संवाद करने में बच्चे बड़ों से कहीं आगे होते हैं, लेकिन उनका संवाद सिर्फ शब्दों तक सीमित नहीं होता, बल्कि उनके द्वारा किए गए काम या हाव-भाव उनके शब्दों से कहीं अधिक एक्सप्रेसिव होते हैं। मगर सवाल यह है कि क्या आप अपने बच्चे की बात सुनते हैं? क्या आप उस पर ध्यान देते हैं जब उसे संवाद के लिए शब्द नहीं मिल पाते और वह किसी और तरीके से खुद को एक्सप्रेस करता है? कैसे सुनिश्चित करें कि आप बच्चे की बात सुन रहे हैं और बदले में बच्चा आपकी?
सुनना है ज़रूरी
सिर्फ कान से बच्चों की बात सुनना ही काफी नहीं है, बल्कि जब आप बच्चे से बात करें तो झुककर उसके लेवल में आए या फिर उसके पास बैठ जाएं। मतलब जब आप बच्चे से बात करें, तो पूरा फोकस सिर्फ उसी पर होना चाहिए। किचन में काम करते समय और गाड़ी चलाते समय यदि आप बच्चे से पूछते हैं कि क्या हुआ तो ऐसे संवाद का कोई फायदा नहीं है।
संवेदनशील बनें
जब आप बच्चों के आसपास हों तो अपने स्पर्श, शब्दों और कार्यों के प्रति संवेदनशील रहें। यदि आप ऐसा नहीं करते हैं और बच्चे से कहते रहते हैं ‘ऐसा मत करो’ ‘ऐसे बिहेव मत करो’, तो कैसे आप बच्चे की भावनाओं और हाव-भाव के ज़रिए कही जाने वाली बातों को समझेंगे?
सिखाएं
बच्चों को सिखाएं कि जब उनका मूड खराब हो, तो कैसे बात करनी चाहिए। उन्हें भावनाओं को पहचानना सिखाएं, जैसे- उदास, किसी बात से ठेस पहुंचना, किसी चीज़ को लेकर उत्तेजित होना या मायूसी आदि। जब उसे भावनाओं की पहचान हो जाए, तो उसे इन पर काबू करना सिखाएं। जब बच्चा गुस्से में हो, तो उसे चुपचाप अकेले कुछ देर बैठने को कहें और साथ में आप भी बैठ जाएं, और यदि बच्चा बहुत उत्साहित है तो 100 गिनने तक जंप करने को कहें और यदि वह मायूस है तो उससे पूछे कि बतौर पैरेंट उसे अच्छा महसूस कराने के लिए आप क्या कर सकते हैं (मगर उनकी चॉकलेट या खिलौने की मांग न मानें।)। बच्चे को समस्या पर फोकस करने की बजाय समाधान खोजना सिखाएं।
प्रोत्साहित करें
बच्चे के पास जब बोलने को कुछ न हो, तब भी उन्हें बोलने/कुछ करने के लिए प्रेरित करें। उन्हें बात करने/कुछ ड्रा करने/कूदने के के लिए प्रेरित करें। ये सब भावनाओं को काबू में करने के अलग-अलग तरीके हैं।
मज़ाक न उड़ाएं/ताने न मारें
ताने मारने या मज़ाक उड़ाने से बच्चों का आत्मविश्वास कमज़ोर पड़ने लगता है, इसलिए कभी ऐसा न करें। जब बच्चा आपसे बात करना चाहे और आपके पास समय न हों तो उन्हें प्यार से कहें कि आप 10 मिनट या आधे घंटे बाद उनसे बात करेंगी/करेंगे। इस बीच वह अपने खिलौने से खेलें या ड्रॉइंग करे। पॉजिटिव पैरेंट बनना ज़्यादा महत्वपूर्ण है।
सबसे अहम बात बच्चे से पूछें कि ‘मैं आपकी अच्छी मां/पिता कैसे बन सकती/सकता हूं।’ बच्चे का मासूम जवाब आपको चौंका देगा। उसके जवाब के आधार पर खुद में थोड़ा बदलाव करने की कोशिश ज़रूर करें, लेकिन इसका ये मतलब नहीं है कि आप गिल्टी फील करने लगे। याद रखिए जैसे आपका बच्चा बड़ा हो रहा, वैसे ही बतौर पैरेंट्स आपका भी तो विकास हो रहा है।
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