क्या आपने कभी सोचा है कि जब आप उदास होते हैं, तो आपके शरीर का एक हिस्सा बहुत परेशान होता है। आप में से ज़्यादातर लोग सोच रहे होंगे कि हम दिल कि बात कर रहे हैं। लेकिन यहां दिल की नहीं दिमाग की बात की जा रही है। दरअसल, जब भी आप उदास या परेशान होते हैं, तो आपके दिमाग के दो हिस्सों, अमाय्ग्डाला (इमोशंस का प्रोसेसर) और हिप्पोकैंपस (मेमोरी के लिए ज़िम्मेदार), के बीच बातचीत बढ़ जाती है। हालांकि, यह स्पष्ट नहीं है कि बढ़ा हुआ मस्तिष्क संचार का कारण खराब मूड है या फिर यह इफेक्ट है। लेकिन जो स्पष्ट है, वह यह है कि चिंता, डिप्रेशन और स्ट्रैस दिमाग में हो रहे शारीरिक बदलाव को ज़ाहिर करने का तरीका है।
कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के मनोचिकित्सक डॉ. विकास सोहल की माने, तो “कई रोगियों के लिए यह जानना बहुत महत्वपूर्ण है कि जब वे उदास महसूस कर रह होते हैं, तो उनके दिमाग में जो चल रहा होता है, उसे मापा जा सकता है।
जब आपको महसूस हो कि आप स्ट्रैस में हैं, तो इससे बाहर निकलने के लिए खुद से यह सवाल पूछे-
मुझे अभी क्या चाहिये?
यह सवाल आपके अंदर की उलझन को कम करने में मदद करता है क्योंकि यह आपको अपनी समस्या का हल ढ़ूंढने के लिए प्रेरित करता है। खुद से सवाल करना ऐसा होता है, जैसे आप किसी निष्पक्ष सहयोगी से पूछ रहे हो। हो सकता है कि शुरुआत में तर्कहीन जवाब सामने आयें, लेकिन धीरे-धीरे आपको अपनी परेशानी का हल खुद से ही मिल जायेगा।
मुझे आगे क्या करना है?
आपको क्या करना है, उसकी लिस्ट बनाकर अपने पास रखें। सारे प्वाइंट्स पर एक साथ ध्यान देने की बजाय एक-एक प्वाइंट पर ध्यान दें। एक कदम उठायें, उसे पूरा करके आगे बढ़ें और देखें कि आगे क्या करना है। इस तरह से आप टू-डू लिस्ट के बोझ से नहीं दबेंगे।
मेरे आस-पास के लोग कैसे रिऐक्ट कर रहे है ?
समान परिस्थिति में अपने आसपास के लोगों का रिऐक्शन देखें और अपने रिऐक्शन से तुलना करें। जैसे अगर कहीं आग लगी है और कोई भी भाग नहीं रहा, तो आप भी आराम से चल कर जा सकते हैं। इसका मतलब यह है कि अगर दूसरे लोग नहीं घबरा रहे, तो शायद परिस्थिति उतनी खतरनाक नहीं हैं, जितना आपने पहले सोचा था।
जब आपको लगे कि आप किसी परिस्थिति में घबरा रहे हैं, तो लंबी सांस लें, अपने हाथों और पैरों की अंगुलियों को खींचें और रिलैक्स करें। साथ ही इस एक्सरसाइज़ को दिन में दो से तीन बार नॉन-स्ट्रैसफुल टाइम में प्रैक्टिस करें।
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