जब हम युवावस्था में काम करना शुरु करते हैं, तभी से रिटायरमेंट की योजनाएं बनानी शुरु कर देते हैं। लेकिन कुछ लोग ऐसे भी होते हैं, जिन्हें शायद पता ही नहीं कि रिटायरमेंट क्या चीज़ होती है। उन्हीं में से एक है पप्पम्मल दादी। चेहरे पर भले ही झुर्रियों हो, लेकिन खेती करते समय किसी युवती से कम नहीं। उनके इस जज़्बे के लिए 72वें गणतंत्र दिवस पर भारत में चौथे सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार पद्म श्री से उन्हें सम्मानित किया गया।
बचपन से रही खेतों में रूचि
तमिलनाडु के कोयम्बटूर जिले में रहने वाली पप्पम्मल दादी ने बचपन में ही अपने माता-पिता को खो दिया था। इसके बाद नानी ने उनका पालन पोषण किया। जब नानी खेत में काम करती तो वह भी उनका हाथ बंटाने लगी और यहीं से पप्पम्मल में खेती से जुड़ी बारीकियां जानने की नींव पड़ी। उनकी इसी ललक के कारण वह आज 105 साल की होकर भी ऑर्गेनिक खेती कर रही है।
बचत के पैसों से शुरु की अपनी खेती
नानी के गुज़र जाने के बाद पप्पम्मल दादी अकेली पड़ गई, लेकिन नानी से विरासत में मिली दुकान ने उनका हर पड़ाव पर साथ दिया। दुकान में दिन-रात मेहनत कर जो पैसे कमाएं, उसे सोच समझकर बचाकर रखने लगी। फिर कई सालों तक पैसे बचाने के बाद, दादी ने दाल और मकई की खेती के लिए 10 एकड़ ज़मीन खरीदी। दादी अपनी खेती में जो सुबह 5.30 बजे जाती तो दोपहर तक काम में लगी रहती थी।
ऑर्गेनिक खेती के लिए की पढ़ाई
औपचारिक रूप से खेती सीखने के लिए उन्होंने तमिलनाडु कृषि विश्वविद्यालय में दाखिला लिया। खेती से संबंधित कोई भी सवाल वह बेझिझक शिक्षकों से पूछती थी। सीखने के बाद, पप्पम्मल दादी ने कई प्रकार की दालों, कुछ सब्जियों और फलों की खेती शुरू की, जिसे वह परिवार में खान-पान के लिए इस्तेमाल करती थी।
उम्र को नहीं बनने दिया बाधा
उम्र बढ़ने के साथ उनके लिए 10 एकड़ ज़मीन पर खेती करना मुश्किल होने लगी। इसलिए 25 साल पहले उन्होंने इसका एक हिस्सा बेच दिया, लेकिन भवानी नदी के किनारे बसे एक गांव थेक्कमपट्टी में ऑर्गेनिक खेती करने के लिए हमेशा सक्रिय रही। 105 की उम्र में भी वह सभी काम खुद करती है और 2.5 एकड़ जमीन पर आज भी बाजरा, दाल और सब्जियों की खेती कर रही है। पप्पम्मल दादी हर पीढ़ी के लिए एक प्रेरणा है।
इमेज : ट्विटर
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