महात्मा गांधी ने एक बार कहा था कि ‘इंसान वैसा ही बनता है, जैसी वह अपनी सोच रखता है।‘ अगर गौर करें, तो गाँधी जी की इस बात में जीवन के सभी प्रश्नों का सार छिपा हुआ है। विज्ञान ने भी कहा है ऐसा कभी नहीं हो सकता है कि आप सोचे ना, लेकिन आप क्या सोचते हैं, ये आप पर निर्भर करता है। इसलिए अगर आप एक बेहतर जीवन की ख्वाहिश रखते हैं, तो पॉज़िटिव सोच उसकी पहली शर्त है।
सोच की ताकत
सोच की शक्ति को समझने के लिए एक बड़ी मशहूर कहानी है कि ‘एक बार एक आदमी ने सोचा कि काश! वह भेड़िया होता, तो उसका जीवन ज़्यादा अच्छा होता। आख़िरकार इस बात को वह कई सालों तक सोचता रहा और एक सुनसान जगह पर भेड़िये की तरह रहने की कोशिश करने लगा। इसके बाद जब वह लोगों के संपर्क में आया, तो लोगों ने पाया कि वह आदमी सच में भेड़िया जैसा बन चुका था, मतलब कि वह कच्चा मांस खाने लगता है, उसके शरीर का भी कायाकल्प होने लगता है और वह लोगों को भी नुकसान पहुँचाने लगा था।’
इस कहानी से पता चलता है कि प्रकृति ने इंसान को सोच के रूप में एक बड़ा अच्छा वरदान दिया है, बस निर्भर करता है कि इंसान उसे किस तरीके से इस्तेमाल करता है।
सोच को बदलना है आसान
विज्ञान का मानना है कि इंसानी दिमाग में इतनी एनर्जी है कि उसे काबू नहीं किया जा सकता लेकिन मनोवैज्ञानिकों का मानना है उस एनर्जी को नई डायरेक्शन दी जा सकती। इन तरीकों को आज़माकर आप भी पॉज़िटिव नज़रिया विकसित कर सकते हैं।
– जानकारों का मानना है, अगर आप पॉज़िटिव चीजों को ट्रैक करने की आदत डाल लेते हैं, तो आप आसानी से अपने नज़रिये को बदल सकते है।
– इंसान के दिमाग में सेकंड के हिसाब से ख्याल आते हैं, ऐसे में अगर आप मानने और ना मानने वाली चीज़ों में अंतर नहीं कर पाते है, तो आप उलझ सकते हैं। इसलिए ज़रूरी है कि कुछ बातों को इग्नोर भी करें।
अगर आप इन बातों पर गौर करके अपनी सोच को बदलने का जज़्बा रखते हैं, तो यकीन मानिये इस बदलते दौर में आप बेहतर नज़रिया विकसित कर सकते हैं।
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