हम अक्सर सुनते है कि अगर असली हिंदोस्तान देखना है, तो गांव में जाकर देखो क्योंकि रीति रिवाज़, परंपराओं का जोड़ जो गांव में देखने को मिलता है, वह शहरों में शायद ही देखने को मिले। लेकिन गांव की अपनी कुछ समस्याएं भी हैं, जैसे उन्हें बेहतर मेडिकल सुविधा न होने के कारण कई मुश्किलों से दो-चार होना पड़ता हैं। गांव की इन्हीं मुश्किलों को समझते हुए तीन युवा डॉक्टरों ने कुछ ऐसा फैसला लिया, जिसे सुनकर गांववालों के चेहरे पर खुशी की चमक आ गई।
गांव में अस्पताल खोलेंगे
तमिलनाडु के गांव कलीपट्टी के सबसे नज़दीकी अस्पताल की दूरी करीब 100 किलोमीटर है। ऐसे में ग्रामीणों को मेडिकल सुविधा पाने के लिए कितनी जद्दोजहद करनी पड़ती होगी, इसका सहज अंदाजा लगाया जा सकता है। गांव में मेडिकल सुविधा के इस घोर अभाव ने ही एक किसान के बेटे मेघनाथन पी को मेडिकल की पढ़ाई करने और इसे अपना प्रोफेशन बनाने के लिए प्रेरित किया। और, आज की तारीख में जब वह डॉक्टर बन चुका है, तो उसका एकमात्र मकसद अपने गांव में जाकर बच्चों के लिए एक अस्पताल खोलने का है।
मुश्किल भरे सफर को किया तय
साल 2018 में डॉ. मेघनाथन पी को पीडियाट्रिक्स में बेस्ट पोस्ट ग्रेजुएट स्टूडेंट होने के लिए पंडित शीतला चरण बाजपेयी गोल्ड मेडल से सम्मानित किया गया। उनकी यह सफलता कड़ी मेहनत का नतीजा है। दरअसल, डॉ. मेघानाथन पी के लिए शुरुआती दिन काफी मुश्किल भरे थे, क्योंकि पढ़ाई के साथ-साथ वह अपने परिवार की आधा एकड़ ज़मीन पर पिता के साथ खेती करते और हल भी जोतते थे। इतना ही नहीं, वह रात दो बजे उठकर सुबह आठ बजे तक मेडिकल एंट्रेस की तैयारी करते थे। उसके बाद स्कूल जाते और वापस आकर पिता के साथ खेतों में काम करते।
गरीब मरीजों का मुफ्त इलाज
हालांकि मुश्किल भरे सफर को तय करने के बाद इस मुकाम तक पहुंचने वाले डॉ. मेघानाथन पी इकलौते डॉक्टर नहीं हैं। डॉ. मेघानाथन पी के साथ ही डॉ. आरोही गुप्ता को भी एमडी (पीडियाट्रिक्स) में बेहतर परफॉर्मेंस के लिए ठाकुर उल्फत सिंह गोल्ड मेडल से सम्मानित किया गया है। डॉ. आरोही के माता-पिता का भी सपना था कि वह एक डॉक्टर बनें और उन्होंने न सिर्फ अपने माता पिता का सपना पूरा किया बल्कि मेडिकल में बेहद सफल भी रही है। अब डॉ. मेघानाथन पी की तरह डॉ. आरोही भी एनजीओ खोलना चाहती हैं, ताकि गरीब मरीजों का मुफ्त इलाज कर सकें।
डेंटिस्ट्री में बेहतर करना मकसद
इसके साथ ही एमडीएस में डॉ. स्नेहकिरण रघुवंशी को प्रोफेसर एनके अग्रवाल पुरस्कार मिला। इनकी ख्वाहिश हमेशा से दांतों की डॉक्टर बनना थी। हालांकि उनका रैंक बहुत अच्छा था, इसके बावजूद डॉ. स्नेहकिरण ने डेंटिस्ट्री की फील्ड ही चुनी क्योंकि वह इसमें कुछ अच्छा करना चाहती हैं।
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