आपको अगर दूध, सब्जी या फिर कुछ और लेने जाना हो, तो आप झट से घर के बाहर निकलते हैं और पास वाले बाज़ार से जाकर ले आते हैं। इतना ही नहीं अब तो हर कॉलोनी के आसपास न जाने कितने ही स्कूल, अस्पताल और दूसरे ज़रूरी संस्थान बन गए हैं। जैसे ही ज़रूरत पड़े, तो अपनी सहूलियत के हिसाब से चले जाओ। लेकिन देश के कई कोने ऐसे हैं, जहां आज भी वहां के लोगों को अपनी छोटी-छोटी ज़रूरतें पूरा करने के लिए नदी पार कर के जाना पड़ता है। ऐसे ही छोटे से द्वीप के बारे में आज आपको बताने जा रहे हैं।
क्या है इस द्वीप की कहानी ?
कर्नाटक के मेंगलूरु से करीब 26 किलोमीटर दूर, नेतरावती नदी में एक पवूर-उलिया नाम का द्वीप है। इस द्वीप तक पहुंचने के लिए आपको 800 मीटर नाव चलाकर दूसरी ओर जाना पड़ता है, फिर करीब डेढ़ किलोमीटर हाईवे का रास्ता नापना पड़ता है। यहां के लोगों को पढ़ाई, स्वाथ्य जैसी बुनियादी चीज़ों के लिए हर रोज़ नदी पार करके दूसरी ओर जाना पड़ता था। हालांकि यहां के वासी आज़ादी के बाद से ही हर सरकार से पुल बनाने की मांग करते आ रहे थे, लेकिन जब किसी ने कुछ नहीं किया, तो यहां के लोगों ने खुद पुल बनाने का फैसला किया।
कैसे बनाया पुल ?
पुल बनाने के लिए द्वीप के वासियों ने पैसा इकट्ठा किया और इसे बनाने कि ज़िम्मेदारी एक लोकल चर्च ने ली। जमा किए गए रुपयों से एक हफ्ते के अंदर पुल बना दिया गया। यह 800 मीटर लंबा पुल रॉड्स से बना है, जिसकी चलने की जगह लकड़ी से बनाई गई है। कैपुचिन प्रीस्ट फादर जेराल्ड लोबो ने बताया कि इस पुल को बनने में दो दिन लगते हैं और इसे कभी भी हटाया जा सकता है। बस ध्यान देने वाली बात यह है कि इस पुल पर वाहन नहीं चलाए जा सकते।
पहले उठाई कितनी परेशानियां ?
पुल बनने से पहले छात्र-छात्राएं सुबह 6.30 बजे नाव के इंतज़ार में निर्धारित जगह पर इकट्ठा हो जाते थे। चाहे गर्मी हो या बरसात, हर दिन नदी के तेज़ बहाव को पार करना उनकी मज़बूरी थी। बीते दिनों को याद कर के और इस ब्रिज के बन जाने से द्वीप की निवासी फ्लेविया डिसूज़ा काफी इमोशनल हो गई क्योंकि आज से बीस साल पहले समय पर अस्पताल न पहुंचने के कारण फ्लेविया ने अपने पति बेसिल की हार्ट अटैक के कारण खो दिया था।
इस पुल के बनने से करीब 200 लोगों की ज़िंदगी बदल गई है, जिनमें 30 से 40 छात्र भी शामिल हैं। ये सभी लोग अब अपने बुनियादी अधिकारों के एक कदम और पास आ गए हैं।
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