अपने और अपने परिवार के बारे में तो सभी सोचते हैं लेकिन चंद लोग ऐसे भी होते हैं जो समाज के बारे में सोचते हैं। ऐसे ही एक इंसान है, दिनेश बडगैंडी, जिन्होंने गांव के बच्चों के उज्जवल भविष्य के लिए मोबाइल प्लानेटेरियम बनाया और इससे लाखों बच्चों को फायदा हो रहा है।
मोबाइल प्लानेटेरियम
कर्नाटक के गांव में पढ़ने वाले बच्चों को अब सौ किलोमीटर दूर बेंगलुरु शहर में स्थित प्लानेटेरियम जाने की ज़रूरत नहीं है क्योंकि प्लानेटेरियम खुद चलकर उनके स्कूल तक पहुंच जाता है और उन्हें चांद-तारों की खूबसूरत दुनिया से रूबरू करवाता है। बच्चे ग्रुप में बंटकर मोबाइल प्लानेटेरियम के अंदर आने के लिए अपनी बारी का इंतज़ार करते हैं। इस मोबाइल प्लानेटेरियम के अंदर हर वह सुविधा मौजूद है, जो किसी भी प्लानेटेरियम में होती है।
प्रैक्टिकल ज्ञान
बच्चों को अलग-अलग तरह के शो के ज़रिए अंतरिक्ष की दुनिया के बारे में प्रैक्टिकल रूप से समझाया जाता है, ताकि वे आगे चलकर इस फील्ड में करियर बना सके। दरअसल, मीडिल क्लास परिवार में जन्मे दिनेश बडगैंडी मैकेनिकल इंजीनियरिंग है लेकिन नौकरी उन्होंने आईटी सेक्टर में की, फिर वह बिजनेस में चले गए। दिनेश ने देखा कि गांव के बच्चों के पास विज्ञान से जुड़े विषयों की प्रैक्टिकल जानकारी नहीं होती और इसलिए वे उच्च शिक्षा में शहरी बच्चों से पिछड़ जाते हैं। गांव के बच्चों को प्रैक्टिकल नॉलेज देने के उद्देश्य से ही उन्होंने मोबाइल प्लानेटेरियम की शुरुआत की और इस मुहिम का नाम रखा तारे ज़मीन पर।
लाखों बच्चों को फायदा
अब तक हज़ारों शो के ज़रिए लाखों बच्चों को फायदा पहुंचा है। बच्चे भी इससे बहुत खुश हैं और बच्चों की खुशी देखकर दिनेश को इस बात की संतुष्टि मिलती है कि उनकी कोशिश सफल रही। हालांकि तारे ज़मीन पर कोई पहला मोबाइल प्लानेटेरियम नहीं है, लेकिन यह बहुत खास ज़रूर है, क्योंकि इसका मकसद लाभ कमाना नहीं, बल्कि गांव के बच्चों को शिक्षा देना है। नासा के एस्ट्रोनॉट जॉन थोमस भी इस अभियान की तारीफ कर चुके हैं।
अन्य राज्यों की मदद
अब तक कर्नाटक में तारे ज़मीन पर तीन लाख छात्रों के लिए और बीस हज़ार अन्य लोगों के लिए शो आयोजित कर चुका है। दिनेश की कोशिश इस अभियान को और आगे बढ़ाने की है व कर्नाटक की तरह ही वह अन्य राज्यों के बच्चों को भी इससे जोड़ना चाहते हैं।
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इमेज: डेक्कन हेराल्ड