एक बड़े अखबार में रिपोर्टर होने के नाते खबरों की तलाश में *रेनू को मुबंई के एक कोने से दूसरे कोने में घूमना ही पड़ता है। इसके बाद रिपोर्ट फाइल करके घर के लिए निकलने में अक्सर उसे देर रात हो ही जाती है। हालांकि कई बार उसके साथ ऑफिस के साथी होते है पर कभी कभी रेनू को अकेले भी ट्रैवल करना पड़ता है। हज़ारों मुबंईकरों की तरह मुबंई की ‘लाइफ लाइन’ कही जाने वाली लोकल ट्रेन उसका भी सहारा है।
एक दिन देर तक काम करके रेनू ऑफिस से अकेले निकली और रोज़ की तरह अपने घर के सबसे करीबी स्टेशन पर उतर गई। घर स्टेशन से करीब बीस मिनट की दूरी पर था, लेकिन उस दिन ऑटो स्ट्राइक होने के कारण वो एक प्रइवेट बस में चढ़ गई। वो इतना थक गई थी कि बैठते ही उसकी आंख लग गई। बस के तेज़ ब्रेक लगने से उसकी नींद टूटी तो उसने देखा कि बस हाइवे पर थी। पूछने पर कंडक्टर ने बताया कि जिस जगह वो थे, वहां से उसका घर करीब चालीस मिनट की दूरी पर था। न चाहते हुए भी उसे सुनसान हाइवे पर उतरना पड़ा और वो तेज़ी से घर की दिशा में चलने लगी। उसके फोन की बैट्री भी डेड हो चुकी थी, इसलिए वह किसी को मदद के लिए बुला भी नहीं सकती थी।
रेनू थोड़ी देर तक आगे बढ़ी, तो सामने से उसे एक स्कूटर आता दिखा। उसके दिल में एक आशा जगी लेकिन साथ में डर भी था। स्कूटर उसके पास आकर रुका और उस व्यक्ति ने रेनू से उसके वहां अकेले होने का कारण पूछा। सारी बात जानने के बाद उसने रेनू को घर छोड़ने का ऑफर दिया और साथ में इस बात का आश्वासन भी दिया कि वह उसे सुरक्षित घर पहुंचा देगा। करीब आधे घंटे की राइड के बाद उस आदमी ने रेनू को घर छोड़ा और वापस मुड़ गया।
घर पहुंच कर रेनू ने चैन की सांस ली लेकिन उसे यह बात समझ नहीं आ रही थी कि क्यों एक अंजान व्यक्ति ने देर रात उलटी दिशा में जाकर उसकी मदद करी। रेनू ने उस अंजान को ढ़ेर सारी दुआयें दी, जिसने न सिर्फ रेनू को घर तक छोड़ा बल्कि उसके अंदर सुरक्षा और आत्मविश्वास का भाव भी पैदा किया।
#metoopositive पहल का मकसद आपको इस बात का विश्वास दिलाना है कि आज भी नेक दिल लोग मौजूद हैं, जो दूसरों की मदद के लिये हमेशा तैयार रहते है।
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*लेखिका के अनुरोध पर नाम और जगह को बदला गया है।
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