देश की संसद पर 13 दिसंबर 2001 को हुए आतंकी हमले को हमारे जाबांज सुरक्षाकर्मियों ने असफल कर दिया था लेकिन इस हमले में कई सुरक्षाकर्मी भी शहीद हुए थे, जिसमें महिला पुलिस कांस्टेबल कमलेश कुमारी भी शामिल थी। कमलेश को उनकी बहादुरी के लिए मरणोपरांत अशोक चक्र से सम्मानित किया गया है। यह सम्मान पाने वाली वह पहली महिला पुलिस कांस्टेबल हैं।
कमलेश की सूझबूझ से असफल हुआ हमला
केन्द्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) कांस्टेबल कमलेश कुमारी ने 13 दिसंबर 2001 को सूझबूझ दिखाई और जैसे ही उन्होंने कार से 5 हथियारों से लैस आतंकियों को उतरते देखा तुरंत अलार्म बजाकर बाकी सुरक्षा अधिकारियों को अलर्ट कर दिया। इसके साथ उन्होंने चिल्लाकर दूसरे कांस्टेबल को भी इस बात की जानकारी दी, लेकिन इसी बीच आतंकियों ने भी उसकी आवाज़ सुन ली और उसकी तरफ गोलियां दाग दी। अपनी जान की परवाह किए बिना कमलेश ने सबको अलर्ट कर दिया।
बिना हथियार के सुरक्षा
सीआरपीएफ कांस्टेबल कमलेश कुमारी को संसद की सुरक्षा के लिए तैनात किया गया था, मगर उनके पास कोई हथियार नहीं था। बावजूद इसके आतंकियों को देखकर वह डरी नहीं, न ही खुद की जान बचाने की सोची। कमलेश ने संसद की सुरक्षा का अपना फर्ज़ बखूबी निभाया। समय रहते उनके अलार्म बजाने से संसद के सभी गेट बंद कर दिए गए और अंदर मौजूद दिग्गज नेताओं की जान बच गई।
अशोक चक्र से सम्मानित
यह बहादुरी के लिए दिया जाने वाले सर्वोच्च सम्मान है। कमलेश कुमारी को उनकी बहादुरी के लिए यह सम्मान मिला। कमलेश की शहादत ने यह साबित कर दिया कि हर मोर्चे पर महिलाएं अपना कर्तव्य बखूबी निभा सकती है। परिवार और अपनी जान से ज़्यादा तवज्जो वह अपने कर्तव्य को देती हैं।
बेटियों को है मां पर गर्व
कमलेश की दो बेटियां ज्योति और श्वेता हैं, जिनकी परवरिश पिता अवधेश कुमार कर रहे हैं। बेटियों को शायद अपनी मां की शहादत याद नहीं होगी क्योंकि तब वह बहुत छोटी थी, लेकिन जब दूसरों के मुंह से मां की बहादुरी के किस्से सुनती है, तो यकीनन उन्हें अपनी मां पर गर्व होता है।
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इमेज: थैंक यू इंडियन आर्मी