परीक्षा में मन मुताबिक नंबर नहीं मिले या किसी सब्जेक्ट में फेल हो जाने पर अक्सर छात्र जीवन से हार मानकर सुसाइड जैसे कदम उठा लेते हैं। छोटी-छोटी सी समस्याओं से घबराने और भागने वालों के लिए बैंगलुरू के कन्हैया एम की कहानी किसी प्रेरणा से कम नहीं है। कन्हैया ने बिस्तर पर लेटकर ही परीक्षा दी और अच्छे नंबरों से पास भी हुये।
जेनेटिक डिसऑर्डर से पीड़ित
बैंगलुरू के कन्हैया एम जेनेटिक डिसऑर्डर से पीड़ित है, जिसकी वजह से वह लगातार कमज़ोर हो रहे हैं और मांसपेशियों को भी नुकसान पहुंच रहा है। अब हालात ऐसे हैं कि वह ज़्यादा देर तक व्हीलचेयर पर भी बैठ नहीं सकते। पीयू सेकंड ईयर की परीक्षा उन्होंने स्क्राइब (लिखने वाला) की मदद से दी और उन्हें 72 फीसदी अंक मिले, जो किसी उपलब्धि से कम नहीं है। परीक्षा हॉल में भी कन्हैया बिस्तर पर लेटकर ही सारे सवालों के जवाब बता रहे थे।

मिला परिवार का सहयोग
कन्हैया की बीमारी का पता 7 साल की उम्र में ही चला, लेकिन इसके बावजूद वह रेग्युलर स्कूल जाना चाहते थे। कन्हैया की मां ने हमेशा उसका साथ दिया। स्कूल-कॉलेज में उनके साथ रहीं। हालांकि पिछले तीन महीने से कन्हैया के लिए कॉलेज जाना मुश्किल हो गया, क्योंकि अब वह व्हीलचेयर पर भी नहीं बैठ पाते हैं। शारीरिक कमी के बावजूद परिवार ने हमेशा कन्हैया का हौसला बढ़ाया और इस बात में कोई दो राय नहीं है कि कन्हैया की कामयाबी में उनकी दृढ़ इच्छाशक्ति का सबसे ज़्यादा योगदान है।
छात्रों के लिए सबक
हमारे देश में जहां छात्रों की आत्महत्या का आंकड़ा लगातार बढ़ता जा रहा है, कन्हैया जैसे लोगों की दिल छू लेने वाली कहानी यकीनन ज़िंदगी के प्रति पॉज़िटिव नज़रिया देती है। ऐसे लोग जो छोटी-छोटी असफलता से मायूस हो जाते हैं, उन्हें कन्हैया के जज़्बे, पढ़ाई के प्रति लगन और दृढ़ इच्छाशक्ति से सबक लेना चाहिये।
जब शारीरिक रूप से कमज़ोर इंसान इतना संघर्ष कर सकता है, तो आप क्यों नहीं? कन्हैया की परीक्षा में सफलता इसलिए भी खास है क्योंकि जिन हालात में इंसान जीने की चाह छोड़ देता है, उन परिस्थितियों में भी कन्हैया का जज्बा और मुश्किलों से लड़ने का हौसला कम नहीं हुआ है। वह बिस्तर से उठ भी नहीं सकते, लेकिन उनके हौसलें आसमान छूते हैं और अब वह जल्द ही बीकॉम में दाखिला लेने वाले हैं।
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