किसी ने सच ही कहा है सीखने की कोई उम्र नहीं होती और आप यदि पूरी शिद्दत से कोई काम करते हैं, तो यकीनन में सफलता मिलती है। कुछ ऐसा ही हुआ है मध्यप्रदेश की आदिवासी महिला कलाकार जोधइया बाई बैगा के साथ, आधी उम्र बीत जाने के बाद उन्होंने जिस कला को सीखा। वह उसमें इतना रम गई कि अब उन्हें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिल चुकी है।
इटली में लगी प्रदर्शनी में शामिल हुई पेंटिंग
मध्य प्रदेश की 80 साल की आदिवासी महिला जोधइया बाई बैगा की पेंटिंग इटली के मिलान शहर में हुई प्रदर्शनी में शामिल की गई और उनकी कला पर इटली के लोग भी फिदा हो गए। करीब 40 साल पहले पेंटिंग शुरू करने वाली जोधइया ने कभी सोचा भी नहीं होगा कि उनकी कला को विश्वस्तरीय पहचान मिलेंगी। वह मध्य प्रदेश के लोहरा गांव के उमरिया जिले की रहने वाली हैं।
गुजर-बसर के लिए पेंटिंग
40 साल पहले जोधइया ने पति की मौत के बाद अपने और बच्चों का पेट पालने के लिए पेंटिंग ब्रश उठाया था और अब तो वह इसमें इतना खो चुकी हैं कि बस हर वक्त पेंटिंग ही करना चाहती हैं। एक इंटरव्यू के दौरान उन्होंने बताया कि वह सभी तरह के जानवरों की पेंटिंग करती हैं और जो भी उनके आस-पास दिखता है उसकी पेंटिंग बनाती हैं। परिवार पालने के लिए जिस कला को उन्होंने सीखा, अब वही उनकी ज़िंदगी बन चुकी है। जाहिर है अपनी पेंटिंग को इंटरनेशनल प्लैटफॉर्म मिलने से वह बहुत खुश हैं।
जोधइया बाई के शिक्षक अश्विन स्वामी है। पति के मौत के कुछ दिनों बाद जब जोधइया को पता चला की एक शिक्षक मुफ्त में पेंटिंग सिखाते हैं, तो वह उनसे पेंटिंग सीखने जाने लगी और जल्द ही जोधइया की इसमें दिलचस्पी बढ़ गई। उनके शिक्षक के मुताबिक, जोधइया ने अपने दुख-दर्द को पेंटिंग के रंगों से भुला दिया।
आदिवासी समुदाय के लिए गर्व की बात
मध्यप्रदेश का आदिवासी समुदाय शिक्षा में अब भी बहुत पिछड़ा हुआ है और जोधइया भी पढ़ी-लिखी नहीं है। इसके बावजूद अपने हुनर की बदौलत उन्हें जो अंतरराष्ट्रीय ख्याति मिली ,है वह किसी उपलब्धि से कम नहीं है और पूरे आदिवासी समुदाय को उन पर गर्व है।
सीखे हर हाल में सकारात्मक कैसे रहा जाए
जीवन में आए दुख-दर्द और तकलीफों के बावजूद आप किसी तरह से आगे बढ़ सकते हैं यह जोधइया से सीखने की ज़रूरत है। आप भी जीवन में आए उतार-चढ़ावों में सकारात्मक सोच बनाए रखें और अपने किसी हुनर या कला को निखारकर उसमें रम जाएं।
इमेज : डेली हंट
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