोना से परेशान और हताश लोगों को मुफ्त में घर का खाना खिलाती है। इस पहल के अंतर्गत वह अभी तक लगभग 65 से ज़्यादा लोगों को मुफ्त भोजन करा चुकी है।
दरअसल कोविड की लहर में ऊषा गुप्ता अपने पति के साथ दिल्ली अपनी बेटी को मिलने आए थे। इस दौरान दोनों को कोविड हो गया और ऊषा के पति का निधन हो गया। पति के जाने के बाद ऊषा ने कोरोना पीड़ित और ज़रूरतमंद लोगों की मदद करने का
ठाना।
इस नेक काम के लिए ऊषा ने अपनी नातिन डॉ. राधिका बत्रा की मदद ली, जो एक ‘एवरी इन्फेंट मैटर्स’ नाम की संस्था में हेड है। उषा ने जरूरतमंदों को खाना खिलने के लिए खुद ही अचार बनाती है और डॉ. राधिका उस अचार को एनजीओं के मदद से दिल्ली और कोलकत्ता में बेचती है। इससे मिलने वाले पैसे से ज़रूरतमंदों को खाना मुहैया कराया जाता है।
इस उम्र में अचार बनाने की मेहनत करना भी किसी चुनौती से कम नहीं, लेकिन वह ऐसा करके इंसानित की मिसाल दे रही है। इस उम्र में भी इंसानियत की प्रेरणा देने वाली बुजुर्ग नानी को हमारा सलाम है 🙏
डॉ. नारायणन आदिवासियों के लिए बने मसीहा
केरल के रहने वाले एक डॉ. नारायणन आदिवासी लोगों की सेहत का ख्याल पिछले 19 सालों से रख रहे हैं।
अगाली, अट्टापदी में 47 साल डॉ. नारायणन वैसे तो बच्चों के स्पेशलिस्ट हैं, लेकिन आदिवासी लोगों के लिए वह जनरल फ़िज़िशियन भी है। साल 2002 से डॉ. नारायणन आदिवासी मरीज़ों की मदद कर रहे हैं। गरीब और आर्थिक परेशानियों से जूझ रहे आदिवासियों से वह इलाज के लिए केवल 10 रुपये लेते हैं। जिसके कारण वहां के स्थानीय लोग उन्हें ‘10 रूपये वाला डाक्टर’ कहते हैं।
डॉ. नारायणन ने अट्टापदी के हालात बदलने के लिए स्वामी विवेकानंद मेडिकल मिशन अस्पताल की स्थापना की। इस अस्पताल में हर बीमारी का इलाज सिर्फ 10 रूपये के फीस से होता है। आदिवासियों का डॉ. नारायण पर इतना विश्वास है कि वह उनकी हर बात का पूरा मान रखते हैं और उनकी बताई बातों का पालन भी करते हैं। इसलिए इस अस्पताल को “10 रुपये वाला अस्पताल” के नाम से जाना जाता है।
डॉ. नारायण पिछले कई दसकों से आदिवासियों का जीवन सुधारने में अपना योगदान दे रहे है। जिसकी सहारना करना किसी भी प्रेरणा से कम नहीं है।
मणिपुर की आईएएस पूजा युवाओं को किताब पढ़ने की देती है प्रेरणा
किताबे इंसान की सबसे अच्छी दोस्त होती है और यही सोच रखती है मणिपुर की आईएएस पूजा इलंगबम। युवाओं की सोच सही रखने और अच्छी संगत के लिए पूजा ने मणिपुर में ‘द बुक क्लब इंफाल’ खोला है, ताकि युवा अपना समय सही चीज़ों पर लगाएं। साथ ही इस क्लब के ज़रिये वह युवाओं को किताबें पढ़ने की प्रेरणा भी दे रही हैं।
पूजा इलंगबम मणिपुर के इंफाल जिले में पली बढ़ी हैं। इनके पिताजी आईपीएस ऑफिसर हैं। अपने पिताजी से प्रेरित होकर पूजा आईएएस अफसर बनने का सपना देखा था। उन्हें बचपन से ही पढ़ने का शौक रहा है। किताबें पढ़कर ही उन्होंने बिना कोचिंग क्लास के आईएएस की परीक्षा पास की और अपने सपने को पूरा किया था। किताबों से मिलने वाले सही मार्गदर्शन को वह युवाओं में बांटना चाहती है, इसलिए उन्होंने ‘द बुक क्लब इंफाल’ की शुरुआत की थी।
