हर माता-पिता की चाहत होती है कि उनका बच्चा जीवन में कुछ अच्छा करें। पढ़ने लिखने के साथ नीति और भलाई के रास्ते पर भी चले, इसलिए स्कूल भेजने के साथ-साथ वह घर के माहौल और अपने व्यवहार पर बहुत ध्यान देते हैं। दरअसल, बच्चों का मन चिकनी मिट्टी जैसा होता है, वह जैसा देखते और सुनते हैं, वैसा ही सीख जाते हैं। तभी स्कूल में शुरु से ही टाइम-टेबल, डिसिप्लिन, अपनी व आसपास की स्वच्छता, भाषा और कई दूसरी चीज़ों पर ध्यान देते हैं। लेकिन मुंबई का एक स्कूल ऐसा भी है, जो आगे बढ़कर बच्चों को परोपकार और जरूरतमंदों की बिना स्वार्थ मदद करना सिखा रहा है।
क्या शिक्षा दी स्कूल ने?
मुंबई के ‘बॉम्बे स्कॉटिश स्कूल’ ने नौवीं से बारहवी के छात्रों को समाज के लिए कुछ नि:स्वार्थ काम करने की सीख दी हैं। इस कदम के तहत हर बच्चे को चैरिटी के माध्यम से पैसा इकट्ठा करना था, जिससे अंगहीन लोगों की मदद की जा सके। बच्चों द्वारा इकट्ठी की गई रकम से जरूरतमंदों के लिए प्रॉस्थेटिक लिंब्स का इंतज़ाम किया गया और जो लोग सहारे से आए थे, वे अपने पैरों पर चल कर गए।
कैसे चला यह चैरिटी कैंप?
स्कूल के 156 छात्रों ने देश की अलग-अलग जगहों से 43 लाख रुपयों से ज़्यादा इकट्ठा किए। बच्चों की इस कोशिश से डॉ. सुंदर सुब्रह्मण्यम को बहुत खुशी हुई, जो ‘फ्रीडम ट्रस्ट’ नाम की एनजीओ चलाते हैं और इस कैंप को कोर्डिनेट कर रहे हैं। हर लिंब की कीमत दस हज़ार रुपये है और जमा की गई इस रकम से कम से कम चार सौ लोगों की ज़िंदगी में बदलाव लाया गया। बच्चों कि इस पहल से विधर्ब के लोगों को एक नया जीवन मिला है।
स्कूलों के लिए कायम की मिसाल
ज़रा सोचिए, अगर हर स्कूल कुछ ऐसा काम करें, तो कितने लोगों की ज़िंदगी में बदलाव लाया जा सकता है। स्कूल के बच्चे अनाथाश्रमों के बच्चों को पढ़ा सकते है, वृद्धाश्रम में जाकर उनके साथ खेल या बातचीत कर सकते है या विकलांग स्कूलों में बच्चों को समझ और उनकी समस्याओं को हल करने में मदद कर सकते है। ऐसे छोटे छोटे प्रयासों से बच्चों को समाज की भलाई करने के तरीके सिखाए जा सकते है।
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