आप और हम एक समाज में रहते हैं, जिसका अपना एक व्यवहार, मान्यताएं, दृष्टिकोण, धर्म,ज्ञान, मूल्य और भौतिक संपत्ति होती है। इन सभी को मिला कर बनती है हमारी संस्कृति, जो एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक कई तरह से पहुंचती है। इसी कड़ी में खाना भी संस्कृति का अहम हिस्सा है ।
खाना है संस्कृति का एक अहम हिस्सा
खाना किसी भी संस्कृति का एक अहम हिस्सा है और यह उसकी उत्पत्ति और प्रगति के बारे में गहराई से बताता है। आपका खाना और आपकी संस्कृति आपकी पहचान होते हैं। आप अपनी संस्कृति से जुड़ा खाना खाते हुये बड़े होते हैं और इससे आपके बचपन और परिवार की कई यादें ज़ुड़ी हुई होती हैं। जैसे मां के हाथ की कोई स्पेशल सब्ज़ी जिसका मुकाबला कोई नहीं कर सकता, या फिर कॉलेज के दोस्तों के साथ पास वाली दुकान से खाई हुई कोई लोकल डिश, आपकी ज़िंदगी की मीठी यादें बन जाती हैं।
शाकाहारी भोजन में सबसे आगे है भारत
शाकाहारी भोजन के मामले में भारत दुनिया में सर्वश्रेष्ठ स्थान पर है। ऐसा इसलिये है क्योंकि भारत हिंदू धर्म का घर है, जो वैदिक काल से संबंध रखता है। इस धर्म में पशुओं की पूजा की जाती है और यह धर्म अहिंसा के सिद्धांत पर टिका हुआ है। हालांकि, अब भारत में भी बड़ी तादाद में लोग मांसाहारी भोजन करने लगे हैं, लेकिन यह बदलाव भारत में मुसलमान और ब्रिटिश शासकों के आने के बाद आया। समय के साथ यहां के कुछ लोगों ने मांसाहारी भोजन को अपना लिया और वक्त के साथ इस बदलाव को भारतीय संस्कृति में जगह मिलने लगी।
खाने की आदत निर्भर करती है संसाधनों पर
किसी भी सभ्यता का एक महत्वपूर्ण पहलू खाई जाने वाली चीज़ों की उपलब्धता है। जैसे ही आप देश के एक कोने से दूसरे कोने में जायेंगे, तो आपको खाना बनाने और उसकी सामग्री में बदलाव नज़र आ जायेगा। जैसे उत्तर भारत में सब्ज़ियां आसानी से नहीं उग पाती, लेकिन वहां डेयरी फार्मिंग अच्छे से हो सकती है, इसलिये वहां के लोग सब्ज़ियों की जगह डेयरी प्रॉडक्ट्स और दालों को प्राथमिकता देते हैं। वैसे ही देश के जिन हिस्सों में कोई चीज़ अगर ज़्यादा मात्रा में पैदा होती है, तो वहां के लोग उसे अपनाने के तरीके ढ़ूंढ लेते हैं और धीरे-धीरे यह कल्चर में शुमार हो जाता है। जैसे असम बांस का सबसे बड़ा उत्पादक है, तो वहां इसका इस्तेमाल कंस्ट्रक्शन और रिचुअल्स के साथ-साथ खाना बनाने और परोसने के लिए भी किया जाता है।
आपके समाज के बारे में बताता है खाना
लोकल डिश किसी भी समाज के खाने के तरीके की हिस्ट्री बताता है। देशों को उनके खाने से भी पहचाना जाता है और यह किसी भी देश, उसकी संस्कृति को समझने में मददगार होता है। जैसे जर्मनी में आयोजित होने वाला ‘ऑक्टोबरफेस्ट’ या नीदरलैंड में चीज़ की फैक्ट्रियां अपने-अपने देश की पहचान हैं।
खाना और सांस्कृतिक बंधन किसी भी व्यक्ति को एक नये समाज में अपनी जगह बनाने में मदद करते हैं, जिससे दो संस्कृतियों के लोगों के बीच की दूरियां कम होती है। खाना लोगों को करीब लाता है, इसलिये यह केवल खाना नहीं आपकी संस्कृति का प्रतीक है।
लेखिका- डॉ. दीपाली कंपानी, शिक्षा, हेल्थकेयर और खानपान में विशेषज्ञ- इंस्ट्राक्शनल डिज़ाइनर और भारतीय पाक कला इतिहास की रिसर्च विशेषज्ञ
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