‘द बुक क्लब इंफाल’ की शुरुआत साल 2019 में हुई थी। इस क्लब की खास बात यह है कि यहां साहित्य से लेकर करियर विकल्पों तक विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की जाती है। साथ ही इस क्लब में युवाओं को सामाजिक बुराइयों से दूर रहने की सलाह दी जाती है। कोविड महामारी के दौरान इस क्लब के युवा खुद की मर्जी से सामाजिक कार्यों के लिए आगे बढ़कर लोगों की मदद कर रहे हैं।
चॉक पर हाथी की खूबसूरत आकृति ऊकेर कर बढ़ा रही है जागरूकता
ये गाना तो आपने कई बार सुना होगा ‘हाथी मेरे साथी’, आज विश्व हाथी दिवस पर इसी साथी का साथ धीरे-धीरे छूट रहा है। इसी साथी का साथ मज़बूत बनाने के लिए पुडुचेरी की मिनिएचर कलाकार मोहना अपने कला से लोगों में जागरूकता फैला रही है।
पिछले कई सालों से भारत में तेज़ी से हाथियों की संख्या में गिरावट हो रही है। इसकी सबसे बड़ी वजह इनका अवैध शिकार है। कुछ लोग हाथी दांत के लिए अवैध शिकार कर रहे हैं। इसी अवैध शिकार को रोकने और लोगों में जागरूकता फैलाने के लिए मिनिएचर कलाकार मोहना ने चॉक पर हाथी की खूबसूरत आकृतियां उकेरी है। चॉक पर बनी हाथी की आकृतियों के ज़रिये, वह लोगों में यह संदेश दे रही है कि जानवरों के प्रति दयाभाव रखें और हाथियों की कम होती आबादी के प्रति ध्यान देना ज़रूरी है।
इस अवैध शिकार को रोकने के लिए हाथी दांत से बने साज-सजावट के सामान को न खरीदें। मोहना की तरह लोगों में जागरूकता पैदा करें और वन्य जीवों के रक्षा करें।
11 साल की भारतीय मूल नताशा बनी दुनिया की ‘सबसे प्रतिभाशाली छात्रा’
बच्चे हर देश की धरोहर होते हैं और हर देश का भविष्य बच्चों पर ही निर्भर करता है। कुछ बच्चे अपने प्रतिभा से बचपन में ही कुछ ऐसा कर दिखाते हैं कि पूरे देश को उनपर नाज़ होता है। कुछ ऐसा ही 11 साल की भारतीय मूल नताशा पेरी ने किया है। वह ‘दुनिया की सबसे प्रतिभाशाली छात्रा’ होने की सूची में शामिल हो गई है।
डूडलिंग और जेआरआर टॉल्किन के उपन्यास पढ़ना पसंद करने वाली नताशा ने जॉन हॉपकिन्स द्वारा आयोजित हाई ऑनर अवॉर्ड में अपनी जगह बनाई और उन 19,000 बच्चों में शामिल हुई जिन्होंने टैलेंट सर्च अभियान में हिस्सा लेकर अवॉर्ड के लिए क्वालिफाई किया।
नताशा 84 देशों के लगभग 19,000 विद्यार्थियों में से एक थी, जो 2020-21 टैलेंट सर्च साल में सीटीवाई में शामिल हुई। सीटीवाई दुनिया भर के होनहार छात्रों की पहचान करने और उनके ज्ञान की क्षमताओं के लिए ‘अबव ग्रेड-लेवल’ परीक्षा आयोजित करता है।
न्यू जर्सी में थेल्मा एल सैंडमाइर एलिमेंट्री स्कूल की छात्रा नताशा को एसओटी, ओसीटी और अन्य परीक्षाओं में बेहतरीन प्रदर्शन के लिए सम्मानित किया गया है।
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