कोई भी क्षेत्र हो, भारत ने पूरी दुनिया में अपनी पहचान बना ली है और बात जब फैशन, टेक्सटाइल और आर्ट की हो, तो भारत पीछे कैसे रह सकता है। आज हम आपको भारत के तीन ऐसे शहरों के बारे में बताने जा रहे हैं, जो वैसे तो छोटे से हैं, लेकिन अपनी कला के ज़रिये स्वदेश ही नहीं, पूरी दुनिया में अपनी जगह बना चुके हैं। हम बात कर रहे हैं महाराष्ट्र के औरंगाबाद में स्थित पैठान, पश्चिम बंगाल की शांतिपुर-फुलिया बेल्ट, और मध्य प्रदेश के महेश्वर की, जो अपने यहां की साड़ियों के लिए प्रसिद्ध हैं।
पैठान की पहचान
पैठानी साड़ी को यूं ही ‘क्वीन ऑफ सिल्क’ नहीं कहा जाता, एक समय था जब इसे केवल रॉयल्स और रईस लोग ही पहना करते थे। लेकिन आज इस साड़ी ने महाराष्ट्रियन दुल्हनों के साज समान में अपने लिए एक अलग जगह बना ली है।
क्या खास है, इस साड़ी में?
एक टिपिकल पैठानी साड़ी में बॉडी होने के साथ सजावटी किनारे (पडार), और बॉर्डर(ज़री कथ) का कॉम्बीनेशन होता है। साड़ी की बॉडी पर छोटी-छोटी बूटियां होती हैं और इसकी लंबाई करीब छह या नौ यार्ड होती है। साड़ी के पडार या पल्लू पर मोर, फूल और पत्तियां बनी होती हैं।
महेश्वर का मान
हालांकि इस शहर में बुनाई पिछले 1,500 सालों से चलती आ रही है, लेकिन महेश्वरी साड़ी को मराठा रानी अहिल्याबाई होल्कर ने 18वीं शताब्दी में पहचान दिलाई थी।
क्या खास है, इस साड़ी में?
मूल रूप से यह साड़ी कॉटन से बनाई जाती थी और इसका बॉर्डर ज़री का होता था, लेकिन आजकल की महेश्वरी साड़ियों में सिल्क की चमक और कॉटन जैसा हल्कापन होता है। इसके बॉर्डर में जियोमेट्रिक पैटर्न और आसपास के मंदिरों की झलकियां दिखाई देती हैं।
शांतिपुर की शान
पश्चिम बंगाल के नाडिया जिले में बसे छोटे से कस्बे शांतिपुर को कॉटन और सिल्क में असाधारण बुनाई के लिए जाना जाता है। ये परंपरागत रूप से देश में हाथ से तैयार किये गये कपड़ों के शुरुआती प्रयासों में से एक है। पार्टीशन के दौरान ढाका से कई कुशल बुनकर शांतिपुर-फुलिया और आसपास की बेल्ट पर आकर बस गये थे। यही कारण है कि इस क्षेत्र को विदेशी डिज़ाइन और बेहतरीन रंगों वाले उत्पादों के लिए लोकप्रिय केंद्र के रूप में जाना जाता है।
क्या खास है, इस साड़ी में?
शांतिपुर साड़ियां अपने महीन काम के लिये जानी जाती है। वहां की जामदानी साड़ी में आकर्षक जियोमेट्रिक और फ्लोरल पैट्रंर्स बने होते हैं और यह सुनहरे रंग की ज़री से बुनी हुई होती हैं। बुनाई की विभिन्नता के आधार पर हर साड़ी को अलग-अलग नाम दिया जाता है।
भारत की हैंडलूम इंडस्ट्री न केवल हमारे देश के की संस्कृति को दुनिया तक पहुंचा रही हैं, बल्कि भारत के ‘मेक इंन इंडिया’ विज़न को भी प्रमोट कर रही है।
और भी पढ़े: ऐसे मनाते है फसलों का त्योहार
अब आप हमारे साथ फेसबुक और इंस्टाग्राम पर भी जुड़िये।